ज्ञान के मोती
ज्ञान के मोती
जब लेखनी के धार हर सच से डरे।
तब जीतने की आस गुरु मन में भरे॥
गुरु ज्ञान बारिश से सभी शंका मिटी।
बाँटे सदा वह ज्ञान के मोती खरे॥
फिर भाव भींगे झूमते मन आँगना।
करके उजाला ज्ञान गुरु तम को हरे॥
जो मौन पसरा था कभी मन में कहीं।
देखो वहाँ रस भींगकर खुशियाँ झरे॥
जो भय भरा है मन भला कैसे हटे।
गुरु ज्ञान ही अब दूर उस भय को करे॥