चिन्ता
चिन्ता
पंचतत्वों से देह बनी
"शकुन" माटी ही बिछौना
अन्त समय जब आयेगा
खाक के सुर्पद होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
बस में तेरे कुछ नहीं
विधाता चाहे जो होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
चाबी भारी खिलौने में
नाच - नाच मन मोहना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
कर्म तूने करना प्राणी
भाग्य लिखा जो होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
काल के हाथों परबस हैं
पल - पल हिसाब होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
राजा हो या रंक, फकीरा
हाल एक ही होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?
चिंता चिता एक समान
पल एक - एक खोना
घुन की तरहा जब लगे शरीर में
लकड़ी जूं बुर - बुर होना
फिर क्यों व्यर्थ की चिन्ता ?
क्यों व्यर्थ का रोना ?