प्यार की दो बातें - भाग ७ ( आख़िरी )
प्यार की दो बातें - भाग ७ ( आख़िरी )
जब तक नेहा जिन्दा थी तो उसका ज्यादातर समय उसकी याद और चिंता में ही बीत रहा था। अब नेहा के चले जाने पर एक बार तो उसने सोचा कि वो वापिस इंग्लैंड चला जाये। फिर उसने वहीँ रहकर अपनी जिंदगी बदलने की सोची। शुरू शुरू में उसने उसी हस्पताल में गरीब मरीजों को मुफ्त देखना शुरू किया और कुछ देर बाद एक अपना ही चैरिटेबल हॉस्पिटल नेहा के नाम पर खोल लिया। वो और भी कई समाजसेवा के काम करने लगा।
उसने अपनी दिनचर्या भी पूरी तरह बदल दी। वो रोज सुबह उठ कर सैर को जाता और एक दो घंटा पार्क में बिताता। वहां वो बच्चों से भी खेलने लगा । पार्क में कभी किसी जोड़े को साथ में बैठे बातें करते हुए देखता तो नेहा याद आ जाती। अपने माता पिता के प्रति भी जो गुस्सा उसके मन में भरा हुआ था वो धीरे धीरे कम होने लगा और वो उनसे कुछ कुछ बातें भी करने लगा। एक बार तो उसकी माँ को लगा कि शायद अब अंकित शादी के लिए भी तैयार हो जाये पर जब उसने अंकित से बात करने की कोशिश की तो अंकित ने साफ़ इंकार कर दिया और माँ से इस बारे में दोबारा भी कोई बात करने से मना कर दिया।
अंकित अब जिंदगी के बहाव में बहने लगा था। गरीबों के सेवा करके मन भी शांत रहता था। नेहा की मौत ने अंकित को बिलकुल ही बदल दिया था। अब वो दिन भर अपने मरीजों का मुफ्त में इलाज करता रहता और कई और तरह से भी उनकी मदद करता रहता। शायद वो इस बात का प्रायश्चित कर रहा था कि वो नेहा को अकेले छोड़कर इंग्लैंड क्यों चला गया था और रात को सपने में नेहा से अपने पूरे दिन की बातें करता। पर अब वो घबराहट जो उसे पहले हुआ करती थी वो ख़तम हो गयी थी।
अंकित अब साठ साल का हो चुका था। न जाने कितने साल अब उसने नेहा से सपने में बातें करते करते बिता दिए थे। उसके माता पिता भी इस दुनिया से जा चुके थे। एक दिन नेहा सपने में आई पर वो कुछ बोल नहीं रही थी। अंकित ने पूछा ‘ नेहा आज कुछ बोल क्यों नहीं रही हो ‘। नेहा बोली ‘ अब बहुत हो गया सपने में बातें करते करते। तुम्हारा प्रायश्चित अब पूरा हो गया। अब तुम भी सब छोड़कर यहाँ आ जाओ। दोनों आमने सामने बैठ कर बातें करेंगे ‘।अंकित को भी भी शायद अब ये लग रहा था कि समय आ गया है कि उसे नेहा के पास चले जाना चाहिए और उसी रात वो ये दुनिया छोड़कर अपनी नेहा को लेकर एक अलग दुनिया में चला गया जहाँ वो सकून से बैठ कर प्यार की दो बातें कर सकते थे।