Shalinee Pankaj

Romance Inspirational

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Shalinee Pankaj

Romance Inspirational

गुड़ पानी

गुड़ पानी

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अमन एक गरीब परिवार का बहुत भोलाभाला, सच्चा व सरल लड़का था। पढ़ाई में उतनी ज्यादा उसकी रुचि नहींं थी, मुश्किल से उसने 12वीं पास किया। फिर घर की स्थिति ऐसी थी कि वह मजदूरी करने लगे। पिता तो पूरे समय शराब के नशे में धुत रहता था। मां बनिहारी का काम करती थी। अमन से देखा नहींं गया अमन ने सोचा क्यों ना मैं भी कुछ काम करके घर की मदद कर सकूं। बस वह मां के साथ मजदूरी करने जाता था। मां जो पैसे लेकर आती थी, पिता उसे छीन लेता था और उसका शराब पी लेता था फिर कहीं जाकर पड़ा रहता नशे में।

अमन बहुत संस्कारी लड़का था, और मुसीबत इंसान को बहुत कुछ सिखा देती हैं। अमन किसी तरह कठोर मेहनत की औऱ ठेकेदार के अंदर में काम करने लगा। जहाँ कहीं भी सरकारी भवन, बिल्डिंग, मकान, पुलिया वगैरह बनते उसमें उसे काम मिल जाता पर हमेशा उसे काम नहींं मिलता था। कभी कहीं, तो कभी कहीं भटकना पड़ता। उन दिनों वह एक बाबू के घर काम कर रहा था डबल स्टोरी मकान अपने घर के बगल में वह बाबू बनवा रहा था। जाति से कायस्थ था वह और अमन केवट था काम के बीच में मध्यान्ह में जब सब मजदूर अपना टिफिन खाते तो अमन बैठे रहता था, क्योंकि घर में 1 दिन का निवाला निकालना भी मुश्किल होता था। उसे पता था अगर वह खाएगा तो उसकी मां भूखी रह जाएगी इसलिए वह बस सुबह से कुछ खाकर आ जाता। जो रात को बचा बासा रहता है, और टिफिन लेकर नहींं आता कड़ी धूप में परिश्रम करता और रात में थोड़ा बहुत कुछ खा कर सो जाता था। माँ कितना भी कहती तो यही कहता ठेकेदार भोजन कराता है जबकि ऐसा कुछ नहीं था।

श्रीवास्तव बाबू की एक बेटी थी 'भारती' ! श्रीवास्तव जी की पत्नी दोपहर में गुड़ व पानी मजदूरों के लिए भिजवा देती थी, क्योंकि मकान बनने का काम बहुत शुभ माना जाता है ;और यह रिवाज है कि दोपहर में मजदूरों को गुड़ और पानी दिया जाता है। अमन  गुड़ और पानी को खा कर रह लेता था।

शक्ल से अमन बहुत काला था पर चेहरे पर सच्चाई की चमक थी। भारती जब मजदूरों के लिए गुड़ लेकर आती तो अमन के पास टिफिन नहींं रहता था। इस बात को उसे पता चल चुका था, इसलिए एक गुड का एक डला उसे ज्यादा दे देती थी। ताकि उसकी भूख शांत हो। मकान धीरे-धीरे बनने लग गया। अमन और भारती की दोस्ती होने लगी थी, हालांकि अमन जानता था अपनी हदों को, और भारती उसकी सादगी पर मरने लगी थी।

मकान बनने के बाद उसने पानी डालने का काम चलता है। कभी गुड़ तो कभी पानी कभी चाय लेकर भारती आती थी। कई बार मजदूरों की छुट्टी हो जाती थी। अमन ठेकेदार के साथ काम समेटते रुका रहता। भारती तब अमन के पास आ जाती थी।

आज अमन अपने काम में व्यस्त था,भारती जानबूझकर अमन के पास आकर लड़खड़ाई की अमन ने एकाएक उसे थाम लिया था। दोनों कुछ पल को एक दूसरे को देखते ही रह गए थे। एकाएक अमन ने उसे दूर किया और वापस अपने काम में लग गया।

