Ajay Singla

Drama

3.5  

Ajay Singla

Drama

प्रायशचित

प्रायशचित

23 mins
304


अमित और निखिल दोनों दोस्त गांव के तालाब में खेल रहे हैं। दोनों करीब दस साल के हैं। अमित को तैरना अच्छी तरह आता है तो वो तालाब के एक किनारे से दूसरे किनारे तक बड़ी आसानी से चला जाता है। निखिल थोड़ा डरता है क्योंकि बीच में तालाब ज्यादा गहरा है। अमित दूसरे किनारे से उसे आने को कहता है। निखिल थोड़ा हिचकिचाता है पर फिर हिम्मत करके वो तैर कर दूसरे किनारे की और जाने लगता है। बीच में पहुँच कर उसकी सांस फूलने लगती है और वो डूबने लगता है। उसको डूबता देख अमित भी घबरा जाता है और उसे बचाने के लिया तालाब में कूद पड़ता है। वो बहुत कोशिश करता है पर उसे बचा नहीं पाता। वो चीखने लगता है। इतने में आस पास के लोग इकठा हो जाते हैं और निखिल की लाश को तालाब में से निकालते हैं जिसे देख कर अमित बेहोश हो जाता है। थोड़ी देर बाद जब उसे होश आता है तो वो रोने लगता है। इतने में निखिल और अमित दोनों के माँ बाप भी वहां आ जाते हैं।

निखिल की माँ का बुरा हल है। वो अपने बेटे की लाश गोद में लेकर रो रही है। अमित इस सब के लिए अपने आपको जिम्मेदार मानता है। वो सोचता है अगर उसने निखिल को किनारे पर आने के लिया न उकसाया होता तो वो जिन्दा होता। अमित के माता पिता उसे घर ले जाते हैं और उसे सांत्वना देकर चुप करते हैं। अमित अंदर ही अंदर सोच रहा है जैसे उसने कोई गुनाह किया है। वो इसका प्रायश्चित करना चाहता है। वो रात भर सो नहीं पाता |

अगले दिन सुबह सुबह वो निखिल के घर चला गया। उसकी माँ की आँखों में आंसू थमे नहीं थे। अमित की आँख में भी उनको देखकर आंसू आ गए। निखिल की माँ ने अमित को गले से लगे लिया और दोनों जोर जोर से रोने लगे। निखिल के पापा ने आकर दोनों को समझाया और चुप कराया। इतने में निखिल की छोटी बहन भी वहां आ गई। वो अमित से करीब डेढ़ साल छोटी थी और उसे भैया बुलाती थी। वो भी रोती हुई भैया भैया कहती हुई अमित से लिपट गयी। अमित का मन काफी अशांत हो रहा था। वो ज्यादा देर वहां रूक नहीं पाया और घर लौट आया।

निखिल के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी। उसके पिता एक पोस्टमैन थे और बस गुजर बसर ही हो रही थी। निखिल की बहन अमित से एक क्लास पीछे थी और उसकी फीस देना भी मुश्किल हो रहा था। अभी अभी आमित पांचवी क्लास पास करके छठी क्लास में हुआ था और निखिल की बहन अंकिता पांचवी में। निखिल किसी न किसी तरह उस परिवार की मदद करना चाहता था। बैठे बैठे उसके दिमाग में आया कि क्यों न मैं अपनी सारी पुराणी किताबें अंकिता के लिए ले जाऊं। अगले दिन उसने ऐसा ही किया। अंकिता की माँ के लिए ये बहुत बड़ी मदद थी। वो अमित को निखिल की तरह ही मानती थी। निखिल के जाने के बाद अमित उनके घर ज्यादा आने लगा था तो ये लगाव और भी गहरा हो गया था।

