एकरसता
एकरसता
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बहुत खाली हूँ भीतर से थका मन है
भला कैसा ये मौसम और ये मौसम की उलझन है
लिपटकर सर्दियां जो रात की साथी हुयींं अतीत है
तपाकर धूप भी यादों में जो पिघली कभी वो अतीत है
सुना था बारिशें लाती हैं कुछ भूले तो
कुछ भीगे हुये लम्हों को वापस झूठ है पर
कि सब झूठे यहां पर,
चल यूं ही सही ऐ वक्त तेरा दांव देखेंगे
तू मुझको आजमाना हम भी तुझको आजमायेंगे,
मुसलसल जिंदगी हर रोज इक किस्से सी आती है
लुभाती है उबाती है
पकड़ कर राह फिर अपनी यहां से
धीरे-धीरे लम्हा-लम्हा दूर जाती है
कि दिन यूं ही मेरा कटता है अक्सर मेरी ड्योढ़ी में।