STORYMIRROR

Mayank Kumar

Abstract

3  

Mayank Kumar

Abstract

आधी रोटी

आधी रोटी

1 min
244

कुछ खबर के ही असर से,

मैंने वे सब गवाएं हैं...

जो ख़बर बन सकती थी सफ़र की,

कि मैं अब रोटी को भट्टी से 

पूरा समझ, आधा ही निकाल पाता हूँ,

मैं अब क्या कहूं उन हालातों में सबसे

कि मैं आधा रोटी की ख़बर क्यों नहीं ले पाता !


आख़िर मैं हूँ भी कौन ज़ालिम दुनिया के लिए ? 

जो मिला हैं किसी से, उसे जमा किया हूँ,

जीवन भर, कुछ खालीपन को भरने के लिए !

चाहे रात कि काली चादर से ढका हो मेरा जीवन...!

जो उजाले की तलाश में खाता रहता हैं,

कई गुफाओं की ठोकर !!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract