Shalinee Pankaj

Horror

3.4  

Shalinee Pankaj

Horror

तपन

तपन

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मदनपुर वैसे तो ऐतिहासिक नगरी थी। राजाओं के रजवाड़े थे पर समय के साथ सब ध्वस्त होने लगे थे। सरकार की मदद से लोगो ने पर्यटन के रूप में इस जगह को संजोया था। गाँव के लोग भी आस पास सब जगह घूमने जाते पर अचानक से मदनपुर के गांव के समीप एक जंगल था जहाँ लोग कम ही जाते थे। पता चला था कोई बावड़ी है जिसमे काला पानी है दिन में तो सूखा रहता है पर रात में लबालब भर जाता है इतना अजीब आवाज आता है कि जैसे कोई है वहाँ। जब इस बावड़ी का पता चला तो सरपंच से लोगो ने वहां की सफाई के बारे में कहा पर बुजुर्गों ने मना किया कि वो शापित बावड़ी है। उसे कोई देखने ना ही जाए तो बेहतर होगा। सरपंच ने उस जगह पर घेराबंदी करवा दिया कि ये खतरे को जगह यहाँ कोई न जाये। कुछ गाँव के युवक उत्सुकता वश शाम के समय वहाँ गए तो बावड़ी के समीप पहुँचते ही किसी के रोने की आवाज आने लगती थी, तो कभी चूड़ियों की खनक सुनाई देती थी। उन लड़कों को लगा कि शायद यहाँ कोई युवती फंसी हो और जैसे ही वो लोग बावड़ी के अंदर गए कि एक -एक कर गहरे पानी में छलांग लगाते गये। कहते है कि वो बावड़ी लोगो को खुद अपनी ओर खींचती है लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि किसी लाश भी नहीं मिलती थी। दिन के समय तो वो बावड़ी सुख जाती थी पर कहते रात में पानी से भर जाता है औऱ विचित्र आवाजे आने लगती है।

कुछ बाहरी युवक गए तो लौट कर नहीं आये। तब से वहाँ कोई नहीं जाता था।

तपन अपने माता -पिता की तीसरी संतान है। दो भाइयों का विवाह हुआ बच्चे हुए पर तपन 38 वर्ष का कुंवारा ही रहा। कोई आय का उसका साधन नहीं था।

पिता ने बचपन से उसके पढ़ाई में कमजोर व आलस्य, नकारेपन के कारण उसके नाम के साथ ये जरूर कहते 'तपन तु पतन की राह जा रहा है।' उसका कहीं विवाह भी नहीं लग रहा था।

तपन जुआ व शराब की बुरी लत में जब पड़ा तो भाइयों ने भी यही कहना शुरू कर दिया। चौराहे पर शराब के नशे में धुत्त देख पिता ने उसे घर से निकाल दिया। "दूर हो जा मेरी नजरो से, अब अपनी शक्ल भी मत दिखाना। जा नालायक कहीं, जाकर मर।"

तपन जाता कहाँ शराब के नशे व अंधेरी रात में उसके बचपन के मित्र यज्ञ ने उसे सहारा देना चाहा औऱ अपने घर ले आया। यज्ञ हमेशा बुरे वक्त पर तपन का साथ देता उसे समझाता पर घर में जो उसे तिरस्कार मिलता भाई, भाभियों से उसने भी बस बिगड़ने की ठान ली। सच्चे दोस्त की दोस्ती बस अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करता पर नसीहतें कभी न मानता। यज्ञ जानता था। तपन दिल का बुरा नहीं है। निर्दयी निष्ठहुर नहीं है, ना ही छल -कपट जानता है।

आज जब यज्ञ तपन को घर लेकर आया तो, यज्ञ की पत्नी भी ने तपन के बारे में यज्ञ को अंदर बुलाकर खूब खरी खोटी सुनाई। "देखिए यह तो पतन की राह में जा रहा है इसके साथ आप भी चले जाओगे, इससे अच्छा है इसको यहां से दूर भगा दो। वैसे भी हमारा घर छोटा है। हम शादीशुदा हैं, यह कैसे रहेगा यहां ।जाओ कह दो उनसे बाहर जाने को और नहींं तो आप भी उसके साथ चले जाओ।"

