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anuradha chauhan

Abstract Others

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anuradha chauhan

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रैन की आहट

रैन की आहट

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ओढ़ कुहासे की चादर

लालिमा नभ खो रहा है।

साँझ की फिर ओढ़ चादर

दिन कहीं पर सो रहा है।


रैन की आहट सुनी जब

स्मृतियों की नींद जागी।

चाँदनी का छोर पकड़े

फिर मचलकर जोर भागी।

टिमटिमाते देख तारे

मौन छुपकर रो रहा है।

ओढ़ कुहासे...


वेदना चातक बनी फिर

विरह सागर नित्य मरती।

देख गगन के चंद्र को

उर्मियों सा नृत्य करती।

चाँदनी की अंजुरी ले

चंद्र मुख को धो रहा।

ओढ़ कुहासे.......


भर रही झोली निशा की

ले चली है स्वप्न सारे।

चाँदनी लेती उबासी

सो रहे अब चाँद तारे

भोर आशा सी दिखे जब

देख मन तम खो रहा है।

ओढ़ कुहासे.......



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