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Priyanka Gautam

Abstract

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Priyanka Gautam

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मौत ठहरती है वहाँ

मौत ठहरती है वहाँ

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न रात हो, न दहकते तारे हों

चाँद भी मरता हो जहाँ

न रेत हो, न कुछ दूर किनारे हो

इक फूल भी न खिलता हो जहाँ।


न लोग हो, न रिश्ते साँस के सहारे हो

मुठ्ठी भर दर्द के सिवा,

कुछ और न बिकता हो जहाँ।


न ज़िस्म-ए-सिहिरता हो,

न होश पिघलता हो

लहू में लिपटा पशम भी

मचलता हो जहाँ।


 न तुर्श हो,

न कोई गुज़रता झोंका हो

सर्द और बेजान सा

ओस ही बरसता हो जहाँ।


न फिज़ा-ए-रंग हो,

न उसका कोई अंत हो

तरसते होठों पर

रूह न ठहरती हो जहाँ।


न पल भर का कोई हर्ष हो,

न सदियों का जख़्म हो

तड़पन के अश्क़ों में

रक़्त न बहाता हो जहाँ।


न अतात में रंज़ हो

न आपस में द्वन्द हो

नफ़रत-ए-मोहब्बत से दूर 

मौन की सियासत हो जहाँ।

हाँ, मौत ठहरती है वहाँ।


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