Phool Singh

Abstract Drama Classics

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Phool Singh

Abstract Drama Classics

मेरे पुरूषोत्तम श्री राम

मेरे पुरूषोत्तम श्री राम

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सिंधू से गहरी आंखें तेरी

मनमोहक मुस्कान है 

शर चाप तेरे हस्त विराजे, अयोध्या ही पहचान है।।


हनुमंत तेरे चरण पखारे

लखन दाएं हाथ है

भरत-शत्रुघ्न चंवर झुलाते, बाएं हाथ सीता मात हैं।।


सुग्रीव-निषाद को स्थान मिला जहां

जामवंत भी साथ है

राम कथा में सहयोग है जिनका, सभी का वहां स्थान है।।


गरुड़, जटायु द्वारे पे साजे

विश्वामित्र-अगस्त ऋषि भी साथ है 

बाल्मिकी और शबरी का, आज अयोध्या नगरी में वास है।।


गणेश, दुर्गा शिव-शंकर सूर्य 

जिनके ब्रह्मा-विष्णु साथ है

कण में जो सदा विराजे, वो पुरुषोत्तम भगवान है।।


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