सुख
सुख
इंतजार में टिकी नजरें पूरे
समय को सोख जाती हैं
फिर भी सूखी रहती हैं
कि उनके कलेजे रेत होते हैं
और उनका सब्र पत्थर,
तमाम आजमाइशों के सिलसिले वो
चकरघिन्नी सा पूरा करती हैं
पर खुद की आजमाइश के कोरों को
चोटिल कर देती हैं
कि उसकी टीस ही इनका सुकून है,
ये प्रेम में अधूरी होती हैं
कई बार रीती
कसमसाहट की कसौटी पर कसी
ये हर नींद का उधार रखती हैं
जैसे उधार रखता है
महाजन बिना बही खाते के
कि जिसे वसूलने के नियम
आम तौर पर कहीं दर्ज नहीं होते ,
जिस एक वक्त ये टूटी हुई सी दिखें
इन्हें कसकर कलेजे से लगाइये
ये फफककर रो पडेंगी
बेआवाज
देर तक रोती रहेंगी,
इनके हिस्से का सुख बस इतना सा है।