संसार और समझ
संसार और समझ
संसार को समझने के लिए एक पहर भरकर चुप चाहिए या दो चार अर्थहीन संवाद कि , व्यर्थ होते समय की पीड़ा समझ सको पढ़ सको कुंठा , उत्तेजना , क्रोध और सहला सको दुखते स्वरों को प्रेम को आकारों में और अनजान चेहरों में पा सको जब नामों और संबोधनों का होना गौण हो किसी के जाने के पश्चात " छोड़कर गया " शब्द निषेध किया जाय विदा के समस्त संस्कार सहज स्वीकार हों जैसे रात्रि विश्राम के पश्चात सूर्य के उदय पर ह्रदय की शीतलता या व्रक्ष पर नवपल्लव का उगना जब जाने की प्रक्रिया छूटना या मोक्ष हो जाय चित्त को सत-चित-आनंद के भाव से जान सको जब सापेक्षता के सभी सिद्धांत भौतिकी से पहले सुख-दुख पर लागू कर सको संसार के प्रपंच को तब समझना जब गृह प्रवेश के रंगीन पदचिन्ह बिसर जाएं जैसे कोई पीड़ा में कराहना भूल जाएं जैसे पेट भर हंसी रुकना भूल जाए जैसे शिशु जन्म लेते ही नाम-कुल-गोत्र पहनाए बिना नग्न रखा जाय जैसे स्त्री को मानुष होना याद रह जाय और पुरूष को विशेष प्रजाति के सर्वनामों से मुक्त कर दिया जाय जब स्वाद की तृष्णा सूखे चनों की एक फाँक पर समाप्त हो जाय भूख को जठर अग्नि से परे मुट्ठी भर भात से समझ सको अच्छा सुनो , संसार को समझने के लिए तुम चिड़ियों का घोंसला छोड़कर उड़ जाना देखना बस...
