Tulsi Tiwari

Drama

4.4  

Tulsi Tiwari

Drama

राख के नीचे

राख के नीचे

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वह धीरे- धीरे उसका तलवा सहला रहा था।

’’अपने पाँव नीचे मत रखना मिती, मैले हो जायेंगे। मैं तो हिन्दुस्तान का राजा हूँ, तुम्हें सदा फूलों पर चलाऊँगा, हजारों नौकर-चाकर तुम्हारे इशारे के इंतजार में खड़े रहेंगे। फूलों को भी तोड़ कर लाना नहीं पड़ेगा जहाँ तुम मुझे देख कर मुस्कराई कि अपने आप फूलों की वर्षा हो जायेगी। ’’

वह उसके होठों को चूम रहा था ।

’’हाँ मेरे प्यारे चंदन, मैं तुम्हारे राज्य की अकेली महारानी! बस कुछ ही महीने, लाल नीले पीले रंग के वलयों का ऊपर नीचे होता नर्तन ,दोनो एक दूसरे का हाथ थामें आकाश में उड़ चले थे। बादलों के पार जहाँ परियाँ नाच रहीं थीं। मधुर संगीत बज रहा था। ’हौले-हौले सुबह हुई पंछी जागे। उठो ऐ सोने वाले भोर जगाये। अरे ये क्या ? बार-बार यही लाइन ! वह हड़बड़ा कर उठ बैठी।

’’यह कौन आ मरा सुबह-सुबह ? और वह कहाँ चला गया ? जरा दरवाजा भी नहीं खोल सकता ! कितना सुहाना सपना था? ओह! ’’ उसके पूरे अंग में झुरमुरी सी हो रही थी, उस पर सपने का प्रभाव पूरी तरह छाया हुआ था। जरा सा आँखें खोल कर उसने अपने गाउन की तलाश की, वह दूर पलंग के दूसरे किनारे पर पड़ा हुआ था। इस बीच कभी गाना बजता जो उसके डोर वेल का रिग टोन था, कभी दरवाजे पर थाप पड़ती।

’’ आ रही ऽ.....ऽ......ऽ हँू!’’ उसने अनमने स्वर में आवाज का उत्तर दिया। उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे।

उसने बगल वाले कमरे से दरवाजे की ओर बढ़ती पदचाप सुनी । ’’अब जा रहा है, जब मेरा सपना टूट गया।’’ वह गुस्से से बड़बड़ाई,

’’हाय! सर दर्द से फटने लगा।’’ उसने दोनों हाथों में लेकर अपना सिर दबाया।

वह लूंगी के ऊपर शर्ट पहनता दरवाजे की ओर बढ़ रहा था। दरवाजा खोला तो सामने कल्पना मैडम अपना बड़ा सा बैग संभालती खड़ीं थीं।

’’आइये’ आइये मैडम! आज सुबह-सुबह कैसे आना हुआ?’’वह दरवाजे से हट गया था।

’’सुबह ही है अभी तक? दोपहर के एक बज रहे हैं।’’ मैडम अन्दर आकर सोफे पर बैठ चुकी थीं।

’’अच्छा हो उसी से बात करती रहे, नंबर वन की माथा है डोकरी, सब बनावटी, बालों में एक भी बाल ह्वाइट नहीं मिलेगा, लगता है हर हप्ते पार्लर जाती है। दाँत भी अवश्य नकली ही होंगे। साड़ी की कलफ देखो ! एकदम कड़क। अच्छी छनने लगी है दोनो की , अच्छा है छने अपने को क्या ? अपन तो बस दिन गिन रहे हैं अठारह साल इधर पूरे हुए उधर उड़...ऽ..ऽ छू!..! ,उसने एक बेफिक्री की अंगड़ाई ली और मुँह धोने के लिए वाॅशरूम चली गई।

