देश की ख्वाहिश होती है...
देश की ख्वाहिश होती है...
मानवता है जहां का मंदिर,
एक जान की कीमत होती है
इंसानों के मजहब में,
अमन की अजान होती है,
मंदिर की घंटी बजती है,
मोमिन की दुआ तब लगती है,
आंखों से आंसू बहते हैं,
जब- जब इंसानियत रोती है,
न धर्म का बंधन आता है,
ना जात की सीमा होती है,
ब्राह्मण ठाकुर, कोरी, पासी,
सब हाथ पकड़कर चलते हैं..
गुरबानी सुनकर शिया- सुन्नी,
नमाज को सजदा करते हैं..
शाम चर्च की प्रेयर में,
भीड़ तमाम होती है,
उस भीड़ में बच्चे होते हैं,
उस भीड़ में माँए होती है
ना इनका मजहब होता है
ना जात की सीमा होती है…
नफरत की दुनिया से हटकर
इनकी एक दुनिया होती है.
वहां प्यार का कोटा होता है,
चैन आरक्षित होती है,
इस दिल की दुनिया में
अक्सर
कुछ ऐसी ख्वाहिश होती है,
उस देश की ख़्वाहिश होती है...