कहानी जो मुझे राह में मिली थी
कहानी जो मुझे राह में मिली थी


एक हवा जो पूरब से चली थी
मेरे उसके इश्क़ के
चर्चे आज भी होते हैं।
वो जब यूँ आए थे हम तक
सभी पत्ते उल्लास से भरे हुए थे
फूलों ने भी अपना इत्र
उन पर न्योछार दिया था।
ऊपर की अड़ी डाली भी मग्न हो,
झूम गई थी।
सरसराती कानों में,
और ज़रा गुद्गुदाती
साथ लाए तोह्फे की बौछार,
मन को तर कर जाती।
छूने का अंदाज़,
एहसास बन रोम रोम में भरा था
अरे, इसी के इंतज़ार में तो
मैं सदियों से खड़ा था।
एक हवा जो पूरब से चली थी
वो, जो मुझे जड़ से हिला गई है
दर्द कहाँ कहाँ है कुछ बुझ नहीं
हाँ कुछ अपने थे, जो कहीं दूर गए।
कई पत्ते भी संग ले गई
देखता हूँ फूल भी नीचे बिखरे,
कीचड़ बन रहे
डाली उखड़ कहीं दूर गिरी,
मालूम नहीं कहाँ।
देह से गुजारता ये जो,
बारिश नहीं आँसू हैं मेरे,
जो अब जड़ सींचते
कहानी जो मुझे राह में मिली थी
एक हवा जो पूरब से चली थी।