हर साल अमित अंकिता को अपनी किताबें दे देता था। अमित पढ़ने में काफी होशयार था और क्लास में अव्वल आता था। अब वो दसवीं में हो गया था। एक दिन जब अमित निखिल के घर गया तो उसकी मम्मी अंकिता को डाँट रही थी कि इस बार तुम्हारे नंबर बहुत कम आएं हैं। वो कह रही थी की हमारे पास तो ट्यूशन रखने के लिए भी पैसे नहीं हैं। तब अमित बोला आंटी अंकिता को तो मैं ही पढ़ा दिया करूंगा और वो रोज उसे एक घंटा पढ़ाने लगा। जब रिजल्ट आया तो अंकिता फर्स्ट डिवीज़न में पास हुई थी। अंकिता अमित को सगे भाई से भी बढ़कर मानती थी। वो रिजल्ट के बाद सीधी अमित के पास गयी और उसे धन्यवाद कहा। अमित की आंखों में आंसू आ गए। उसे लगा उसके मन का बोझ थोड़ा हल्का हो गया है। निखिल के माता पिता भी उसे अब अपने बेटे की तरह ही मानते थे। उस रात अमित सोच रहा था कि शायद उसका आज थोड़ा सा प्रायश्चित हो गया है। निखिल की कोई बहन नहीं थी। उस दिन राखी का त्यौहार था। अंकिता अपने साथ एक राखी भी ले गयी थी। उसने राखी बांधी तो अमित ने पूछा कि मैं तुम्हे क्या दूँ। अंकिता बोली भैया, आप ने पहले ही मुझे सब कुछ दे दिया है। अमित बोला चलो ठीक है आज से तुम्हारी सारी जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा।

अमित का दसवीं का रिजल्ट आ गया था। वो अपने जिले में फर्स्ट आया था। उसकी बचपन से ही इंजीनियर बनने की इच्छा थी। पापा ने उसका एडमिशन दिल्ली में एक कॉलेज में करवा दिया। वो वहां नॉन मेडिकल की पढाई करने लगा। हॉस्टल की लाइफ ही कुछ अलग थी। कोई कुछ कहने वाला नहीं। अपनी मर्जी से जब चाहो उठो, जब खेलने का मन हो खेलो, जब पढ़ना चाहो पढ़ो। वो गांव की जिंदगी भूल सा गया और अपना पश्चाताप भी।

एक दिन वो अपने दोस्तों के साथ फुटबाल खेल रहा था। एक गोल करते समय जब वो बॉल को सिर से मार रहा था तो उसका सिर अपने दोस्त के सिर पर लगा। उसे थोड़ा चक्कर सा आया पर वो संभल गया। तब उसने देखा कि उसका दोस्त निढाल पड़ा है। वो शायद सिर में चोट लगने से बेहोश हो गया था। अमित को लगा वो मर गया। घबराहट से वो पसीने से तर बतर हो गया। उसके आँखों के सामने निखिल की मौत का मंजर घूमने लगा और वो रोने लगा। इतने में उस का दोस्त उठ कर बैठ गया और बाकी लोग फिर से खेलने लगे। पर अमित का मन अब खेल में नहीं लग रहा था। वो हॉस्टल में अपने कमरे में आया और सोचने लगा की उसने कैसे अपने प्रायश्चित को भुला दिया है। तभी उसकी नजर सामने लगे कलेंडर पर पड़ी। उस दिन वही तारीख थी जिस दिन निखिल की पांच साल पहले मौत हुई थी। वो सारी रात सो नहीं पाया और उसने सोच लिया था की अगले दिन वो अपने गाँव जायेगा।

अगले दिन जब वो अपने घर पहुंचा तो रात हो चुकी थी। रात भर उस का मन अशांत रहा। सुबह सुबह वो निखिल के घर पहुँच गया। निखिल की माँ ने नाश्ता कराया और पूछा की हॉस्टल में उसका मन लग गया है। उसने हाँ में सिर हिलाया तभी अंकिता वहां आ गयी। वो अपने भाई के आने पर बहुत खुश थी। अमित ने पूछा की तुम्हारी पढाई कैसी चल रही है। उसे पता था अंकिता बड़े हो कर डॉक्टर बनना चाहती है। अंकिता चुप हो गयी और कोई जबाब नही दिया। तभी अंकिता की मम्मी बोली कि वैसे तो अंकिता का एडमिशन शहर के एक अच्छे कॉलेज में हो गया है पर कॉलेज और हॉस्टल की फीस हम नहीं भर सकते इसीलिए अंकिता पढाई छोड़ने की सोच रही है। ये सुनकर अमित को बहुत दुःख हुआ।

अमित की समझ में नहीं आ रहा था की वो कैसे मदद करे। तभी उसके दिमाग में एक बात आई और उसने कहा कि आंटी चिंता ना करो शहर में ऐसी कई संस्थाएं होती हैं जो मेघावी छात्रों को पढ़ने के लिया वजीफा देती हैं। मेरे साथ भी कई बच्चे हैं जिनकी वो मदद करती हैं। मैं हॉस्टल में जाते ही उनसे अंकिता की बात करूंगा और आप को पैसे भेज दूंगा। बस आप अंकिता की पढाई ना रोकिये। अंकिता ये सुन कर ख़ुशी से फूले नहीं समा रही थी।

