मैं भीग रहा हूँ
मैं भीग रहा हूँ
मैं भीग रहा हूँ तन-मन से
तेरे हर क़ाबिल हलचल से
मैं मन के मोह से व्याकुल हूं
किसी कुरुक्षेत्र के अर्जुन सा
मेरे अंदर तू है, या ख़ाक हुई
जो थोड़ा-थोड़ा सूरज दिखता
मैं व्यथित हूं उस अंबर सा
जो मेरा चाँद न दिखा सका !
मैं भीग रहा हूँ तन-मन से
तेरे हर क़ाबिल हलचल से !
तू है किसी तस्वीर में कैद अभी
ना बोलती है ना कुछ सुनती हैं
कल जब भी तुझको देखा था
आंखें तेरी बातें कुछ गढ़ती हैं !
मैं भीग रहा हूँ तन-मन से
तेरे हर क़ाबिल हलचल से !