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anuradha chauhan

Others

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ओस जैसी प्रीत

ओस जैसी प्रीत

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ओस जैसी प्रीत अब तो

एक पल में लोप होती।

उलझ दिखावे के जाले

रीत अपना रूप खोती।


झूठ का ओढ़े मुखौटा

चाशनी में शब्द लिपटे।

संदेह की कोठरी में

भावनाएं मौन सिमटे।

प्रीत मुखड़े को छुपाए

एक कोने बैठ रोती।

ओस जैसी....


जीत रिश्ते हारती तब

सिर चढ़ी जब लालसाएं।

चाल शतरंजी चले सब

गाँठ मन की फिर छुपाए।

गिरगिटी चोला पहनकर

मानवता भी चुप सोती।

ओस जैसी....


भीत चुप-चुप सी खड़ी अब

ढूँढती मुस्कान खोई।

आत्मा यंत्रों में लिपटी

कौन कोने बैठ सोई।

मिचमिचाते नयन ढूँढे

खिलखिलाते वही मोती।

ओस जैसी....



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