अगले दिन अमित हॉस्टल आ गया। उसने अपने अकाउंट में जितने पैसे थे सारे निकाल लिए। अंकिता के पापा को फ़ोन किया कि मेरी बात हो गयी है और उस संस्था ने अंकिता को पढ़ाने में सहमति जाता दी है और मैं कल आपको मनी आर्डर कर रहा हूँ। जब अंकिता के पापा ने संस्था का नाम पूछा तो उसने ऐसे ही प्रगति नाम की संस्था का नाम ले दिया। अंकिता के पापा को भी कोई शक नहीं हुआ। अगले दिन उसने पैसे भेज दिए।

तीन दिन बाद उसे अंकिता का फ़ोन आया कि मेडिकल की पढाई के लिए उसका शहर के कॉलेज में एडमिशन हो गया है और वो बहुत खुश है। अमित ने उसे कहा तो अब मेरी बहन डॉक्टर बनेगी। उस की आँखों से आंसू छलक रहे थे। अंकिता कह रही थी भैया अगर आप न होते तो मेरा आगे पढ़नेका सपना कभी पूरा न होता। और अमित सोच रहा था कि एक और मदद करके उसके मन का बोझ थोड़ा और कम हो गया और अपनी बहन की एक और जिम्मेदारी उसने निभा दी। अंकिता को लगा निखिल जो मेरे लिए करता अमित शायद उससे भी ज्यादा कर रहा है।  

अमित अब बारहवीं क्लास में हो गया था। ये साल उसके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी साल की पढाई से ही उसे आगे इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिलना था। वो किसी तरह से भी पूरी मेहनत करके अपना इंजीनियर बनने का सपना पूरा करना चाहता था। उसने उस साल जम कर मेहनत की और उसका जे ई ई एडवांस का पेपर भी अच्छा हो गया। रिजल्ट में थोड़ा वक्त था इसलिए एक महीने के लिए वो घर आ गया। अंकिता अभी ग्यारहवीं में ही थी और पेपरों के कारण अभी शहर में ही थी।

अमित का जब रिजल्ट आया तो उसने पूरे देश में सतारहवीं रैंक हासिल की थी। वो बहुत खुश था। अब उसका आई आई टी बॉम्बे में एडमिशन पक्का था। उसके मम्मी पापा भी बहुत खुश थे। उसे सब बधाई दे रहे थे। तभी उसने मम्मी से कहा मैं अभी आया। वो सीधा एक मिठाई की दुकान पर गया और एक मिठाई का डिब्बा लेकर सीधे निखिल के घर की तरफ चल दिया। अभी वो कुछ ही दूर चला था कि उसने देखा निखिल के पिता का एक्सीडेंट हो गया है और वो सड़क के किनारे घायल पड़े हैं। कोई गाडी वाला उनको टक्कर मार गया था। वो होश में तो थे पर दर्द से कराह रहे थे। जैसे तैसे करके वो उन्हें अपने मोटरसाइकिल से हस्पताल ले गया। हस्पताल में पता चला की उनका खून काफी बह गया है और उनकी पैर ही हड्डी भी टूट गई है। डॉक्टर ने उसे बताया कि खून की एक बोतल तो तुरंत चढ़ानी पड़ेगी और इलाज का खर्चा भी काफी होगा।

अमित ने अपने पापा को फ़ोन किया और ये सब खर्चा करने के लिए राजी कर लिया और वो खुद एक बोतल खून देने लगा। थोड़ी देर में उसके पापा भी आ गए। उन्होंने हॉस्पिटल के पैसे भर दिए। निखिल भी पापा से थैंक यू कह कर लिपट गया। जब तक निखिल के पापा की हस्पताल से छूटी नहीं हो गयी वो वहीँ पर रहा। अंकिता के पपेरों की वजह से वो दो दिन बाद ही आ सकी। तब तक उसके पापा घर आ गए थे। वो आते ही अमित से लिपट गयी और कहने लगी भैया, अगर आप न होते तो न जाने क्या होता। अमित बोला अगर निखिल होता तो क्या वो ये सब नही करता। ऐसा कहते कहते उसकी आँखों में आंसू आ गए। अंकिता भी रोने लगी। तभी अंकिता की मम्मी आ गयी और उसने अंकिता को बताया कैसे दो दिन और दो रात अमित उसके पापा की सेवा करता रहा और सोया तक नहीं। अंकिता ने अमित से कहा कि भैया ये कर्ज मैं कैसे चुका पाऊंगी। अमित कुछ नहीं बोला बस भरा मन लेकर वहां से चला आया।

