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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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बेकाबू

बेकाबू

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बहुत दिनों के बाद ख़ुद को संभाला था

लेकिन, आज फिर से मैं बेक़ाबू हो गया

एक जाल से अभी-अभी ही निकला था

पर, फिर से एक जाल ने,

मुझे खुद में जकड़ लिया।


मेरे आस-पास कई बुनकर उपस्थित थे,

जो अनगिनत जाल बुनकर मेरे पास खड़े थे

अब मैं किस जाल की बात करूं,

उस जाल की जो मेरे दिल के घर वाले,

बुनकरों ने तैयार किया था।


या फिर उस जाल की,

जो मेरे आस-पास वाले बुनकरों ने !

बहुत दिनों के बाद मैं ख़ुद को संभाला था

लेकिन, आज फिर से मैं बेक़ाबू हो गया !


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