यज्ञ अपनी पत्नी को चुप कर आता है। वह कहता है " अरी भाग्यवान तुम कुछ देर चुप तो रहो। देखो वह एक अच्छे इंसान हैं, भले ही बुरी लत में पड़ गया है पर वह दिल का बुरा नहींं है; और ऐसी विपत्ति की घड़ी में मित्र अगर मित्र की काम नहींं आएगा तो ऐसी मित्रता का क्या मतलब। आज उसके पिताजी ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। आज की रात उसे यहां रहने दो कल में कोई ना कोई उसकी व्यवस्था कर दूंगा ;पर अभी तुम शान्त रहो कुछ देर।" यह कहते हुए यज्ञ बाहर जाना बाहर जाता है तपन के पास लेकिन तपन यज्ञ की पत्नी की बात सुनकर वहां से निकल जाता है। यज्ञ दौड़कर बाहर निकलता है।बहुत दूर तक ढूंढने जाता है रात अंधेरी हो चुकी थी 12:00 बजने को आया था बहुत दूर तक ढूंढ कर कर यज्ञ वापस चला जाता है।

इधर तपन जानबूझकर जंगल की ओर निकल जाता है ताकि उसका दोस्त उसे ढूंढ ना पाए क्योंकि जंगल की तरफ कोई भी नहींं जाता था और उसका दोस्त भी वहां तक उसे ढूंढने नहींं जा पाएगा इसलिए तपन जानबूझकर जंगल क्यों निकल जाता है। वो नहीं चाहता कि उसकी वजह से उसके दोस्त के गृहस्थ जीवन में किसी प्रकार की परेशानी आये। शराब के नशे में उसको होश भी नहींं रहता है चलते चलते वह घने जंगल के बीच पहुंच जाता है।

थक कर चूर हो जाता है और एक जगह पत्थर में बैठ जाता है जैसे ही बैठता है उसके कान में गांव वालों की, उसके भाई भाभियों की, उसके पिताजी की आवाज गूंजती थी की तपन तु पतन की राह में जा रहा है और इतना सुनते ही वह गुस्से में उठा और फिर चलने लगा चलते चलते उसे बहुत जोरों की प्यास लगने लगी प्यास में बेहाल हो चुका था, अचानक उसे बावड़ी दिखती है पर बावली तो सूखी हुई है लेकिन तभी उसे पानी की आवाज आती है। वह थोड़ा होश में भी आता है शराब का नशा थोड़ा कम होता है। उसे लगता है कि कहीं यह पानी जहरीला ना हो, लेकिन प्यास इतनी ज्यादा लगी थी कि उसे लगता है कि पानी पीकर ही मर ना ज्यादा उचित है प्यास से मरने की बजाय और वह बावड़ी के पास जाने लगता है।

कृष्ण पक्ष की काली रात हो या शुक्ल पक्ष जंगल के उस अंधेरे में तो दिन भी रात की तरह लगती थी। घने पेड़ो। की वजह से सूरज की रोशनी भी बमुश्किल से पहुँचती थी।

घनी अंधेरी रात जंगल की बहुत भयानक लगती थी, तपन वैसे डरपोक तो नहीं था ना ही वो भूत प्रेतों पर विश्वास करता था। उसे लगता था सब मनगढंत कहानियां रहती है और कुछ नहीं।

वो बावड़ी की सीढ़ियां उतरने लगता है तो उसे आभास होता है उसके साथ कोई और भी है, वो एकदम से ठहर जाता है पर अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