घर आकर वो सोचने लगा कि मेरे कारण तो उस घर ने अपना चिराग खोया है और थोड़ा सा कुछ करने से वो मेरा ही एहसान मान रहे हैं। उसकी आँखों के आगे निखिल का चेहरा घूम रहा था। यही सोचते सोचते वो सो गया। रात में उसको एक सपना आया। सपने में निखिल उसे कह रहा था की अमित तुम मेरी मौत के लिए अपने आपको जिम्मेदार क्यों मानते हो। तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। तुम जो मेरे परिवार के लिए कर रहे हो वो तो शायद अगर मैं होता तो भी नहीं कर पाता। तुम अब अपने आप को दोषी मत मानो और प्रायश्चित करना छोड़ दो। अमित की नींद खुल गयी। वो बहुत घबराया हुआ था। थोड़ी देर में वो संभला और सोचने लगा क्या मेरा प्रायश्चित ख़तम हो गया है। फिर उसने मन में सोचा प्रायश्चित तो अभी मुझे करना ही होगा।

अमित का आई आई टी बॉम्बे में एडमिशन हो गया। वो वहां हॉस्टल में रहता है | बॉम्बे की लाइफ बिलकुल अलग है। यहाँ लाइफ रात में ही शुरू होती है। उन का सात लोगों का ग्रुप है। अक्सर वो शाम को मरीन ड्राइव चले जाते हैं और घंटों वहां मस्ती करते हैं। लड़कियां क्लास में बहुत कम हैं। उन के ग्रुप में भी एक लड़की है आकृति। वो भी उनके साथ जाती है।  ग्रुप में किसी का बर्थडे होता तो सब लोग रात का खाना बाहर ही करते हैं। अमित के लिए ये सब नया है पर आई आई टी और बॉम्बे की लाइफ ऐसी ही है। इस सब के वाबजूद अमित अभी भी अंकिता को पैसे भेजना नहीं भूलता।

एक दिन अमित को मम्मी का रात को बारह बजे फ़ोन आया। तब सभी दोस्त मरीन ड्राइव पर बैठे थे। मम्मी ने पूछा कि पढाई कैसी चल रही है तो अमित बोला मम्मी, अभी तो हम मरीन ड्राइव पर बैठे हुए हैं। तभी मम्मी को एक लड़की के हंसने की आवाज सुनाई दी तो मम्मी ने पूछा क्या रात बारह बजे भी यहाँ भीड़ रहती है। अमित बोला नहीं मम्मी ये तो आकृति है हमारे साथ ही पढ़ती है। मम्मी शांत हो गयी और फ़ोन पापा को पकड़ा दिया। पापा ने दो तीन मिनट बात करके फ़ोन रख दिया।  फ़ोन रखते ही अमित की मम्मी ने उसके पापा से कहा कि हम कल ही बॉम्बे जा रहे हैं। वो थोड़ी परेशान लग रहीं थी। जब पापा ने परेशानी का कारन पूछा तो वो कहने लगीं कि बॉम्बे जैसे बड़े शहर में रात के बारह बजे तक बाहर घूमना, मुझे तो बड़ा डर लग रहा है। अमित अभी बच्चा ही तो है वो किसी गलत संगत में पड सकता है और उसके साथ कोई हादसा भी तो हो सकता है। ऐसा कहकर वो रोने लगीं। अमित के पापा ने समझाया कि देखो बाकी बच्चे भी तो उसके साथ हैं। बाकी बॉम्बे की लाइफ ही ऐसी है। अब हमें अमित को उसके अपने ढंग से जीने देना चाहिए और तुम्हे क्या अमित पर भरोसा नहीं है। वो गलत संगत में नहीं जायेगा। तुम भगवान पर भरोसा रखो वो उसकी रक्षा करेंगे। तब जाकर मम्मी को चैन आया।

