ठान ले तुझको है जीना ऊंचा उठा के सर। ठान ले तुझको है जीना ऊंचा उठा के सर।
मैं नदी हूं जो निरन्तर बहती हूं सब कुछ चुपचाप ही सहती हूं। मैं नदी हूं जो निरन्तर बहती हूं सब कुछ चुपचाप ही सहती हूं।
कोई अल्हड़ हँसता रहता है। देखे मैंने हरदिल बस्ते ! कोई अल्हड़ हँसता रहता है। देखे मैंने हरदिल बस्ते !
जब भी उपयोग करें शिल्प द्वारा निर्मित प्रस्तुत वस्तु, अवश्य स्मरण करें हर श्रमिक के कष्ट क्लेश की... जब भी उपयोग करें शिल्प द्वारा निर्मित प्रस्तुत वस्तु, अवश्य स्मरण करें हर श्र...
रहस्यों से भरा मानव-मस्तिष्क क्या कभी खोल पायेगा स्वयं को एक खुली किताब की तरह । रहस्यों से भरा मानव-मस्तिष्क क्या कभी खोल पायेगा स्वयं को एक खुली किताब की तरह...
वेद पुराण सब पढ़ डाले इसने पर फिर भी यह भेद पता नहीं कर पाती। वेद पुराण सब पढ़ डाले इसने पर फिर भी यह भेद पता नहीं कर पाती।