भेद नहीं हम दोनो में
भेद नहीं हम दोनो में
नदी को
सागर में ही
मिलना है
जो नदी बीच राह
सूख भी जाए
तो भी आकाश की गोद में
कुछ दिन रह- बह कर
फिर से अपनी
दौड़ शुरू करती है
सागर की ओर
है न!
ये वो सच है
जो हमारी फिजिकल
कांशियस जानती है
क्योंकि देखा है
पढ़ा है उसने
यानी ये वो सब है
जो हमारा मस्तिष्क
हमें समझाता और दिखाता है
महसूस कराता है
मिलन की
तीव्र भौतिक इच्छा
या कभी
कभी मृगतृष्णा में।
मगर तुम
आहत न हो जाना
जो मैं कहूं कि
मैं अब तुमको
और खुद को
सागर और नदी
के रूप में
नहीं देखती।
हां अक्सर
मैं कांशियस लेवल
पर महसूस
जरूर करती हूं
यह भेद।
मगर अब
वो सुपर कांशियस
जो मुस्कराता रहता है
हमारे हर भौतिक
मिलन और विछोह पर
कि सच क्या है ये हम
जान कर भी नहीं
जान रहे?
वही मुझे दिखाता है
हर पल
हमारे अंतर की
उंगली थामे
हमारा सब कॉन्शियस
एक दूजे के
साथ ही है
एक दूजे में ही है
सो मुझे नहीं
महसूस होता तुमसे
नदी सागर सा भेद।
भौतिकता से परे
समझो तो मानो तो
मैं ही तो तुम हूं
तुम ही तो मैं हूं
हमेशा इस जग से परे
वहां भी और हर बार
हर जन्म में भी।