आकृति एक बहुत ही शांत लड़की थी। वो अपने दोस्तों की कंपनी एन्जॉय करती थी पर खुद कम ही बोलती थी। अमित ज्यादा बोलने वाला लड़का था और सब को जोक्स सुना कर हंसाता रहता था।  कहते हैं ना ओपोजिटस अट्रैक्ट। धीरे धीरे दोनों एक दुसरे की तरफ आकर्षित होने लगे। कुछ देर बाद दोनों ने प्यार का इजहार भी कर दिया। अब वो दोनों अकेले भी शहर में मोटरसाइकिल पर घूमने निकल जाते और घंटों मरीन ड्राइव पर बैठे रहते। एक दिन अमित थोड़ा उदास बैठा था तो आकृति ने पूछा कि क्या बात है। अमित एक बार को तो टाल गया पर फिर उसने सोचा आकृति को मैं सब बता देता हूँ। ये वही दिन था जिस दिन निखिल की मौत हुई थी। उसने आकृति को वो सारी घटना और उस के बाद कैसे उसने अपनी तरफ से प्रायश्चित किया वो सब बता दिया। आकृति ने उसे समझाया कि जो तुमने उनकी मदद की वो तो चलो ठीक है पर इस बात में अपना कसूर मान कर उसे दिल पर रखे रहना गलत है। अमित भी उसकी बात से थोड़ा सहमत था पर वो ये बात भूल नहीं पा रहा था। हालांकि आकृति अमित की इस बात से खुश थी जो जिम्मेदारी वो अपनी बहन अंकिता के लिए निभा रहा था।

उधर अंकिता का नीट टेस्ट हो चूका था , बस रिजल्ट आना बाकी था। एक दिन अमित और आकृति मरीन ड्राइव पर बैठे थे कि अंकिता का फ़ोन आया। जब उसने बताया कि उसका नीट का टेस्ट क्लियर हो गया है और उसे दिल्ली में मेडिकल कॉलेज मिल जायेगा, तो अमित की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। आकृति भी पास बैठी सब सुन रही थी। उसने इशारे से अमित को फ़ोन उसे देने को कहा। अमित ने भी अंकिता को कहा कि लो तुमसे कोई बात करना चाहता है। आकृति ने अंकिता को बधाई दी और शुभकामनाएं दीं और फ़ोन वापिस अमित को पकड़ा दिया। अंकिता ने अमित से पूछा की ये लड़की कौन है तो अमित बोला दोस्त है। तब अंकिता ने पूछा की सिर्फ दोस्त है या भाभी है। फिर अमित ने अंकिता को सब बता दिया। अंकिता अब आकृति को भाभी कह कर ही बुलाने लगी।

अंकिता का अब दिल्ली में एम बी बी एस में एडमिशन हो चूका था। उस की स्कालरशिप भी लग गयी थी। अब उसने अमित को पैसे भेजने से मना कर दिया। अमित अब सोच रहा था कि अंकिता की मदद कैसे करे। उसे याद आया कि अगले हफ्ते अंकिता का बर्थडे है। उसने आकृति को मिल कर अंकिता को राखी वाले दिन सरप्राइज देने का प्लान बनाया। उस का एक साथी भी दिल्ली आई आई टी में पढता था। उसने भी उनकी मदद की। रक्षाबंधन वाले दिन जब वो दोनों अंकिता के पास पहुंचे तो उसे यकीन नहीं हुआ। उसके लिए ये सच में बहुत बड़ा सरप्राइज था। उन दोनों ने उसे एक गिफ्ट भी दिया। जब अंकिता ने गिफ्ट खोला तो उस में स्कूटी की चाबी थी। स्कूटी बाहर खड़ी थी। अंकिता की आँखों में आंसू आ गए और वो अमित से लिपट गयी। अंकिता को खुश देखकर अमित बहुत ही हल्का महसूस कर रहा था। आकृति की आँखें भी दोनों को देख कर भर आईं। अगले दिन अपने दोस्त का मोटरसाइकिल लेकर अमित ने आकृति को दिल्ली घुमाया। वो वहां रह चूका था और दिल्ली के चप्पे चप्पे से वाकिफ था। उसने अपना कॉलेज भी दिखाया जहाँ वो पढता था। आकृति को भी ऐसा लग रहा था की उसकी किस्मत अच्छी है जो उसे अमित जैसे जीवन साथी मिल रहा है जो हंसमुख भी है और भावुक भी।

आकृति और अमित का प्यार परवान चढ़ रहा था। दोनों पढ़ने में भी काफी होशयार थे। कभी अमित क्लास में फर्स्ट आता तो कभी आकृति। सेकेंड ईयर के एग्जाम में अमित ने टॉप किया। कॉलेज की तरफ से उसे यू एस ए में छे महीने के लिए स्कालरशिप पर जाने का मौका मिला। आकृति उसे एयरपोर्ट पर छोड़ने आई। जाते जाते अमित ने आकृति से कहा की तुम अंकिता का ख्याल रखना तो आकृति ने कहा ठीक है तुम वहां अपना ध्यान रखना और मैं अंकिता का ध्यान रखूंगी। वो बीच बीच में अंकिता को फ़ोन करती रहती थी और दोनों अच्छी सहेली बन गयीं थीं।

