चेतना
चेतना
चेतन और अचेतन के बीच की नाजुक रेखा पर जीवन नाचता है, जैसे कोई नदी किनारों के बीच अपनी राह बनाती है। मन का एक छोटा-सा कोना, जो चेतन कहलाता है, वह दस प्रतिशत की सीमा में सिमटा है—वह सोचता है, तर्क करता है, निर्णय लेता है। लेकिन उसका दायरा कितना छोटा है! बाकी नब्बे प्रतिशत, वह अचेतन की गहरी, रहस्यमयी दुनिया, जो बिना आवाज़ के जीवन को संचालित करती है। वह ऐसी शक्ति है, जो हर पल, हर साँस, हर कदम में हमारे साथ चलती है, फिर भी हम उसे देख नहीं पाते। जरा सोचिए—जब आप सुबह उठते हैं, तो बिना सोचे दाँत ब्रश करते हैं, चाय की चुस्की लेते हैं, या सड़क पर चलते हुए किसी गड्ढे से बच जाते हैं। यह सब अचेतन का जादू है। वह ऑटोमोड की तरह काम करता है, जैसे कोई अनदेखा यंत्र जो बिना रुके, बिना थके, हर क्रिया को संभालता है। पलकें झपकाना, किसी की बात पर तुरंत गुस्सा हो जाना, या अनायास हँस पड़ना—ये सब उसी की देन है। वह हमारे भीतर की प्रोग्रामिंग है, जो अनुभवों, संस्कारों, और आदतों से बनी है। लेकिन यही अचेतन, अगर बिना लगाम के छोड़ दिया जाए, तो जीवन को भटका भी सकता है। कोई कटु शब्द सुनकर दिल में चुभन, या पुरानी यादों का साये की तरह पीछा करना—यह सब उसी की करामात है। जैसे कोई पुराना रिकॉर्ड, जो बार-बार वही धुन बजा देता है। अगर हमने उसे गलत धुनों से भरा, तो वह गुस्सा, दुख, या भय की गूँज लौटाएगा। लेकिन अगर हम उसे शांति, प्रेम, और संवेदना से पोषित करें, तो वह उसी तरह जवाब देगा—जैसे कोई साफ़ दर्पण, जो सामने की छवि को बिना तोड़े-मरोड़े दिखाता है। जीवन की कला यही है—अचेतन को समझना, उसे संवारना। जब हम एक पल ठहरते हैं, साँस को महसूस करते हैं, या अपने क्रोध, भय, या खुशी को साक्षी बनकर देखते हैं, तो चेतन की रोशनी उस अंधेरे कोने में पड़ती है। यह ठहराव जादू की तरह है। मान लीजिए, कोई आपको चोट पहुँचाने वाली बात कहता है। उस पल में अचेतन तुरंत प्रतिक्रिया देना चाहता है—शायद गुस्से से जवाब देने को, या चुप रहकर भीतर ही भीतर सुलगने को। लेकिन अगर आप उस पल को पकड़ लें, एक गहरी साँस लें, और अपने मन को देखें, तो वह आग ठंडी पड़ने लगती है। यह चेतना का कमाल है—वह अचेतन की बागडोर थाम लेती है। यह प्रक्रिया आसान नहीं है। यह एक साधना है, जैसे कोई माली बगीचे को सींचता है। हर बार जब आप अपने विचारों, भावनाओं, और प्रतिक्रियाओं को देखते हैं, आप अपने अचेतन को नया आकार देते हैं। यह मनोविज्ञान का गहरा सच है—हमारी हर क्रिया, हर भाव, हर संवेदना एक बीज है, जो अचेतन की मिट्टी में बोया जाता है। और वही बीज एक दिन फल बनकर लौटता है। अगर आप प्रेम, करुणा, और समझ के बीज बोएँगे, तो आपका जीवन शांति और संतुलन का बगीचा बनेगा। इसलिए, जीवन को एक नृत्य की तरह जीएँ—जहाँ चेतन और अचेतन एक साथ ताल मिलाएँ। हर कदम में जागरूकता लाएँ। जब आप हँसते हैं, तो उस हँसी को महसूस करें। जब दुख आए, तो उसे गले लगाएँ, लेकिन उसमें डूबे नहीं। जब गुस्सा आए, तो उसे देखें, जैसे कोई बादल आकाश में तैर रहा हो। इस जागरूकता में ही मुक्ति है। यही वह रास्ता है, जो हमें अचेतन की गहराइयों से चेतना की ऊँचाइयों तक ले जाता है। और तब जीवन सिर्फ़ एक आदतों का सिलसिला नहीं रहता—वह एक सुंदर, संवेदनशील, और जीवंत यात्रा बन जाता है।
