ऐ वक़्त, तू वक़्त था
ऐ वक़्त, तू वक़्त था
पीले पन्नों को पलटते
सोंधी सी ख़ुश्बू आ रही थी
उन बिखरे सूखे फूलों पर नज़र गई
तो तेरा खयाल आ गया कि
ऐ वक़्त तू वक़्त था,
तुझे गुज़ारना तो था ही।
दूध से सफ़ेद ज़ोरों कोलाहल में
कहीं जो मिले थे दो किनारे,
उन्हें बिछड़ना तो था ही
गुनगुने से तीखे का विच्छेद करते
सुर्ख लाल सूरज को शाम तक,
ढलना तो था ही
ऐ वक़्त तू वक़्त था,
तुझे गुज़ारना तो था ही।
रौशन किए झिलमिलाता रहा
उस थरथराते दिये को बुझना तो था ही
सदियों से किनारों पर यादें बना जाते थे
तो हर आती लहरों से मौजूदगी का छाप,
मिटना तो था ही
ऐ वक़्त तू वक़्त था,
तुझे गुज़ारना तो था ही।
इठलाये जो भाप बन उड़ रहे थे
बून्द बून्द कर ज़मी पर गिरना तो था ही
खरों से बने थे जो घोसले कभी
उन् घरोंदों को तेज़ हवाओं में उड़ना तो था ही
ऐ वक़्त तू वक़्त था,
तुझे गुज़ारना तो था ही।