एक दिन अंकिता को पता चला कि एक कम्पटीशन हो रहा है जिससे की बाद में बहार की यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिलने में आसानी होती है। अंकिता ये कम्पटीशन देना चाहती थी। क्योंकि अंकिता क्लास में से फर्स्ट आती थी इसलिए उस के अध्यापकों ने भी उसी का नाम सुझाया था। अंकिता ने कम्पटीशन के बारे में पता किया तो पता चला उसकी फीस पचास हजार है। पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई फिर सोचा चलो अमित भैया से पूछ लेती हूँ। उसने अमित को फ़ोन लगाया पर नंबर लग नहीं रहा था। जब दो तीन बार फ़ोन नहीं लगा तो उसने आकृति को फ़ोन लगाया। आकृति ने बताया कि जहाँ अमित आज कल है वहां अगले एक हफ्ते तक फ़ोन नहीं मिलेगा। उस कम्पटीशन की आखरी तारीख अगले दो तीन दिनों में ही थी।

जब आकृति ने अंकिता से पूछा की क्या बात है तो वो टाल गयी और कहने लगी बस मैंने तो ऐसे ही फ़ोन किया था। वो आकृति को किसी परेशानी में नहीं डालना चाहती थी। पर जब आकृति ने जोर देकर कहा कि देखो तुम्हारा भाई तुम्हारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ कर गया है तो अंकिता ने सारी बात बता दी।

आकृति ने पचास हजार रुपए का इंतजाम करके अंकिता के अकाउंट में डाल दिये। अंकिता ये सोच कर इतनी खुश हो रही थी के मुझे भाई और भाभी दोनों ऐसे मिले हैं जो मेरी किसी बात को नहीं टालते। अब वो चाहती थी कि वो इस कम्पटीशन को जरूर जीते जिससे कि उसे एक तो बाहर जाने के लिए स्कालरशिप मिल जाये दूसरा वो नहीं चाहती थी कि भाभी की की हुई मदद बेकार जाये। उसकी मेहनत रंग लाई और वो उस कम्पटीशन में फर्स्ट आई।

उसने अपने भैया से भी पहले भाभी को फ़ोन करके ये बताया। भाभी ने भी उसे बधाई दी। तब जब अंकिता ने अमित को फ़ोन किया और ये भी बताया की इस के लिए पैसे उसने आकृति से लिए थे तो अमित को बहुत आश्चर्य हुआ।

अमित ने फ़ोन करके आकृति से पूछा कि तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया तो आकृति बोली क्या अंकिता की जिम्मेवारी सिर्फ तुम्हारी है, मेरी क्या वो कुछ नही लगती। और बाकी रही पैसों की बात तो जैसे तुम अंकिता को पहले भेजने के लिए इंतजाम करते थे , वैसे ही मैंने भी कर लिया। ये सब मैंने तुमसे ही सीखा है। और फिर दोनों हंसने लगे। अमित सोच रहा था कि इस प्रायश्चित में मेरी होने वाली जीवन साथी भी शामिल हो गयी है और वो कितना लकी है उसे ऐसी जीवन साथी मिली।

 जब वो यू एस ए से वापिस आया तो आकृति एयरपोर्ट पर उसे लेने पहुंची। अमित ने आकृति को गले लगाया और कहा, मुझे नहीं पता था कि मेरी आकृति मेरी बात का इतना मान रख सकती है और दोनों फिर से हंसने लगे। अमित की आई आई टी में पढाई पूरी हो चुकी थी और वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता था। आज कल वो यू एस ए गया हुआ था। आकृति बॉम्बे में ही जॉब कर रही थी। अंकिता अपने फाइनल ईयर के पेपर देकर रिजल्ट का इंतजार कर रही थी। वो हर बार क्लास में फर्स्ट आती थी। उसकी क्लास का एक लड़का मनीष उससे हर बार दो चार नंबर से पीछे रहता था और सेकंड आता था। इस बार जब रिजल्ट आया तो मनीष फर्स्ट था और अंकिता सेकंड। अंकिता जब मनीष को बधाई दे रही थी तो मनीष बोला कि मैं तो किस्मत से फर्स्ट आ गया ये पोजीशन तो वैसे तुम्हारी है। दोनों हंसने लगे। वो दोनों ही मन ही मन एक दुसरे को चाहते थे बस कह नहीं पा रहे थे। इंटर्नशिप में दोनों काफी साथ रहने लगे और दोनों का प्यार गहरा होता चला गया।

एक दिन दोनों बाहर रेस्टोरेंट में खाना खा रहे थे तभी मनीष ने दो नॉन वेज डिश का आर्डर दिया। अंकिता बोली मनीष, हम तो शुद्ध शाकाहारी खाने वाले पंडित लोग हैं , हम तो अंडा भी नहीं खाते। तुम अपने लिया मंगवाना चाहो तो मंगवा लो। मनीष ने आर्डर कैंसिल कर दिया और कुछ वेजीटेरियन आर्डर कर दिया। वो थोड़ा चुप चुप लग रहा था तो अंकिता ने पूछा की क्या हुआ। वो बोला अंकिता तुम ब्राह्मण हो पर मैं ब्राह्मण नहीं हूँ, क्या तुम्हारे घर वाले हमारी शादी के लिए मान जायेंगे। अंकिता बोली डरो मत मेरे माता पिता मेरी बात कभी नहीं टालेंगे और मैं उन्हें मना लूंगी।

उस रात अंकिता ने पापा को फ़ोन किया और सारी बात बताई। उन्होंने साफ़ मना कर दिया। जब समझने की कोशिश की तो वो आग बबूला हो गए। अंकिता ने ये तो सोचा ही नहीं था। इससे पहले पापा ने उसे कभी नहीं डांटा था। उसकी आँखों में आंसू आ गए और उसने फ़ोन रख दिया। वो भरे मन से मनीष को फ़ोन करने ही वाली थी कि अमित का फ़ोन आ गया। उससे बात करते करते अंकिता रो पड़ी। जब अमित ने कारण पूछा तो अंकिता ने सब बता दिया। वो बोला दो दिन बाद मैं वापिस आ रहा हूँ और अंकल से बात करूंगा। तब तक तुम मनीष को कुछ मत कहना।

जब वो गांव गया और अंकिता के पापा से बात की तो वो मानने को तैयार नहीं थे और कह रहे थे के हम शादी बयाह तो ब्राह्मणों में ही करते हैं। तब अंकित बोला कि मैं भी तो ब्राह्मण नहीं हूँ। मुझे भी तो आपने बेटा बनाया है और अंकिता ने भी अपना भाई माना है। तो जब आपका बेटा ब्राह्मण नहीं है तो दामाद भी जरूरी नही कि कोई ब्राह्मण हो।  अंकिता उसे बहुत चाहती है और लड़का भी अच्छे घर का है। बहुत समझने पर अंकिता के पिता मान गए। अमित को बहुत सकून मिला। उसने तुरंत अंकिता को फ़ोन किया। अंकिता ये खबर सुन कर फूले नहीं समा रही थी और अमित को धन्यवाद दे रही थी। उसने मनीष को भी फ़ोन कर दिया कि उसके मम्मी पापा मान गये हैं। मनीष के घर में पहले से ही सब तैयार थे।

अमित ने अंकिता से कहा की हफ्ते बाद उसे वापिस जाना है इसलिए वो सगाई करा कर ही जायेगा। तीन दिन बाद सगाई तय हो गयी। अमित ने आकृति के बारे में घर पर पहले ही बता दिया था। उसने आकृति को भी सगाई पर बुला लिया, सोचा इसी बहाने मम्मी पापा से भी उसे मिला दूंगा। सगाई की रसमों में जो भी भाई का फर्ज होता है वो सब अमित ने बड़ी शिद्दत से निभाया। आकृति ने मजाक में अमित से पूछा कि हमारी सगाई कब हो रही है। अमित हंस दिया और बोला, बहुत जल्दी। अंकिता और मनीष बहुत खुश लग रहे थे लेकिन सबसे ज्यादा ख़ुशी अमित को थी। उसे लग रहा था की पश्चाताप की राह में उसने एक बहुत बड़ा प्रायश्चित कर लिया है। अंकिता को लग रहा थी कि अगर अमित न होता तो उसका क्या होता। अमित ने जो किया था शायद उसका सागा भाई भी न कर पाता। वो अपने आपको बहुत भाग्यशाली महसूस कर रही थी।  

