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Indu Barot

Drama

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Indu Barot

Drama

पत्र जो लिखा पर

पत्र जो लिखा पर

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आज बरसात बहुत तेज हो रही है। वैसे भी लंदन में मौसम चाहे कोई भी हो बरसात हमेशा रहती है। बरसात अपना तालमेल सबके साथ बिठा ही लेती है। चाहे धूप हो, पतझड़ हो या हो ठण्डी।

छोटी बेटी दौड़ कर आती है और जिद करने लग जाती है कि नाव बना कर पानी मे बहानी है। आज देखो ना बगीचे में खूब पानी इकट्ठा हो रहा है। एक बार तो ग़ुस्सा आया कि क्या फालतू के काम करने,वैसै भी फालतू में ही खुश होना या इन्जॉय करना,बहुत अजीब लगता था। स्वभाव में ही नहीं है। हमेशा सोचती रहती हूं कि लोग कैसे इतना ख़ुश रहते हैं,इन्जॉय कर लेते हैं। कोई चिन्ता फ़िक्र नहीं है क्या जीवन में। उफ़्फ़ फिर से दार्शनिक बातें....

बेटी के बार बार ज़िद करने के कारण सोचा बना देती हूँ एक दो नाव नहीं तो फिर से मोबाइल या आई पेड लेकर बैठ जायेगी। बच्चों के बहाने में भी थोडा बचपन जी लूँगी। बड़ी बेटी को आवाज़ लगाई की अलमारी से पुराने कागज ले आ,एक दो बार आवाज लगाने पर कोई असर नहीं हुआ और इतना मुझमें भी धैर्य नहीं कि इंतज़ार कर सकूं।  

खुद ही जाकर अलमारी से पुराने कागज निकालने लगी,तभी कुछ काग़ज़ नीचे गिर कर तितर-बितर हो गये। स्वयं पर ही भुनभनाती उन को उठाने लगी और काम बढने का हल्ला करने लगी। तभी अचानक कुछ हाथ मे आया जिसको देख पुरानी यादों में खोने लगी, ये कुछ और नहीं पुराने पत्र जो लिखे तो थे पर कभी भेजे नहीं गये। बेटी हल्ला किये जा रही थी कि जल्दी करो पर मैं तो खो चुकी थी यादों में जब रोज पति को पत्र लिखती थी।

कभी कभी होता है ना कि हम अपनी भावनाओं को, अपने मन की पीडा को या फिर अचानक मिली खुशीयों को किसी के साथ साझा करना चाहते हैं पर वह उस समय वहाँ उपस्थित ना हो तो उन सबको शब्द देकर पन्नों पर उतार देतें हैं।

उस समय कैसे बेताब हो जाती है कलम सब कुछ लिख देने को,बता देने को सब मन का हाल।

मुझे तो पता भी नहीं रहा घर गृहस्थी में कि ये बिना भेजे पत्र अभी तक मेरी अलमारी को महका रहे थे। पत्र में ये शब्द नहीं थे ये थे मेरे अहसास का दरिया जो मैं मेरे पति से साझा करना चाह रही थी। आज अगर अब इन पत्रों को पढ़ने बैठे तो उनका रिएक्शन क्या हो,सोच कर ही हंसी आ रही है।

जोर जोर से आवाज आने के कारण ऐसे लगा कि निद्रा से जागी हूं देखा दोनों बहनें बहस कर रही हैं कि मैं पहले नाव लूँगी। मैंने बिना कुछ सोचे सारे पत्र उठाये और नाव बनाने चल दी बच्चों के लिये।

नाव बनाते बनाते सोचने लगी कि आज ये पत्र जिनको पति को पढ़ाये भी नहीं, अपनी पुरानी यादें अपने अहसास जो अनजाने में ही सही एक थैले मे बंद कर इतने सालों तक रखे थे,उन सबको कैसे मैं पानी में बहा रही हूं।

दोनों बच्चियाँ नाव लेकर पानी में बहा रही हैं और ताली बजाकर खुश हो रही हैं, मैं उनको खुश होते देख खुश हो रहीं हूं।

देख रहीं हूँ अपने मन के अहसास को शब्द बनाकर जो पत्र लिखे जो कभी भेजे नहीं कैसे पानी में विलिन हो रहे हैं।


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