भारती भी अब मकान देखने के बहाने पूरे समय वही रहती थी। श्रीवास्तव बाबू और उसकी पत्नी इस बात से बेखबर थे की बच्चों को नए मकान बनने को लेकर एक अलग ही खुशी होती है। लेंटर ढलाई हो चुकी थी, छबाई भी हो चुकी थी। पुताई का काम था पुताई का काम में भी अमन को ही रखा गया। काम के बीच कभी इमली नमक, तो कभी कैरी लेकर भारती अमन के आस-पास डोलते रहती थी। अमन ने अपने साथी मजदूरों के साथ उसने पुताई का काम शुरू कर दिया।

एक दिन अमन कहता है "भारतीजी कल पुताई का काम खत्म हो जाएगा ! शुक्रिया आपने मेरी मदद की।" भारती:-" कैसे मदद की मैंने आपकी।

"मुझे पता है भारती जी की आप मुझे एक गुड़ का डला ज्यादा देती थी, क्योंकि मैं टिफिन लेकर नहींं आता था इस दया और कृपा के लिए शुक्रगुजार हूं।"

" मुझे तुमसे कुछ कहना है अमन "

"भारती जी कहिए भारती कहती है " देखो कल तो पुताई का काम पूरा हो जाएगा फिर तुम यहां से चले जाओगे पता नहींं। फिर तुम कब यहां आओगे या नहीं भी, कब हमारी मुलाकात हो ?तो मैं आज तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। यही कि मैं तुमसे प्रेम करती हूं। मैं तुम्हारे प्रेम में हूं ।"

"पर"

"पर..वर कुछ नहींं।"

भारती" पगले प्रेम तो किसी का रंग-रूप उसकी प्रतिष्ठा रुतबा देखकर नहींं होता है। प्रेम तो प्रेम होता है। दो दिलों का मिलन होता है। वह हो जाता है बिना सोचे समझे। कोई सोच समझकर थोड़ी ना प्रेम करते हैं ! हां शायद यह एकतरफा होगा तो, शायद...तुम मुझसे प्रेम नहींं करते होगे पर मैं अपनी फीलिंग तुम्हें बताई हूं और सच कहूं तो मैं तुम्हारे बगैर 1 दिन भी नहींं रह सकती मैं, तुम से विवाह करना चाहती हूं।" अमन कहता है "विवाह तो दूर की बात मेरे घर के लोग भी स्वीकार नहींं करेंगे। ये अलग बात है कि तुम प्रतिष्ठित घराने से हो। तुम्हारे पिताजी सरकारी नौकरी में है। एक अच्छे पद में है और मेरे पास तो कुछ भी नहींं है। मेरे पिता तो शराब के आदी है नशे में धुत रहते हैं। मां भी मेहनत मजदूरी करती है और मैं भी करता हूं। मैं तुमको नहींं रख सकता। मैं तुम ...तुमको तुम्हारे हिसाब से नहींं रख सकता। ऐसा नहींं हो सकता भारती मुझे भूल जाओ।"

भारती कहती है " अच्छा इतना तो बता दो कि तुम मुझसे प्रेम करते हो या नहींं। देखो सच बोलना क्योंकि मैंने तुम्हारी आंखों में देखा है अपने लिए प्रेम। " अमन कहता है "हां भारती जी मैं भी आपसे प्रेम करता हूं पर दुनिया ऐसी नहींं होती है। यथार्थ की बात कुछ और होती है ! प्रेम की बातें करने से कैसे होगा ये सिर्फ फिल्मों में,कहानियों में ही अच्छा लगता है और अब तो आप कॉलेज पढ़ रही हो, अभी आपको बहुत पढ़ाई करनी है। मेरी तो पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है नहींं। इस आधार पर तो मुझे कोई नौकरी भी नहींं मिल सकती ।मेरी जिंदगी बस यही मेहनत मजदूरी करना है ।"

भारती कहती है "तुम मुझसे प्रेम करते हो। बस मैं यही सुनना चाहती थी । अब मैं जैसी हूं उसी हालत में आपके साथ जाने के लिए तैयार हूं, और अगर मुझे तुम ने स्वीकार नहींं किया तो मैं यही छत से कूदकर अपनी जान दे दूंगी। इसी नए मकान से।"

अमन सोच में पड़ जाता है "देखो भारती मैं इतना परिपक्व नहींं हूं, कि मैं कोई जिम्मेदारी उठा सकूं और मेरे घर के लोग तुम्हें स्वीकार नहींं करेंगे। हमारा बहुत बड़ा समाज है।क्या कहेंगे लोग ?

