क्यों चुप बैठे बनवारी
क्यों चुप बैठे बनवारी
हाहाकार मचा धरती पर,
जीवन संकट में भारी।
काल मचाए तांडव जग में,
क्यों चुप बैठे बनवारी।
रोग नाग बन डसता जीवन,
कष्ट बहुत सबने भोगा।
लीलाधर तेरी लीला से ,
कोरोना मर्दन होगा।
मानव की करनी से आहत,
विष ले बहती पुरवाई।
वन उपवन उजड़े हैं सारे,
कोमल कली कुम्हलाई।
मात-पिता की मुस्कान छिनी,
रोती बहन लिए राखी।
दिन बोझा बन गुजर रहे हैं,
आस उड़े बनकर पाखी।
टूट गए अभिमान सभी तब,
लगे दौड़ पर जब ताले।
पैसों की कीमत फिर जानी,
खाली देखे जब आले।
प्रभु एक इशारा कर दो अब,
हो फिर से नया सबेरा।
सुख जीवन में चहक उठे फिर
हे नाथ आसरा तेरा।