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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

क्यों लिखूँ?

क्यों लिखूँ?

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क्यों ऐसा

लिखूंजो पढ़ने लायक हो

या क्यों ऐसा करूं जो लिखने लायक हो

तुम खुद को ,अपने समाज को कितना

साफगोई से पढ़ते हो

और तुम कब वह सब वाकई में

कभी कहीं पढ़ा पाओगे

ईमानदारी से अपनो के बीच।

तुम बस देखो

लहलहाती फसलें

ऊंचे आसमानों में जाते यान

गोता लगाती पनडुब्बियां

घरो तक पहुंचती चौबीस घण्टे बिजली

और यशोगान करती कहानियां

ये ही भरे पेट सोने पर आती रही हैं

सपनो में तुम्हारे।

और मेरे अक्षरों में,

तुम्हारे सुख को पलीता लगाते हुए

तीखे सवाल हैं,

वो नमी है जो आंखों को पसीने के,

नमक से दुखा सकती हैं,

कर सकते है तुम्हारे हंसते चेहरों पर,

हमला भूख की पीड़ाओं के साथ,

वे छीन लेंगे तन पर इज़्ज़त का सुनहरा चोंगा,

छिपाए जाते फटेहाल हालात संग मिलकर,

कर देंगे बहरा तुम्हे अपनों की आवाजों पर,

सुना कर रुदन बेबस बचपन, उधेड़ी जवानी,

और ठेले गए बुढ़ापे का, 

जो अगर वाकई मैं लिखने लायक

करना शुरू करूं 

तो तुम्हारे कालीन के नीचे से,

अलमारियों के पीछे से

निकल आएंगे धूल के गुबार, कंकाल,

तब क्या करोगे तुम।

ये जो साथी है तुम्हारा समाज

वो भी तो है,

विपत्ति पर आपत्ति सा,

जनते हुए अपने जैसे,

कई कई हजार संक्रमित समाज,

झूठ ओढ़ते, फैलाते, काटते ,बांटते

सिर्फ मुहँजबानी ,जमाखर्च करते

मोटी पतली किताबों,पन्नो में।

तो मुझ को

मत कहो खर्चने को,

मेरी सोच जो,

लिखनी ,बतानी बेमायनी हो,

तुम्हारे लिए,

तुम सब के लिए।


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