तुम एक कलम सी हो
तुम एक कलम सी हो
तुम एक कलम सी हो,
मैं एक पन्ना हूँ…..
तुम लिखो मेरी बातों को,
जो भर सकें मेरे जिस्म में….
तुम ऐसे घूमो मेरे आस-पास की
मैं शब्दों में उलझकर मौन हो जाऊँ
जो कोई पढ़ना चाहे मुझे वो बिलकुल
सूरज के किरण सा, धरती की
ओंस को अपने भीतर रख ले !
मैं तेरा एक किरदार हूँ ना,
तो जिंदा रखो मुझको !
क्यूंकि तुम स्याही के एक-एक
कतरे से भर रही हो मुझको…
कि मैं हो रहा हूँ देखो किताब सा
पन्ने दर पन्ने……
कि जैसे हुआ करता है विकराल,
कालिख सा घना रात।
कि फिर मैं न जाऊँ पूरा
कि फिर बचे न एक भी मन का पन्ना
इसलिए मैं बोल रहा हूँ
तुम नोट लिखकर खाली हाथ
छू लो मुझको, बस एक आख़िरी पन्ने में,
मैं भूल जाऊँगा सारा लिखा गया किस्सा!
तुम एक कलम सी हो,
मैं एक पन्ना हूँ…..