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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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आसमान घोंसला

आसमान घोंसला

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आसमान कब झुका है ,

 किसी भी पंछी की चाहत में ?

 

 फिर भी चुनता है हर एक पंछी आसमान को !

पंछी के अस्तित्व के लिए घोंसले से ज्यादा जरूरी हो जाता आसमान ; 

सवाल पहचान का जो ठहरा !


 जैसे तुम्हारे लिए जरूरी है , 

तुम्हारी स्वछंदता का आसमान, 


जहां तुम फैला सको स्वतंत्र हो कर अपने पंख _ 

क्योंकि शायद तुम्हारी पहचान को रौंदने के लिए ही बने हैं यह घोंसले ।


मैं चाहता हूं,

तुम्हारी पहचान बने तुम्हारे सपने और आशाएं :

भले फिर उस पहचान कि कीमत हो, 

उस घौंसले का टूट जाना या आसमान में पनाह पाना ।


हो सकता है,

घरौंदे से बिछड़े पंछियों की पीड़ा का भान ना हो मुझे,


लेकिन मेरा यकीं करो, मैंने सुनी है चीख उन पंछियों  की जिनके पर कतर दिए गए :


और इस से भयावह वो चीख ,

जो मेरी रूह को तार तार कर देती है -

उस पंछी की, 


जिस ने खुद ही कतर दिए थे अपने पंख : 

कभी घोंसले की घुटन के चलते तो कभी विशालकाय आसमान के आगे ।


लेकिन याद रखना, 

तुम्हारे पंख तुम्हारी उड़ान के गवाह बने ना बने पर मेरी जान वो हमेशा रहें तुम्हारी स्वछंदता की वजह ।



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