नारी- एक अतुलनीय शक्ति
नारी- एक अतुलनीय शक्ति
हार न माने जो परिस्थिति से
उसके जैसा शक्तिशाली नहीं
बुरे वचन न उसको बोलो
ध्यान सभी का रखती वही।।
सेवा में सबकी जीवन बिताती
उफ़्फ़ तक की आवाज नहीं
अपनी पीड़ा को भूल के चलती, दुख-दर्द किसी का बर्दाश्त नहीं।।
आनंदित करती घर-परिवार को
उसको घर की लक्ष्मी दुनिया कही
सौभाग्य का वो पट खोलती, रुठों को भी मनाती वही।।
दया, प्रेम से रहती है जब
न कोमलता की सीमा कोई
प्रचंड रूप जब धारण करती, तब बचने की आस नहीं।।
अतुलनीय रहती नारी सदा ही
गुणों का उसके छोर नहीं
हर शक्ति को समेटे रहती, न मर्यादा को छोड़े कभी।।