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manish shukla

Abstract

5.0  

manish shukla

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भीगकर झूमेंगे

भीगकर झूमेंगे

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गर्मी तन को झुलसाती है,

वो बूंदें फिर याद आती हैं

जिनमें डूबा था, तन और मन,

जिनमें अहसास था अपनापन।


शीतल अहसास कराती है

वो बूंदें मरहम बन जाती है

जीवन तब गान सुनाता है,

कलियों का चमन खिल जाता है।


माथे से पसीना बहता है

फिर मेरा मन ये कहता है

बरसात ज़ोर की आएगी,

तन- मन को वो सहलाएगी।


झुलसे तार सब डोलेंगे,

मृदंग की थाप पर बोलेंगे

मिट्टी से मिलन जब होगा फिर, 

भीनी सुगंध फिर आएगी

धरती दुलहन बन जाएगी।


हरियाली हर मन बस जाएगी

ये सूनापन मिट जाएगा, 

सूर्य का ताप मिट जाएगा

मन मयूर बन जाएगा,

उस प्रेम में हम भी डूबेंगे

बारिश में भीगकर झूमेंगे।


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