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Rajendra Kumar Pathik

Classics

4  

Rajendra Kumar Pathik

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निवेदन

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भगवन ऐसी कृपा करते, जिससे जनम सफल हो जाता।

लघु-जीवन में महिमा गाकर, भवसागर से तर मैं जाता।।


मानवता की रास थामकर, उस पर प्रेम आरुढ़ कराकर।

भाईचारे के अश्वों को, नैतिकता का पाठ पढ़ाकर।।

समता-ममता के नील गगन में, उड़ता और अमर हो जाता।।


निर्झर के झर-झर में रमता, मेघों में चपला चमकाता। 

शून्य-फलक नीरवता लाता, रोम-रोम पुलकित हो जाता।।

इंद्रधनुष के सप्त रंग ले, मम जीवन मधुमास हो जाता।।


माया का बंधन तगड़ा है, जिसमें मानव-मन जकड़ा है।

सुख-शांति के पांव-पंक में, लोभ मोह ने कर पकड़ा है।।

ज्ञान-सुधा के रस में भीगकर, तृषित हृदय हर्षित हो जाता।।


झिल्ली की झंकार में हो तुम, कोकिल के कंठों तुम्हीं हो।

जलचर के तुम नीर बने हो, प्राणों के आधार तुम्हीं हो।।

खद्योतों के पथालोक से, तिमिराछन्न  तिरोहित होता।।


उपवन में है तान तुम्हारी, लगती मृदुल-मृदुल सुखकारी।

गुंजन-रव पक्षी कलरव से, मकरंदी ज्वारों की सवारी।।

स्वर-लहरी के दिव्य क्षणों को, सुनकर 'पथिक' तन्मय हो जाता।।


भगवन ऐसी कृपा करते, जिससे जनम सफल हो जाता।

लघु-जीवन में महिमा गाकर, भवसागर से तर मैं जाता।।


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