घर में तो खाने के लाले पड़े हैं डाढ़(सामाजिक दंड) देने की हिम्मत किसी के में नहींं है समाज के नातेदार कोई तुम्हारे हाथ का भोजन नहींं करेगा, कि तुम भी विजातीय हो।"

भारती कहती है "तो ठीक है मुझे तुम कहीं ले चलो मैं 1 घंटे का समय। 1 घंटे के अंदर मुझे जवाब दो।" अमन सोच में पड़ जाता है कि क्या करें ? और फिर उसने एक निर्णय लिया। भारती से जाकर कहते हैं "देखो भारती तुम्हें कोई अच्छा लड़का मिल जाएगा मैं तुमसे विवाह नहींं कर सकता !" 

भारती दौड़ पर छत में जाती है अमन भी उसके पीछे पीछे जाता है औऱ जब भारती जैसी छलांग लगाने वाली थी कि अमन उसे पकड़कर गले लगा लेते हैं और कहता है "चलो मेरे साथ।" दोपहर का समय था उसे कुछ समझ नहींं आता है कि क्या करें अगर घर जाते हैं तो ..सब भारती को घर से बाहर निकाल देंगे। फिर वह कहां जाएगी हो सकता है, मुझे ताला बंद करके अंदर कर दें। 

कुछ सोच वह रेलवे स्टेशन की तरफ चला जाता है और वहां से टिकट कटा कर लखनऊ के लिए निकल जाता है। एक नए सफर की शुरुआत दोनों साथ-साथ करते हैं ।

इधर अमन की मां परेशान पर पिता को तो कोई फिक्र ही नहींं थी। हालांकि घर में कमाने वाला एक कम हो गया था पर उसे क्या फर्क पड़ता था, वह तो शराबी था। पर भारती के घर में कोहराम मच गया था। श्रीवास्तव बाबू पूरा पता करते है तो पता चलता है कि वह उस लड़के अमन के साथ चली गई।

भारती के पिता अमन के घर जाते हैं और उसकी मां को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं। उससे पूछते कि वह कहां गए थे तो वह कहती है रोते हुए "पता ही नहींं साहब मेरा बेटा तो लौट के आया ही नहींं है। " वो लौट आते है घर,जानते थे दोनों बालिग थे। वो कुछ नहीं कर सकते थे।

भारती की माँ बोलती है "बेटी तो हाथ से निकल गई वापस भी आ जाएगी ..तो क्या मतलब जात-कुजात हो गयी अब तो ।"

"कैसी बात करती हो तुम, तुम तो उसकी माँ हो ना। ऐसा कैसे कह सकती हो तुम। हमारी संतान है राह भटक गई तो क्या हुआ।"

भारती की मां बोलती "पर गई कहां है वह यह भी तो आपको नहींं पता है !"

ईधर लखनऊ में तो कई दिन भूखे काटना पड़ता है फिर इटाभट्टी में अमन काम में लग जाता है वही झुग्गी झोपड़ी बनाकर वो लोग गृहस्थ जीवन शुरू करते है। भारती हर तरीके से कुशलतापूर्वक गृहस्थी चलाने लगी थी। कभी कोई कमी भी हो तो उसका जिक्र भी नहीं करती थी, न कभी कोई शिकायत ही करती थी। छोटे से घरौंदे को प्रेम से सजाकर रखती थी। शाम को अमन का बेसब्री से इंतजार करती थी। कई बार अमन से इटाभट्टी

में खुद के भी काम करने को पूछी तो अमन मना कर देता है कि "भारती तु तो मेरी गुलाब है इतने नाजुक हाथ है तेरे,ये मेहनत मजदूरी तुझसे नहीं करवाउंगा। "

