कुछ बातों को छोड़ दिया
कुछ बातों को छोड़ दिया


कुछ बातों को मैंने यूं सन्नाटे में
दबे पांव से जाकर छोड़ दिया
कुछ हल्के से मुस्कान लिए
ऊपरी दुनिया में, लेकिन भीतर से,
आंधी लिए मन को छोड़ दिया...
बाहर से जो दिखता है वह अकसर
मृगतृष्णा भी हो सकता है क्योंकि
भीतरी परत जीवन के जितने जटिल
होते जाते हैं, अकसर दिखावा
वहीं से शुरू होता है...
बातें याद ही रह जाती है और
जो काम की होती है यादें वह
किसी और का हंसी में उड़ जाती है
इसलिए मैं फिर से यही बोलूंगा
कुछ बातों को मैंने यूं सन्नाटे में
दबे पांव से जाकर छोड़ दिया...!