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मुझ जैसे लोगों के लिये ही आ बैल मुझे मार कहावत बनी है। मुझ जैसे लोगों के लिये ही आ बैल मुझे मार कहावत बनी है।
उसका गूढ रहस्य आज समझ आ रहा था। उसका गूढ रहस्य आज समझ आ रहा था।
मैंने बिना कुछ सोचे सारे पत्र उठाये और नाव बनाने चल दी बच्चों के लिये। मैंने बिना कुछ सोचे सारे पत्र उठाये और नाव बनाने चल दी बच्चों के लिये।
फेल होने का इतनी आदत सी हो गयी थी कि रामसिहं सोचता कि क्या कभी मैं भी पास हो पाऊँगा या फेल होने का इतनी आदत सी हो गयी थी कि रामसिहं सोचता कि क्या कभी मैं भी पास हो पाऊ...