’’ मिति नहीं दिख रही है ?’’ उन्होंने उसके कमरे की ओर अपनी निगाहें घुमाईं।

’’उसका अभी उठने का टाइम कहाँ हुआ है? पूरी रात मोबाइल से लगी रहती है, जब नींद खुलती है तब सुबह होती है। आप की आवाज सुन कर उठी है ऐसा लगता है।’’ उसकी आवाज में वही तिरस्कार था जिसे सुन कर मिति का आधा खून जल जाया करता है। वह रात भर जागे या दिन भर सोये किसी को क्या मतलब है ? अपना दिन भर छछुन्दर की तरह छुछुआता है तो कौन कहने जाता है? जिसे पायेगा बस उसकी ही शिकायत करेगा। गोबर जैसा मुँह बना कर। उसकी तो तकदीर ही फूटी थी जो माँ चली गई उसेे छोड़कर। इतनी स्वस्थ , इतनी सुन्दर ! देख कर कोई कह नहीं सकता था कि पचास के पेटे में है, वैसे ही सुव्यवस्थित रहन-सहन, उनका सिंदूर टीका मलीन कभी नहीं देखा था मिति ने। पता नहीं कब उठती थीं कब सोती थीं? उनके रहते इसकी भी पहचान कहाँ हो पाई थी ? वैसे यह पहले भी उसे घूर-घूर कर देखता था। कहता भी था - मेरे भांजे को पाल क्या दी तुम्हारा हक बन गया अपने मैके वालों को रखने का। इससे मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है। तुम लाद रही हो मुझ पर इसे।

कहता तो सच ही है इससे उसका खून का क्या, कोई रिश्ता नहीं है। यह उसका मौसा लगता है तो क्या हुआ इससे ब़ड़ा दुश्मन कोई नहीं दुनिया में। एक तो उसके माँ बाप उस हिंसा के शिकार हो गये जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। छोटे चाचा ने दिन दहाड़े घर में घुस कर खाना खाते पिताजी एवं गिलास में पानी ढालती माँ को गोलियों से भून डाला था। वह संभव के साथ पड़ोस में खेल रही थी, घटना की खबर सारे मोहल्ले मे आग की तरह फैल गई। पड़ोसन ने उन्हें ऐसा छुपाया कि हत्यारा उन्हें ढ़ूढ़ता ही रह गया, वह पूरा वंश नाश करके उनकी सम्पत्ति हड़पना चाहता था। बाद में जब वह कुछ दिनों के लिए जेल गया तब बड़ी मौसी उसे ले आई और छोटी संभव को ले गई।

तीन साल छोटा है मिति से। अब तो वह भी बड़ा हो गया होगा। छोटी मौसी उसे अपने साथ जापान ले गईं, आज तक दोबारा भाई-बहन एक दूसरे से नहीं मिल सके, शायद इस डर से भी कि कहीं दुश्मन उसकी जान के पीछे न पड़ जाय। छोटी मौसी न स्वयं कभी देश लौटीं न संभव को ही भेजा। वह अपने माता-पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई थी। बहुत दिन तक तो लगता था सब झूठ कह रहे हैं वे हैं इस दुनिया में, लेकिन कब तक सच से आँखे मूंदे रहा जा सकता था?

’’ अरे कहाँ हो भई मिति बिटिया ? जल्दी से इधर आ जाओ मैं तुम्हारी पसंद के दही बड़े बना कर लाई हूँ

’’ यह पहले-पहले उसे ही मिली थी आनंद मेले में, उसने अपनी सहेलियों के साथ पाॅप कार्न का स्टाॅल लगाया था। वह मेले में किसी संस्था के बच्चों को लेकर आई थी। माँ के न रहने की बात जानकर एकदम से चिपक ही गई । आज तक कुँआरी घूम रही है लगता है अभी तक इसकी तलाश जारी है अपने जीवन साथी की। । ठाकुर साहब-ठाकुर साहब करती रहती है। देख ही रही है अच्छे पद पर काम कर रहा है। घर द्वार सब जमा जमाया है। आज भले ही बाप बेटी अपने-अपने खाने का इंतजाम अपने हिसाब से करते ह,ैं घर में सब वस्तुएं बिखरी पड़ी हैं। संडे छोड़ कर नौकरानी के लिए दरवाजा खोलने वाला कोई नहीं रहता था इसने चिढ़ कर उसे छुड़ा दिया था वह जो निलेश सिंह ठाकुर कहलाता है।। हाँ..ऽ...ऽ..! पूछे न ऊछे मैं दूल्हे की चाची, अब ये आ रही हैं माँ बनने ।’’ उसने घृणा से मुँह में भरा टूथ पेस्ट थूक दिया। लगता है कुछ खिचड़ी विचड़ी पकने लगी है। अभी मात्र तीन महिने ही हुए हैं पहचान हुए और हर रविवार को आने लगी है किसी न किसी बहाने से। यह तो जब से बीवी मरी है एकदम से पागल हो गया है दो-चार दिन वह स्कूल क्या नहीं गई नाम ही कटवा दिया।

