ओढ़ अँधेरे की चादर
ओढ़ अँधेरे की चादर


रंगहीन ले सपने सारे
धूप देख अब डरती।
ओढ़ अँधेरे की चादर फिर
पतझड़ बनकर झरती।
कल सुहाग का पहना जोड़ा
आजअभागन बैठी।
छूटी न मेंहदी हाथों की
ऐसी किस्मत ऐंठी।
दोष अभागन माथे लेकर
तिल तिल जीती मरती।
रंगहीन ले………
कभी उजाले में बन तितली
फूलों पर उड़ती थी।
कभी मचलती जल की धारा
सागर से जुड़ती थी।
चित्र सजन का नयन बसाए
बीती बातें करती।
रंगहीन ले……
हाथ लिए पूजा की थाली
प्रश्न पूछती रोती।
भूल हुई क्या गिरधर नागर
छीना जीवन मोती।
टूट गई मन की गागरिया
टुकड़े झोली भरती।
रंगहीन ले...य़