मेरे पुरूषोत्तम श्री राम
मेरे पुरूषोत्तम श्री राम
सिंधू से गहरी आंखें तेरी
मनमोहक मुस्कान है
शर चाप तेरे हस्त विराजे, अयोध्या ही पहचान है।।
हनुमंत तेरे चरण पखारे
लखन दाएं हाथ है
भरत-शत्रुघ्न चंवर झुलाते, बाएं हाथ सीता मात हैं।।
सुग्रीव-निषाद को स्थान मिला जहां
जामवंत भी साथ है
राम कथा में सहयोग है जिनका, सभी का वहां स्थान है।।
गरुड़, जटायु द्वारे पे साजे
विश्वामित्र-अगस्त ऋषि भी साथ है
बाल्मिकी और शबरी का, आज अयोध्या नगरी में वास है।।
गणेश, दुर्गा शिव-शंकर सूर्य
जिनके ब्रह्मा-विष्णु साथ है
कण में जो सदा विराजे, वो पुरुषोत्तम भगवान है।।