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Shakuntla Agarwal

Abstract

4.9  

Shakuntla Agarwal

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||"होली"||

||"होली"||

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187


होली मस्ती का त्यौहार,

छलके रंगों की फुहार,

उड़े अबीर और ग़ुलाल,

चारों तरफ छायी रंगों की बहार

,

लोग दे हँस - हँस के,

आज ताली दे,

नार हुई मतवारी रे,

मन हुआ लाल, 

तन हुआ लाल,

मस्ती में नाचें, 

नंद जी के लाल,


घर - घर में, 

रास हुआ भारी रे,

हमें तो मीठी लगे, राधा जी की गाली रे,

उठी जात की दीवार,

बरसे पानी की फ़ुहार,

उड़े रंगों की सौग़ात,

भीगे तन - मन आज,

हर नार हुई मतवारी रे,

हमें तो मीठी लगे, राधा जी की गाली रे,


तन में उठे हिलौर, 

नाचें मन का मोर,

चहुँ ओर ये शोर,

आया नंद - किशोर,

बजा के आज थाली रे,

हमें तो मीठी लगे, राधा जी की गाली रे,

मृदँग की थाप,


गाल हुए लाल,

उड़े मस्त ग़ुलाल,

मारे भर - भर के पिचकारी रे,

हमें तो मीठी लगे, राधा जी की गाली रे,

खेले मस्त मलंग,

गोरियों के संग,

पीके वो भंग,

गलियों में हुड़दंग,

बजा के चंग,

नार हुई मतवारी रे,

हमें तो मीठी लगे, राधा जी की गाली रे,


भाई - चारे का त्यौहार,

भई रँगों की बौछार,

भीगे नर और नार,

धुली मन की खट्टास,

गले मिलके आज,

हर नार हुई मतवारी रे,

हमें तो मीठी लगे, "शकुन" जी की गाली रे !


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