कुछ खिला चंदा मिले
कुछ खिला चंदा मिले
जब वह खिलता चंदा मिले,
किस्से पुरानी बोल देना...
है कहीं उसकी अदाएं,
जो कभी दिखता नहीं
मिट न जाओ तुम कहीं,
उसके भरोसे यहीं
है बहुत से फासले पर,
उम्मीदें भी है बची...
है तुम्हें चलना अभी,
थकना नहीं, थमना नहीं...
शब्दों को अब छोड़ना है,
बस उसे अब बोलना है,
है जहां क़ीमत लिपि कि,
कलम को वही गोदना है...
कोई क्या सुनता अभी,
क्या उम्मीदें बांधता है,
छोड़ दे सब की शराफत
जो तुझे झंझोरता है...
कोई ना है रण में तेरा,
जो तुझे अर्जुन कहेगा
है शुरू से कर्ण तू,
बस वही बन के रहेगा...
कुछ कदम की अग्नि रेखा
भाग्य उसके है अनोखा
जो सदा बनता परिंदा
उसके आगे सूरज भी छोटा...
तू कहां से पांडव हुआ है !
कृष्ण तुझको कब मिला है...!
जब भी तुझको जो मिला है,
तुझसे तेरा कुछ छीना है...!
फिर क्या तू सोचता है,
क्या तुम्हें गुरु द्रोण मिलेगा !
अर्जुन सा सौभाग्य खिलेगा...
तू था परशुराम का अभागा,
तू बस यह बन कर रहेगा...!
शायद इससे ही दिखेगा,
जहां कोई ना बहुत दिखा है !
जब वह खिलता चंदा मिले,
किस्से पुराने बोल देना...!!