उन्नति के शिखर
उन्नति के शिखर
उन्नति के चढ़कर शिखर, प्रीत न जाना भूल।
प्रीत बिना चढ़ती सदा, रिश्तों पर फिर धूल।
रिश्तों पर फिर धूल, चिढ़ाए पल पल मन को।
अपनों के ही संग, मिले हर सुख जीवन को।
स्वार्थ का पथ देख, मिले पग पग पर अवनति।
सच का आँचल थाम, शिखर चढ़ते सब उन्नति।
