आज का दिन खाली बीता
आज का दिन खाली बीता


आज का दिन खाली बीता
करने को तो हजार काम थे
पर खुद की बकबक से
उलझा रहा !
आज का दिन खाली बीता
मंजिल की सोच में डूब कर
मंजिल से खुद को दूर करता रहा।
आज का दिन खाली बीता
आज उनकी भी तो याद आ गई
शायद इसलिए खुद को
कबाड़ी समझकर
उनके फेंके मोहब्बत के
सारे कचरे समेटता रहा।
आज का दिन खाली बीता
उन्हें भारी मन से याद कर,
ग़म के आंसू बहाकर
अनगिनत दीये जलाता रहा।
आज का दिन खाली बिता
खुद अंधकार में रहकर,
उन्हें रोशनी दिखाता रहा
दुनिया की नजरों में सनकी बनकर,
उनके लिए खुद को
जलील करवाता रहा !
आज का दिन खाली बिता
कुछ दोस्त कहते है सिनेमा घर जाने को
सारे ग़म को भूल,
पर्दे से दिल लगाने को
दिल में बसे अनगिनत
यादों को दफना कर,
किसी पर्दे से प्रीत लगाने को !
पर क्यों न मैं आंखें बंद कर लूँ
खुद को किसी कमरे में बंद कर लूं
वैसे क्या दिखेगा पर्दे पर भला
जो जाने का मन हो !
आज का दिन खाली बीता
अच्छा है खुद के मन
में ही झांक लूँ
क्या, मेरा जीवन किसी
सिनेमाघर के पर्दे से कम है !
जो वहां जाने का दिल हो
वैसे सिनेमा घर के पर्दे पर
तो प्रेयसी मिल भी जाएं
पर हमारे जीवन में तो
सन्नाटे के संग बस ग़म ही मिल पाएं !
आज का दिन खाली बीता।