गरीबी में भी वो दोनों सुखपूर्वक जीवन बिता रहे थे कि अमन को माँ की याद आती है। उसे याद आता है पिता कितना अत्याचारी है वो तो दारू पीकर माँ को मारता भी था तब अमन ढाल बन जाता था धकिया देता था अपने पिता को और वो लुढ़क कर नशे में सो जाता था। लेकिन अब माँ का क्या होगा ? वो राशन की दुकान में फोन लगाकर माँ से बात कराने को कहता है।

कुछ देर अमन की माँ फोन पर आती है और अमन की आवाज सुनकर भावविह्वल हो जाती है। वो कहती है " तु जहाँ कहीं भी है घर आजा । " अमन उन्हें भारती के बारे में बताना चाहता है पर वो कुछ भी नहीं सुनना चाहती थी। बस लौट आने के लिये कहती रहती है"की अगर तु नहीं आया तो प्राण तज दूँगी। अमन उन्हें " हाँ !" कह देता है।

अमन घर आता है और भारती को बताता है। भारती भला मां बेटे के बीच क्यों आती उसने सहर्ष जाने के लिए हाँ कह दिया। अमन व भारती अगले दिन ही वापसी की टिकिट कराते है। अमन बहुत ज्यादा खुश था। भारती भी थी आखिर उसकी खुशी तो अमन के इर्द-गिर्द घूमती थी।

अगले दिन वह लोग घर पहुंचते हैं। माँ जब दरवाजा खोलती है तो, अमन सामने रहता है उसे देख माँ बहुत खुश हो जाती है ;और उससे लिपट जाती है। "मेरे लाल तु कहाँ चला गया था, अब कहीं नहीं जाना।" पीछे भारती खड़े रहती है अमन कहता है "मां तुम्हारी बहू भी आई है, पहली बार !आरती नहींं करोगी ?अमन की मां भारती को देख गुस्से में अमन से दूर हो जाती है और कहती है " अमन जा इसे इसके घर छोड़ आ।" अमन कहता है " कैसे बात करती हो ये कहाँ जाएगी। हमने आर्यसमाज में जाकर शादी की है,एक माह से साथ रह रहे कैसे छोड़ दूं इसे। अगर इसके लिए यहाँ जगह नहीं तो जा रहा हूँ मैं भी।"

अमन भारती का हाथ पकड़ बाहर निकलता है कि उसकी माँ जाकर हाथ जोड़ लेती है और कहती है " चलो अंदर ये घर तुम दोनों का है।" कुछ दिनों बाद भारती के पिता जी को पता चलता है तो वो घर आता है उस वक्त घर पर भारती बस रहती है। भारती को खाना पकाते देख वो ठिठक जाते है कि जो लड़का मेरे घर मजदूरी किया,मेरे घर का गुड़ पानी खाया उसी लड़के को मेरा दामाद बना दे हरगिज नहीं वो अपना कदम पीछे ले -लेते है की भारती की नजर पड़ती है पिता को सामने देख दौड़कर लिपट जाती है। पिता का दिल भी पसीज जाता है सर पे हाथ रखते है। कुछ देर बैठने के बाद वो जाने लगते है। भारती को कहते है "बेटा अब ये घर तुमने चुंका है इसलिए मेरे घर के दरवाजे बंद ही मिलेंगे। हाँ मैं कभी मिलने आ सकता हूँ पर माँ से उम्मीद मत रखना।" ओर वो चले जाते है।

भारती कुछ दिन उदास रहती है फिर अपने ससुराल को ही अपना मान आगे बढ़ जाती है। इसी में सबकी भलाई भी थी। अमन भी पहले की तरह काम पे निकल जाता था। बहु के आने से ससुर अब घर के अंदर कम ही आते थे। अमन की माँ अमन के सामने अच्छा व्यवहार करती थी पर उसके बाहर जाते ही भारती पर ताने कसती थी। भारती कोई बात अमन को बता कर उसका मन खट्टा नहीं करना चाहती थी पर अमन कभी-कभी कुछ सुन लेता था फिर भी चुप रहता था। आखिर पत्नी का पक्ष लेगा तो जगहंसाई होगी फिर माँ तो बड़ी है आखिर कब तक एकतरफा युद्ध करेगी। यही सोच वह मौन रह जाता था। जिसे अमन की माँ अपने जीत समझ अब खुलेआम उसकी बेज्जती करती पूरा घर का काम करवाती औऱ बिना वजह परेशान करती थी। जिसे देख अमन कुढ़ने लगा था,पर कुछ कर नहीं पाता था।

