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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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उस चाँद का भी कुछ बात हो

उस चाँद का भी कुछ बात हो

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उसे देख कर किसी ने संजोया तो होगा,

मानता हूं कि चाँद को सब ने देखा है।

लेकिन कितना अंदर कितना गहरा छिपा है,

उसके भीतर सुगंध जीवन का।


इसे देख कभी तो उस चाँद पर कुछ गाया जाता।

मैं कुछ नहीं कहूंगा, कुछ नहीं बोलूंगा ज्यादा,

इंसान का पैर उसकी ज़मीन पर पड़ चुका है।

लेकिन उसकी मिट्टी में अनगिनत घाव गढ़ा हुआ,

ये किसी को तो व्यथित अनुभव से भर रहा होगा।


आसान होता है धरती की जमीं से चाँद पर कुछ लिखना,

कुछ पढ़ना, कुछ बोलना, खूबसूरती का बखान करना।

लेकिन सामने से उसकी विकराल हुए स्वरूप को किसी ने

नहीं लिखा है। हर युग में श्रापित बेचारा चाँद

कितनों की मुहब्बतों का हिस्सा बना।


लेकिन उससे ज्यादा उसके ऊपर कभी भालू तो

कभी किसी बुढ़िया का घर अंकित किया गया।

लेकिन जो दिखना था अंदर तक एक गहरा शून्य,

वो बस कहीं न कहीं बस चाँद की तरह तन्हा दिखा।



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