ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु
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गर्म हवा जब जब लहराती।
धरती की तब तपन बढ़ाती॥
पत्थर वन की ऐसी माया।
तरुवर की ढूँढें सब छाया॥
सूखें नदियाँ ताल तलैया।
जल बिन जीवन चले न भैया॥
ग्रीष्म काल देता संदेशा।
दिवस नहीं रहता इक जैसा॥
ज्यों-ज्यों पारा चढ़ता जाए।
व्याकुल जीवन मन घबराए॥
चटक रहा धरती का सीना।
गर्मी में मुश्किल है जीना॥
लू चलती जब आग लगाती।
कोमल काया को झुलसाती॥
तरु बिन धूप में आए रोना।
ढूँढे हर कोई शीतल कोना॥
बदली बरसे कैसे काली।
काट रहे सब मिल हरियाली॥
ग्रीष्म ऋतु कहाँ मन को भाए।
वर्षा की सब आस लगाए॥