की पानी की आवाज आती है यूँ लगता है जैसे कोई नहा रहा हो। चूड़ी की खनक के साथ एक मोहिनी हंसी सुनाई देती है। कुछ होश भी था तो शराब का नशा भी उतरा नहीं था। वो चिल्लाता है "कौन -कौन है यहाँ।?" वो हंसी बावड़ी में और भी भयंकर लगती है। अचानक उसे लगता है पायल की खनक के साथ कोई उसकी ओर आ रहा है वो भय में पसीने से तरबतर हो जाता है लगने लगता है कि आज उसके क्रियाकर्म भी हो जाएगा। वो सोचने लगता है कि मैं यहाँ आया ही क्यों ?और उसके कदम लड़खड़ाते है वो गिर जाता है कि कोई उसे सम्हालता है उसे हल्की मूर्च्छा आती है। जब नींद खुलती है तो सुबह हो जाती है, पर बावड़ी में कोई पानी नहीं रहता वो याद करने की कोशिश करता है कि रात में तो लग रहा था कि खूब पानी भरा है। तभी बावड़ी से किसी स्त्री की रोने की आवाज आने लगती है वो अपने कान बंद कर लेता है।

कुछ देर फिर वही करूण क्रंदन सुनाई देता है। शाम होने लग जाती है रोने की आवाज रह-रहकत आती है। तपन अब बावड़ी की ओर आगे बढ़ने लगता है। रात होने को आती है, तपन के बावड़ी के अंदर नीचे उतरते फिर से पानी भर जाता है वो सोचने लगता है क्या हो रहा पर किसी सम्मोहन सा वो आगे बढ़ता है कि एक विकराल आकृति भयंकर हंसी के साथ उसके सामने आ जाती है और तपन उसे कसकर गले लगा लेता है। वो खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है पर तपन उसे गले लगाए रहता है वो हंसी में अब फिर रुलाई की आवाज सुनने लगता है। कुछ देर बाद एक रोशनी से रात के अंधेरे में बावड़ी चमचमा जाती है। वो आकृति उससे अलग होकर शांत,सौम्य हो जाती है। दूधिया प्रकाश में चमचामती वो आकृति हवा में तैरने लग जाती है।

तपन पूछता है " आप कौन है कोई देवी या प्रेत।"

वो आकृति स्त्री रूप में स्थिर होकर तपन से कहती है

" मैं एक प्रेतात्मा हुँ। मेरे पति ने यहाँ खूब सारा सोना, हीरा इस बावड़ी में छुपाया औऱ मेरे शरीर में पत्थर बाँध जिंदा ही मुझे यहाँ धकेल दिया मैं डूब कर मर गयी तबसे सबसे प्रतिषोध ले रही थी।"

"क्या मुझे भी मारने वाली हो?"

"अब नहीं, क्योंकि तुमने गले लगाकर मेरे भयानक प्रतिषोध को प्रेम में बदल दिया अब मुक्त हो गयी। क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लगा?

"लगा, पर सोचा की अगर यहाँ प्रेतात्मा भी है तो वो किसी तकलीफ में है,कितनी दुखी है कि दिन भर रोने की आवाज मुझे बेचैन करती रही, इसलिए सोच लिया कि मरना तो है ही पर कुछ करूँ, पूछुं की क्या तकलीफ है और वो जब तुम सामने आई तो कुछ सुझा नहीं,सोचा शायद तुरन्त ही मुझे मार डालोगी तो कम से कम मरने के पहले किसी की पीड़ा कम कर सकूं।" 

"तुम सच्चे इंसान हो तुम्हारी वजह से मुझे मुक्ति मिली। वो स्त्री दूधिया प्रकाश में विलीन हो जाती है। सुबह होती है तो तपन बेहोसी की हालत में बावड़ी के अंदर पड़ा रहता है। उसके आस-पास कुछ हीरे,सोने के आभूषण रहते है। यज्ञ उसे ढूंढते हुए आता है तो उसे आश्चर्य होता है बावड़ी में स्वच्छ पानी भरा रहता है। उसका दोस्त भी उसे सकुशल मिल जाता है। यज्ञ के पूछने पर भी वो रात किसी बात का जिक्र नहीं निकालता।


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