मौत ठहरती है वहाँ
मौत ठहरती है वहाँ
न रात हो, न दहकते तारे हों
चाँद भी मरता हो जहाँ
न रेत हो, न कुछ दूर किनारे हो
इक फूल भी न खिलता हो जहाँ।
न लोग हो, न रिश्ते साँस के सहारे हो
मुठ्ठी भर दर्द के सिवा,
कुछ और न बिकता हो जहाँ।
न ज़िस्म-ए-सिहिरता हो,
न होश पिघलता हो
लहू में लिपटा पशम भी
मचलता हो जहाँ।
न तुर्श हो,
न कोई गुज़रता झोंका हो
सर्द और बेजान सा
ओस ही बरसता हो जहाँ।
न फिज़ा-ए-रंग हो,
न उसका कोई अंत हो
तरसते होठों पर
रूह न ठहरती हो जहाँ।
न पल भर का कोई हर्ष हो,
न सदियों का जख़्म हो
तड़पन के अश्क़ों में
रक़्त न बहाता हो जहाँ।
न अतात में रंज़ हो
न आपस में द्वन्द हो
नफ़रत-ए-मोहब्बत से दूर
मौन की सियासत हो जहाँ।
हाँ, मौत ठहरती है वहाँ।