सपनों का सफर
सपनों का सफर
मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा रहा
कितनी ही बातें थी मन में
पर किसी से ना कहा
पढ़े लिखे लोगों को देखकर
अक्सर सोचा करता था
काश मैं उस जैसा बन पाता
बचपन से ही एक सपना देखा था
क्यों वंचित रह गया उन सपनों से
वो सपने जहाँ पढ़ने -लिखने की आस थी
पर जन्म लेते ही गरीबी की चक्की में पिसे
होश संभाला तो सिर्फ पत्थर ही घिसे
बचपन गुजर गया घर की चारदीवारी में
जान ना पाए पढ़ना -लिखना कहते हैं किसे
दिन बदले रातें बदली सुबह और सांझ बदल गए
पर हम वहीं खड़े थे जहाँ पहले खड़े मिले
कलम की जगह हाथों में कुदाल ही मिला
चेष्टा थी आसमां को छूने की
पर नसीब ऐसा जमीन का टुकड़ा ना मिला
बिन शिक्षा अर्थहीन बन गया जिंदगी का सफर
शिक्षित होने की आस बस मन में रही
जाने कब टूट गया सपनों का नगर
अशिक्षा जीवन का अभिशाप बन गया
समाज आगे बढ़ गया मैं वहीं खड़ा रह गया
काश मैं उस जैसा बन पाता
क्यों वंचित रह गया उन सपनों से
मेरे सपनों का सफर कुछ ऐसा था !