दो साल हुए माँ को गये, स्तन केंसर से मरी थी। इलाज में तो कोई कमी नहीं किया था इसन,े मुंबई ले ले कर जाया करता था। दो दो तीन-तीन बार आॅपरेशन हुआ, बड़े कष्ट से मुक्ति मिली थी उन्हें जीवन से। वह अपने दुःख में ऐसा डूबा कि भूल ही गया मिति को। यूँ कहे तो उसने उसे अपनी जिम्मेदारी समझा ही कब था? बस पल रही थी कुत्ते-बिल्ली की तरह। माँ ही पैरेंट्स मिटिंग में जाती, रिर्पोट कार्ड साइन करती, ट्यूशन छोड़ने जाती। स्कूल के लिए तैयार करती , यह तो अक्सर लड़ा करता था-

’’मेरे भांजे ने तेरे ही कारण घर छोड़ा है। तू यदि उसे माँ का प्यार देती तो क्या कारण था कि शादी होते ही एकदम बेगाना हो गया? वह रोती थी,

’’ बस मेरी यही गलती है कि मैंने बाँझ होने के बाद भी माँ बनने की कोशिश की। अपनी ननद के बेटे को माँ बनकर पाला, जब वह ़बीमारी से हार गई मनस के पापा अपने को संभाल नहीं सके। दो माह बाद ही मनस को-अकेला छोड़ गये तब मैंने उसे गले से लगा कर पाला। अब जब मेरी बहन के साथ इतना बुरा घट गया तो क्या उसके बच्चों को सहारा देना हमारा मानवीय कर्तव्य नहीं है ? हमारा मन भी लगा रहता है।’’

’’ अरे मिति बेटी कितनी देर लगाती फ्रेश होने में?’’ वह आवाज दे रही थी।

’’ आप लोग लीजिए ना आंटी, मैं आ रही हूँ । ’’उसकी नजर चाय के बर्तन पर पड़ी, न जाने कब से गंदा जमा पड़ा था। अपने रहो तो धो धा कर बना लेते हैं। अब ये देखेगी तो अच्छा नहीं लगेगा। लोगों को न जाने कितना शौक होता दूसरों के जीवन में झाँकने का ? कैसे माँजू? माँ ने तो कभी कुछ करने ही नहीं दिया । बीमार रहती थी फिर भी उसे खेलने- कूदने पढ़ने लिखने का बराबर अवसर दिया करती थी। ’’ तू पढ़ लिख ले! जो कुछ सीखना हो सीख ले, घर के काम तो जीवन भर करने हैं वो सब तो मैं तुझे एक महिने में सिखा दूंगी।’’ चली गई माँ! अब तो उसकी मिति के समान बुरा कोई रह ही नहीं गया संसार में। ’’ उसकी आँखें भर आईं अपने पुराने दिन याद करके।

’’अरे तुम चाय के बर्तन मांज लाई?’’ वह किचन तक आ गई थी। उसके हाथ में पेपर प्लेट थी जिसमें उसने दही बड़े रखे हुए थी। पेपर प्लेट वह अपने साथ ही लेकर आई थीं। पहली बार नहीं आई थी इस घर में।

’’ठीक है न आंटी, आप बैठिये न ऽ!’’ उसकी निगाहें संकोच से झुकी हुई थीं यदि वह चाहती तो इधर-उधर फैली अपनी किताबों , कपड़ों ,और बर्तनों को उनके स्थान पर रख सकती थी। पलक झपकते तो नहीं बीत जायेंगे कुछ महिने। क्या सब कुछ जैसे का तैसा छोड़ कर चली जायेगी चंदन के साथ?’’

’’अरे आओ नऽ एक साथ बैठ कर खाते हैं। ’’ उनका प्रबल आग्रह देख कर मिति को उनके साथ आना पड़ा।

’’ लीजिये नऽ आप भी।’’ मिति नेे झुकी निगाहों से कल्पना आंटी को देखते हुए आग्रह किया।

’’ बस ले रही हूँ।’’ किसी नवोढ़ा की तरह चम्मच से छोटे-छोटे टुकड़े उठा कर खाने लगी वह।

’’ बहुत अच्छे बने हैं आप ने बड़ी मेहनत की।’’वह रुचि लेकर खा रहा था।

’’ वाह ! कैसे बिछा जा रहा है ? और किसी की मेहनत की तारीफ करते तो मुँह में दही जमी रहती है , अभी परसो की ही तो बात है पड़ोसिन के बहुत समझाने पर उसने ड्यूटी से आते ही उसके हाथ में चाय की प्याली थमाई थी जिसे देखते ही वह भड़क उठा था। ’’ किसने कहा तुझसे चाय बनाने के लिए ? हाँ ऽ तेरी उस दिन की बात सुनने के बाद तूने कैसे सोच लिया कि मैं तेरा दिया कुछ भी खाऊँगा- पिऊँगा? तू तो मुझे खाने में जहर मिला कर देना चाहती है नऽ? ’’ वह कलेजा फाड़ कर चीख रहा था।

’’ तो थूक दे चाय में ! मेरी बात तो याद है तुझे और तू ने क्या रिपोर्ट लिखवायी थाने में ? मैंने तुझ पर रेप केश का आरोप लगाने की धमकी दी है, मेरा तेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है। मैं तेरी गोद ली हुई संतान हूँ, जिसका कोई डाकुमेंट्स नहीं है। तू तो मुझे बाल संरक्षण गृह भेजना चाहता था नऽ? मुझे घर से निकाल कर रंगरेलियाँ मनाना चाहता है?’’

ऐसा ही नाटक करना था तो पहले ही क्यों रखा? मुझे मार डालता हत्यारा। जीकर ही क्या कर रही हूँ? वह अपने कमरे में लेटी बहुत देर तक रोती रही थी। बार- बार थाने में पड़ी डाँट उसके कानो में गूंजती रही थी ।

’’आप को शर्म आनी चाहिए अपनी ही बेटी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए । इसने यदि झूठी रिर्पाेट कर दी तब भी आप लंबे से नप जायेंगे। यदि किसी भी प्रकार की प्रतारणा की शिकायत मिली तो आप पर विभागीय व्यक्ति होने के नाते भी कोई रियायत नहीं की जा सकेगी। ’’ उसके चेहरे पर जैसे बारह बज रहे थे। उसके सड़ियल स्वभाव से सब पूर्व परिचित थे

’’जहाँ भी रहा अपने नीचे वालों का जीना हराम किये रखा। ’’ पुलिस वाले चैबीस घंटे के नौकर हैं लगातार काम करते रहो। दारू गांजे से कमाई मत करो। बताये कोई इनसे कि पुलिस बालों के घर द्वार नहीं होते क्या? क्या समाज में सिर उठा कर जीने का उनका हक नहीं है। क्या पुलिस के छोटे से वेतन में बच्चों को ऊँची शिक्षा दिलाई जा सकती है? यह तो साफ साज़िस है सिपाही का बेटा सिपाही और अफसर का बेटा अफसर बनाने की। इसीलिए तो भगवान् ने संतान का मुख नहीं दिखाया। एक को पाला भी था तो लात मार कर रफूचक्कर हो गया । अब आया है पंजे में।’’ उसने सुना था ड्यूटी वाले आपस में बातें कर रहे थे। उसे एक अनजानी पीड़ा ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। हाँ उसके थाने जाने का लाभ उसे इस प्रकार मिला कि तब से उसने उसके खाने- पीने के लिए या मोबाइल के लिए खर्चा देने मंे आनाकानी नहीं की। बस बाहर निकलने से मना कर दिया। नंबर वन का शक्की है उसे लगता है अड़ोस-पड़ोस वाले मिति को बिगाड़ देंगे। अब कुछ बोलता भी नहीं, मत बोले यहाँ किसे गरज पड़ी है ऐसे कूड़मगज से बात करने की? रहा समय कटने का सवाल तो वह फेस बुक पर बड़े आराम से कट जाता है। कभी यू ट्यूब खेाल लो तो जो चाहो वो देखो । हाँ परेशानी हो जाती है कभी-कभी एडल्ट विडियोज़ देख कर तब के लिए नींद की गोलियों का इंतजाम रखना पड़ता है उसे।

’’आप बैठिये ! मैं जरा एक पैकेट दूध लेकर आता हूँ चाय के लिए ’’ वह अपने कपड़े से पैसे निकाल रहा था ।

’’ अजी! आप कहाँ जा रहे हैं हमारी मिति बेटी ले आयेगी। ’’ उसने अपने बैग से निकाल कर सौ रूपये का एक नोट मिति की ओर बढ़ा दिया।

’’ कोई नई बात नहीं है जब आतीं हैं कुछ न कुछ घटा ही रहता है। वह इतनी भी नासमझ नहीं है , अपने बीच से उसे हटाने का बहाना है सब। उसे क्या ? अच्छा ही है अवसर का लाभ उठा कर वह भी चंदन को बुला लेती है मिलने के लिए। आज तो वह शहर से बाहर है।’’ ऊब मिटाने के लिए उसने एक अंगड़ाई ली। और दरवाजा उढ़काते हुए बाहर निकल गई । डेयरी घर से लगभग पाँच सौ मीटर की दूरी पर थी । वह आराम से गई-आई। - आस-पास के घरों पर, काम करते मजदूरों पर नजर डालती। दो बजे की धूप उसके दायें अंग को तपा रही थी। नवंबर के शुरूआती दिन थे किन्तु ठंड अभी विधिवत प्रारंभ नहीं हुई थी। उसने सुना है मौसम चक्र बदल रहा है।

दरवाजा उसी प्रकार उढ़का था जैसा वह छोड़ गई थी। उसने बिना आवाज किये अपन अन्दर जाने लायक दरवाजा खोला और सीधे अपने कमरे में चली गई दूध लिए-लिए। बगल वाले कमरे से धीमी किन्तु स्पष्ट आवाजें आ रहीं थी।

’’और तो जो भगवान् ने किया उसे कोई बदल नहीं सकता किन्तु मैं इस लड़की से बहुत परेशान रहता हूँ एक भी बात नहीं मानती। बताइये जब घर में कोई महिला नहीं है तो कौन सिखायेगा भला-बुरा उसे? कुछ कहने की कोशिश करता हूँ तो गलत भावना मन में लाती है। सच कहूँ तो इस लड़की ने कभी मुझे बाप का दर्जा दिया ही नहीं।

’’ रो ले -रो ले नया मुर्गा पाया है न ऽ ! मंैने तो तुझे बाप नहीं समझा, तू ने ही कब मुझे अपनाया ?’’ वह किचन में जाकर चाय का पानी चढ़ाने लगी । सोकर उठने के बाद चाय मिल जाय तो तबियत फड़का-फाइट हो जाती है।

’’ बच्ची है ठाकुर साहब, समय आने पर सब ठीक हो जायेगा।’’ उसने सहानुभ्ूाति भरे स्वर में कहा।

’’ क्या सुधरेगी मैडम, पहले जमाने में इतनी उम्र में लड़कियाँ अपनी ससुराल जाकर पूरा घर संभालती थीं और इसे देखिये दोपहर ढले सोकर उठती है। पूरी रात मोबाइल पर न जाने क्या करती रहती है? देखते देखते मेरा घर श्मशान हो गया। थोड़ा-थोड़ा सीखती तब भी कम से कम अपने लिए तो पका खा लेती ! नौकरानी लगाओ तो दरवाजा नहीं खोलती, मैं ठहरा नौकरी वाला इन्सान, वह भी पुलिस की नौकरी जिसमें घर परिवार के लिए कोई समय नहीं होता। ’’

’’कभी कुछ सिखाने की कोशिश किया ? माँ थी तो उसने भी कभी कुछ करने न दिया और तू तो बस रोना भर जानता है कुछ सिखाता तो जरूर सीख जाती। और अच्छा ही किया न सीख कर । मैं क्या तेरे लिए खाना बनाऊँगी ? जा- जा मुँह धोकर रख। चाहे जितना रो ले तेरे लिए तो कुछ नहीं करूँगी।’’ कोई सुने न सुने वह हर बात का उत्तर म नही मन देती जा रही थी।

’’ ठाकुर साहब जहाँ समस्या है वहाँ समाधान भी है । आप भी इसकी शादी कर दीजिए।’

’’ ऐसी बिगड़ी लड़की को किसके पल्ले बाँध दूँ मैडम ? फिर अभी यह अठारह की कहाँ हुई है? उसके स्वर में उसकी हताशा बोल रही थी।

’’कोई करे न करे वह तो करेगा न जिससे यह रात भर बतियाती है। उसका नाम चंदन है। मेरी जान-पहचान का है, बड़ी उम्र का आदमी है इन्हें सुधार कर रख देगा। धनी बाप का अकेला बेटा है, पढ़ा-लिखा भी है। वह भी खुश और हम भी खुश। आप कहें तो बात करूँ, उसका बाप तो दोनो तरफ का खर्चा दे देगा हँसी-खुशी। हर्रा लगे न फिटकरी रंग चोखा होय।’’ फिर यदि आप को पसंद आयेगा तो मैं आप का उजड़ा घर बसाने की जिम्मेदारी ले लूंगी।’’

’’इतना सब कुछ है तो अब तक कुँआरा क्यों बैठा है?’’

