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Rajendra Kumar Pathik

Others

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Rajendra Kumar Pathik

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तनिक वहां तो चलें

तनिक वहां तो चलें

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घनी वृक्षों की हरीतिमा, लता व बल्लरियाँ।

विविध रंगों में रंगें, पाटल पुष्प क्यारियाँ।।

आओ मेरे साथ बंधु, तनिक वहां तो चलें।।


कल-कल नाद से नादित, पथ नापती नदी।

तमाल-तरु दुई कर जोरे, मां ने कलुष हर दी।।

वृक्षों की चंचलता, का सुंदर वितान।

तृप्त नहीं तृषित नयन, आकर्षण की खान।।

हिरणों की सुकुमारता, मन में एहसास पले।।

आओ मेरे साथ बंधु, तनिक वहां तो चलें।।


निर्जीव तृण-पत्र निर्मित, जीवित लघु कुटिया।

बहती मानवता-सिक्त, प्रेम रूपी नदियां।।

पखेरू की मधुर तान, कर्ण-सिंचन करें।

अंबुज-मुख-चुंबन हो, जब अलि-गुंजन करें।।

विहगों के पंखों संग, मन घूमे टहले।।

आओ मेरे साथ बंधु, तनिक वहां तो चलें।।


सुबह की सुनहरी किरन, झुरमुट से झांके।

तरु-पत्रों के विविध विम्ब, कुटिया को नापे।।

बरखा की लोल-लहर, भित्ति से कुछ बोले।

सागर की सारी कथा, मन की गांठ खोलें।।

रिमझिम का मधुर गान, दिल सुनने को मचले।।

आओ मेरे साथ बंधु, तनिक वहां तो चलें।।


निशा के रजत-दुकूल हैं तारिक-जटित।

कीधौ  पारिजात पुहुप, छटा हो अखंडित।

कौमुदी है बर्फ सरिस, नभ धरा बीच छिटकी।

रजनी का राजा बना, डर होवे किसकी।।

चंद्रिका की रजत धार, बहे हौले-हौले।।

आओ मेरे साथ बंधु, तनिक वहां तो चले।।


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