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Rajendra Kumar Pathik

Abstract

4  

Rajendra Kumar Pathik

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वर्षा-रानी

वर्षा-रानी

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बादलों के रूप धरकर ,

आ गई ऋतुओं की रानी। 

मग्न होकर जीव जंतु, 

बोलते सब हर्ष बानी।


तारावलियों के बेल-बूटे, 

से जटित परिधान हैं, 

झर रहे आंचल से जुगनू, 

दामिनी मुस्कान हैं। 


झमाझम की मधुर ध्वनियाँ,

आ रही पग नूपुर से।

दिन में तम आभास देता,

केश घन के लहर से। 


टप टपाकर गिर रहे हैं,

कोपलो से स्वच्छ पानी।

बादलों के रूप धरकर ,

आ गई ऋतुओं की रानी।

मग्न होकर जीव जंतु, 

बोलते सब हर्ष बानी।


चंद-मुख पर नवेली ने,

झीने घन के घूंघट काढ़े।  

चली आ रही धीरे-धीरे, 

स्वागत में तरु हैं सब ठाढ़े।


मंद पवन के झोंकों से, 

हट जाता घूंघट तत्क्षण में।

निहार-निहार करताल बजाता, 

पीपल लीन निरीक्षण में।

कानन में शिखि बोल उठे, 

पीउ-पीउ की सुंदर बानी।


बादलों के रूप धरकर ,

आ गई ऋतुओं की रानी। 

मग्न होकर जीव जंतु,

बोलते सब हर्ष बानी।


हरे दुकूल से धरती पायी, 

हरियाली का हरा रंग। 

जलचर नभचर हरे हो गये,

मुदित हो गया उनका अंग। 


बेला गंधराज के गहने,

राजते  हैं रूपसी तन पर।

कोकिल, दर्दुर ने मधुर गीत,

वारे हैं वर्षा रानी पर।

वक्षस्थल पर उड़ते उज्ज्वल,

बक पातों की हार निराली।


बादलों के रूप धरकर ,

आ गई ऋतुओं की रानी।

 मग्न होकर जीव जंतु,

 बोलते सब हर्ष बानी।


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