अमन की बुआ व चाची का परिवार सहित आते है। भारती उनके आवभगत में खूब सारा पकवान व भोजन तैयार करती है,पर उसकी चाची व बुआ ने आते ही कोहराम मचा दिया कि भारती के हाथ का पानी भी नहीं पीना है तो भोजन तो दूर की बात है। बहुत मान मनौवल हुआ और डाढ़ की धमकी भी दे दी गयी। यह सुनकर अमन की माँ भारती को चिल्लाती है " सबकी जड़ यही है। बता कहाँ से आएगा डाढ़ का पैसा। कैसे इतने लोगो को भोजन कराऊंगी जा अपने घर चली जा।" कहकर भारती को धक्का मारती है। वो दीवाल से टकराती है दुख व पीड़ा में उसकी स्वांस तेज हो जाती है आँख में आँसु व रक्तदाब तेज हो गया वो बेहोश सी हो गयी।

माहौल बिगड़ते देख अमन को आखिर बीच मे कूदना पड़ा पर कुछ नहीं हुआ आखिर अमन की माँ ने भारती को फिर घर से धकिया कर बाहर निकाल दिया। बस उसी वक्त अमन उसका हाथ पकड़ लखनऊ आ गया जहां से उसने अपने नए जीवन की शुरुआत की थी। सब पहले की तरह ठीक हो गया था। एक माह बाद उसके एक मित्र ने मदद की औऱ अमन को अब एक फैक्टरी में नौकरी मिल गयी थी। मासिक तनख्वाह बंध गयी थी। उनके दिन अच्छे गुजरने लगे थे। हालांकि एक झोपड़ी में ही रहते थे। सब समय के साथ ठीक हो जाएगा सोच वो वर्तमान में ही खुश रहने लगे थे।

इधर एक महामारी ने विश्व में दस्तक दी। धीरे-धीरे भारत में भी कोरोना वायरस ने कदम जमाने लगे थे। एक दिन का लॉकडाऊन हुआ तब भी किसी ने नहीं सोच था कि एकाएक सब बंद हो जाएगा। हालाँकि डर धीरे-धीरे व्याप्त होने लगा था।

वो दिन जब पता चला की 21 दिन के लिए लॉकडाऊन

हुआ। फैक्ट्रियां,मिले छोटे,बड़े उद्योग सब बंद हो गयी। लोग बेरोजगार हो गए। अमन के साथी अपने प्रदेश व अपने घर को लौटने लगे थे। सबका मन छटपटाने लगा था कि जितनी जल्दी हो घर पहुँच जाए। कोई सुविधा नहीं थी कोई बस की आस में तो कोई साइकिल से ही कोई पैसा देकर मालवाहक ट्रूक में तो बहुत से लोग पदयात्रा कर ही निकल गए। सबने अमन को भी पूछा पर अमन ने कोई जवाब नहीं दिया। अमन भारती के पास आया।

भारती:- क्या बोल रहे है वे लोग?

"सब घर को लौट रहे है। आज रात एक औऱ आखिरी काफिला निकलेगा।"

"पर सरकार ने तो कहा है कि ' जो जहाँ है वो वही रुके रहे।' तो लोगो को समझना चाहिए न?"