’’ कुँआरा कहाँ? पहले दो शादियाँ हो चुकी हैं। जिसके भाग्य में सुख नहीं होता उसकी मति मारी जाती ह,ैं ंदोनो भाग र्गइं इसका घर छोड़ कर। और कुछ नहीं जरा बातें ज्यादा करता है। बड़ी ऊँची- ऊँची, कभी ताज महल खरीदने की बात करेगा कभी लाल किला। मिति जाये भोगे अपने भाग्य का सुख। वहाँ न किसी काम की कोई फिक्र रहेगी न जिम्मेदारी, सब काम के लिए अलग-अलग नौकर लगे हैं मुझे तो लगता है हमारी मिति के लिए सब प्रकार से उचित है। न हो तो अभी सगाई करके छोड़ दीजिए ,कुछ माह बाद जब अठारह की हो जायेगी तब शादी कर देंगे। मुझे तो बस आप की ही चिन्ता लगी रहती है।’’ मैडम की आवाज अत्यंत मधुर थी

बड़ी प्यारी लगी थी मिति को वह। उसके चंदन से उसका विवाह करा रही थी। कोई लाख बुराई करे चंदन तो उसकी हर अदा का दीवाना है। इतना सुन्दर ,शिक्षित और कमाऊ है वह । जब तक साथ रहता है। लगातार उसकी प्रशंसा करता रहता है चंदन से मिलाने के लिए वह फेस बुक की सदा आभारी रहेगी। रही बात शादी की तो पैसे वालो की दो क्या चार भी हो सकती है, वैसे भी आज कल लड़कियों में हसबेंड चेंज करने का ट्रेंड है। वे छोड़ कर नहीं गईं उन्होंने मिति का रास्ता साफ किया। वह तो मिति के सारे दर्द की दवा है। शादी के बाद उसका अपना संसार होगा जहाँ की वह मालकिन होगी। वह सब कुछ सीखेगी। इनका उसे सजा देने का सपना कभी पूरा नहीं होगा।

’’हँुम्म! बड़ी उम्र का आदमी है! जिसकी दो दो औरतें भाग चुकी हैं, वह मेनिया का शिकार है, बहुत अच्छा रिश्ता ढूढ़ा है मैडम मेरी बेटी के लिए, क्या मेरे पास उसकी शादी के लिए पैसे नहीं है? क्या वह मेरे ऊपर भार है? अब मेहरबानी करके यहाँ से तसरीफ़ ले जाइये वर्ना मैं आपकी सारी चिन्ता झाड़ दूंगा। उस अधेड़ उम्र के पागल से अपनी बेटी ब्याहने से अच्छा तो मैं उसे किसी कुँएं में धकेल दूंगा। जाइये दफा हो जाइये। उसकी चिल्लाहट से पूरा घर झन्ना उठा। उसकी तेज आवाज में धीरे-धीरे एक कंपन शामिल होते अनुभव किया मिति ने।

’’हाय! च्ंादन ? पागल है? कितना बड़ा धोखा हुआ उसके साथ?’’

’’सोच लीजिए अच्छी प्रकार आप की बद्दिमाग बेटी के लिए इतना अच्छा रिश्ता फिर नहीं मिलेगा । फिर आपके साथ इस उम्र में कौन घर बसाने आयेगा?’’ वह इस अप्रत्याशित व्यवहार से सकते में आ गई थी।

’’अरे ! भाड़ में जाय ये रिश्ता और चुल्हे में जाओ तुम! जल्दी भागती हो या उठाऊँ पुलिसिया जूता ऽ...ऽ.ऽ.? वह बल भर चीखा।

दुम दबा कर भाग रही थी वह ।

’’ पापा!..! ..!’’ अस्फुट स्वर निकला मिति के मुँह से।


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