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rudraksh sharma

Abstract Inspirational

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rudraksh sharma

Abstract Inspirational

कहना

कहना

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तैर चली एक मछली

भाव के समुद्र से

भाषा के रूप में

बाँटे समुद्र से बेखबर

एक सहअस्तित्व की खोज में


होकर गुज़री बहुत सी जगहों से

नाम अलग थे स्थानों के

पर तत्व एक था

सीमाएँ लुप्त थी


इसका विस्तार था

धरती से आकाश तक

पर आकाश तक

भाषा पहुँच न सकी

बस भाव ही शुद्ध हो

उड़ चले थे 

साथ हो

बादल बन

भाषा को पोषित करने

बरसने को



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