"अरे भारती तुम समझ नहीं रही हो, लोग बेरोजगार हो गए,खाने के लाले पड़ जाएंगे फिर यहाँ डेरा वाले जैसे ही तो रहते है दिहाड़ी मजदूर ।"

"ओहहो, पर...पर हम नहीं जा सकते।"

"हाँ भारती हम नहीं जा सकते,आखिर हम जाएंगे भी कहाँ। हमारे घर के दरवाजे तो बंद हो चुके है। अब जाएंगे भी तो कहाँ ? इससे अच्छा है यही रहते है,चाहे भूखे ही क्यों न मर जाये।"

दोनों एक-दूसरे से लिपट कर रोने लग जाते है।

रात को आखिरी काफिला भी पलायन कर गया। रह गए तो अमन व भारती।

धीरे-धीरे राशन खत्म,पैसा खत्म। पानी पीकर कई रात गुजारे। आखिर एक दिन अमन दिहाड़ियो का जो अड्डा था वहाँ जा खड़ा हो गया। कोई राहगीर गुजरे तो मदद मांगें। सन्नाटे के सिवा कोई नहीं दिखा वो चलने लगा। चलते-चलते एक मकान के बाहर रात की सूखी रोटी पड़ी थी कुत्ते के लिए। वो रोटी के लिए लपका की कुत्ता सामने आ गया। उसकी पिचकी हुई पेट पर नजर पड़ते ही उसने हाथ से वो रोटी नीचे छोड़ दिया। घर लौट आया फिर खाली हाथ। भूख में न उससे चला जाता न भारती से उठा जाता था। दोनों बस शांत पड़े रहते कोने में। न भारती ने हिम्मत हारी थी न अमन ने।

आखिर एक दिन थक हारकर अमन फिर घर से निकला चलते -चलते एक हनुमान जी का मंदिर दिखा, वहाँ बैठा तो उठा नहीं गया वो लेट गया और उसकी मुंद गयी कि सहसा झपकी लगी कि उसने स्वप्न देखा कि भूख से भारती के प्राणपखेरू उड़ गए, वो छाती पीटते रह गया कि एकाएक नींद से उठा "नहीं ..नहीं भारती मेरी गुलाब तुझे यूँ मुरझाने न दूँगा। अपने जिस्म का बोटी-बोटी भी बेच डालूँगा पर तुझे भूखा नहीं रख सकता वो हनुमान जी की तरह आँखों में आसुँ भरकर देखता है मन ही मन कहता है आठ दिन से भूखा हुँ बारह दिन औऱ रह जाऊँगा पर भारती तो ....उसे कैसे भूखा रखूँ कहकर रोते हुए वह सिर झुका देता है। "है खेड़ापति अब आप ही रक्षा करो !" कहकर वो पलटता है कि उसी चौरे में कोई हनुमान जी को भोग लगाया था। उस पर नजर पड़ते ही वो क्या है? ? उसे बिना देखे वो क्षमा प्रभु कहकर वो घर की तरफ दौड़ता है, इतनी खुशी में की मानो आज कोई कई दिनों का भूखा नहीं बल्कि कोई धावक दौड़ रहा था।

घर पहुँच कर वो घड़े से पानी निकाल भारती को देता है। और वो दोना आगे करता है।

" क्या है इसमें?

" खुद देखो !"

भारती दोना खोलती है तो चना गुड़ रहता है वो अमन की ओर देखते हुए कहती है ये चना गुड़ किसने दिया ?,कहाँ से लाये?"

अमन:- ये मेरे स्वामी मतलब मेरे मालिक( हनुमान जी) ने दिया है ! अब चलो जल्दी खा लो गुड़, पानी।"

"गुड़ पानी"

दोनों खाते हुए हँसने लग जाते है। अमन कहता है " आज गुड़ पानी से दुबारा जीवन में रौशनी लौट आई।"

अब तो अमन रोज मंदिर जाता और जो हनुमानजी का भोग लगाया हुआ रखा रहता वो अमन हनुमानजी की जयकारे लगा कर ले आता था।

न ये अमन जान पाया न कोई औऱ जान पाया कि इस प्रसाद के पीछे का क्या राज है। लॉकडाऊन में कोई घर से बाहर निकल मंदिर नहीं जाते थे। न अमन ने भोग लगाने वाले किसी भक्त को कभी देखा। वो तो भोलाभाला था, सच्चा था। बस जो मिलता उसी को ईश्वर का प्रसाद समझ ले जा लेता था। लॉकडाऊन आगे बढ़ गया पर अमन को अब तक कोई परेशानी नहीं हुई।

सब पहले की तरह हो जाये दोनों को बस यही इंतजार है।


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