अमित की अब यू एस ए में पक्की नौकरी लग गयी थी। आकृति भी उसी शहर में नौकरी करती थी। दोनों काम अलग अलग कंपनी में करते थे पर रहते इकठ्ठे थे। अब दोनों शादी करने की भी सोच रहे थे। अमित ने आकृति से कहा कि अंकिता और मनीष से बात करके उन की शादी और हमारी शादी कुछ दिनों के अंतर पर कर लेते हैं और एक ही बार इंडिया जाकर ये दोनों काम एक साथ हो जायेंगे। अंकिता और मनीष भी अब फाइनल ईयर पी जी दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में कर रहे थे। अपने माँ बाप से बात करके सबने शादी की तारीख पक्की कर दी | अमित और आकृति की शादी अंकिता की शादी के एक हफ्ते बाद थी। अमित और आकृति अपनी अपनी कंपनी से एक महीने की छुट्टी लेकर इंडिया आ गए। अंकिता और मनीष भी वहां पहुँच गए। शादी की तैयारियाँ धूम धाम से चल रहीं थीं।

एक दिन अमित आकृति को गांव घूमाने ले गया। वो वहां उसे खेत दिखा रहा था कि आकृति ने कहा चलो तालाब पर चलते हैं। अमित के मुख के भाव एक दम से बदल गए। उसे निखिल का चेहरा याद आने लगा। जब आकृति ने पूछा कि क्या बात है तो अमित बोला कि मैं तालाब के पास नहीं जा सकता। मुझे वहां जाने से बहुत डर लगता है। तालाब के नाम से ही मुझे कुछ होने लगता है और निखिल की मौत की याद आ जाती है। आकृति को लगा कि ये बेमतलब का डर मुझे अमित के मन से निकालना होगा। शाम को उसने अमित से कहा कि तुम जो अंकिता और उसके घर वालों के लिए कर रहे हो वो बहुत अच्छा है पर ये प्रायश्चित का डर तुम्हे अपने मन से निकालना होगा। कल अंकिता की शादी है। अगर तुम मेरी बात मानो तो आज ही जाकर उसे सब बता दो, मुझे पता है इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है और मेरे मुताबिक अंकिता भी ये ही कहेगी। तुम्हारे पास ये आखरी मौका है। पर आकृति के बहुत समझने पर भी अमित नहीं माना। आकृति ने भी ये दृढ निश्चय कर लिया था कि पश्चाताप का ये डर वो आज अपने होने वाले पति के दिल से निकालकर रहेगी।

वो अमित को बिना बताये अंकिता के पास गयी और उसे सब बता दिया कि कैसे अमित पश्चाताप की आग में जल रहा है। अंकिता आँखों में आंसू भर कर बोली , नहीं भाभी, इसमें अमित का कोई कसूर नहीं था वो ऐसे ही अपने आपको गुनाहगार समझ रहा है। मैं भी उस दिन तालाब के पास ही खेल रही थी। निखिल अपनी मर्जी से ही तालाब पार करने गया था। अमित भैया ने तो अपनी जान पर खेल कर उसकी जान बचने की कोशिश की थी। मैं उस वक्त बहुत डर गयी थी इसलिए घर भाग गई थी और किसी से कुछ कह नहीं पाई थी। मैं अभी जाकर भैया की ग़लतफहमी दूर कर देती हूँ। वो झट से भाग कर अमित के कमरे में गयी। आकृति बाहर ही खड़ी रही। वो दोनों बहन भाई के बीच में नहीं आना चाहती थी।

थोड़ी देर बाद जब अमित और अंकिता दोनों बाहर आये तो उनकी आँख में आंसू थे। अमित ने आकृति को गले से लगा लिया। उसकी आँखें आकृति को कह रहीं थीं कि उसने अमित को एक बहुत बड़े भंवर से निकल दिया है। अगले दिन वो बिना किसी मन के बोझ के शादी को एन्जॉय कर रहा था। उसने भाई के सारे फर्ज निभाए और अंकिता को विदा किया।

अगले दिन वो आकृति को तालाब पर ले गया। वो घंटों उस तालाब के पास बैठे रहे। ये वो ही दिन था जिस दिन निखिल की मौत हुई थी पर अब अमित के मन में डर न होकर सुकून था। उसकी आंखें भर आईं थी और वो उस तरफ ही देख रहा था जहाँ निखिल डूबा था , जैसे उसे कह रहा हो कि मैंने तुम्हारी सारी जि म्मेदारिआं निभा दी हैं और मेरा प्रायश्चित अब पूरा हुआ। और आकृति अपना सिर अमित के कंधे पर रख कर ये सोच रही थी कि मेरे होने वाले पति के उपर

 जो एक अनजान कर्ज था वो उससे मुक्त हो गया है।

उधर जब मनीष अंकिता से बोला कि मैं तो समझ रहा था अमित तुम्हारा सागा भाई है तो अंकिता बोली नहीं, वो मेरा सागा भाई नहीं उससे बहुत बढ़कर है।  


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