मुक्तक
मुक्तक
1- शिकवे गिले को आप अपने, दूर करके देखिए।
हर प्राणी से प्रेम तो, भरपूर करके देखिए।।
नहायेगा बंधुत्व की सरिता, में संसार सारा।
इंसानियत का उर में अपने, नूर भर कर देखिए।।
2- पीली सरसों पर गौरैया, चहकने लगी।
स्वर्ण गोधूम की बालें, अब पकने लगी ।।
अमराइयों से होकर, जो पूरबा चली।
ऋतु वसंत में दिशाएं, सब महकने लगी।।
3- गर्मी की तपिश से, चेहरे लाल हो गए।
आग बरसाता है दिनकर, श्वेद से भाल हो गए।।
पशु-पक्षियों के जीवन का, भला क्या हश्र होगा।
छांव की खोज में, छांव बेहाल हो गए।।
4- मंदिर में अजान, मस्जिद में आरती कर लेंगे।
ईद होली खुदा, ओम को दिलों में भर लेंगे।।
मां भारती की संतानें, भारतीय कौम हमारी।
प्रेम अहिंसा के बूते, दिलों में पनाह कर लेंगे।।
5- धरम तो जग में बहुतेरे, अपनाने का मन नहीं होता।
जातियों में बटी राहें, किसी में अपनापन नहीं होता।।
मजहब जाति के झंडे तले, जनता देश की कटती निशदिन।
मानवता से बेहतर कोई, धरम का सच्चा धन नहीं होता।।
6- पीत-पात पीपल से, शिराएं झांकने लगी।
खेतों में लहलहाती, बालियां ताकने लगी।।
मलयज की मंद महक, अमराई से ज्यों चली।
कोकिल की मधुर तान, दिशाएं ढाकने लगी।।
7- हिंसा के बल पर जीत का, सम्मान न हुआ।
लोगों का जग में ऐसे ही, यशगान न हुआ।।
प्रेम अहिंसा बंधुत्व को, अपनाया बहुतों ने।
पर बापू-सा कोई व्यक्ति, महान न हुआ।।
8- आंसू भरी श्रद्धांजलि, देते ये नयन हैं।
गुदड़ी के लाल ने, सींचा ये चमन है।।
जय जवान जय किसान, उद्घोष जो किया।
ऐसे मां के लाल को, हम करते नमन हैं।।
9- कड़ाके की ठंडी है, ओस ओले भी गिरते हैं।
नलों में पानी जम जाते, फ़र्श कितने ठिहरते हैं।।
सर्द रातों की ठिठुरन, तुम जरा उस शख्स से पूछो।
कटे फुटपाथ पर रातें, देख रोएँ सिहरते हैं।।
10- बारिश का ये मौसम है, गगन में मेघ छाए हैं।
नया जीवन मिला तरु को, खगों ने गीत गाए हैं।।
छूती लोल लहर बूंदें, रोमांचित गात हो जाते।
हरी चुनर सजी धरती, सभी के मन को भाए हैं।।
