Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Horror

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

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पश्चाताप

पश्चाताप

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उज्जैन में कुम्भ मेला समाप्त हो चुका था भीड़ भगदड़ के अलावा कोई घटना नही घटित हुई थी। 

आशीष की मैट्रिक परीक्षाएं शुरू होने वाली थी उसने अपना ध्यान परीक्षाओं पर केंद्रित कर रखा था लेकिन वह महाकाल की सेवा एव त्रिलोचन महाराज की सेवा से मुक्त नही था ।


इधर महाकाल युवा समूह अपनी नई नई उपलब्धियों के कारण नित सफलता के नए सोपान को प्राप्त करता हुआ सनातन के ईश्वरीय अवधारणा के युवा आदर्श की अवधारणा की दिशा दृष्टि बन युवा शक्ति को प्रेरित प्रोत्साहित करता जा रहा था तो महादेव परिवार भारतीय परिवारो को सन्मत संयम संकल्प के मौलिक जीवन मूल्य का संवर्धन संरक्षण करते हुए समाज को अनेको भ्रम भय के दल दल से निकलने एव शुद्ध सात्विक जीवन के सत्य का नेतृत्व करते हुये भरतीय समाज को भारतीयता के मूल सिंद्धान्त पर चलने आचरण करने के लिए प्रभवी प्रायास कर रहे थे ।


सामाजिक सार्थक परिवर्तन की तरफ बढ़ते हुए राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय प्रभवी भूमिका का निर्वहन कर रहै थे लोगों में महाकाल कि महिमा आस्था का प्रवाह दृढ़ होता जा रहा था लोगों में जुमला प्रचलित हो गया था धर्म ही समाज राष्ट्र एव समय काल की धुरी है जिसे और शक्तिशाली बनाते है देव जोशी त्रिलोचन महाराज सतानंद जैसे लोग इन सबके केंद्र में रहते है महाकाल के प्रतिनिधि के रूप में बाल गोपाल जैसे लोग जो ईश्वरीय सत्यता को प्रमाणिकता प्रदान करते हुए युग की चेतना को जाग्रत चैतन्य रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते रहते है ।


परीक्षा का समय नजदीक आ गया बाल गोपाल ने परीक्षा दिया पूरे मनोयोग से परीक्षा की तैयारी भी बहुत गम्भीरता से कर रखी थी बाल गोपाल के मैट्रिक की परीक्षा परिणाम आया वह मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास हुआ चार विषयो उज़के नंबर अस्सी प्रतिशत से अधिक थे ।


आशीष को लगा कि महाकाल में उसका कार्य पूर्ण हुआ अब उसे अपने उद्देश्य पथ पर आगे बढ़ना चाहिए वह तो अपने पीढ़ी परिवार के अपमान एव दरिद्रता के हिसाब चुकाने हेतु शक्ति समझ एव समाज बनाने के लिए घर छोड़ा था ईश्वरीय इच्छा से महाकाल तक पहुंच गया अब उसे उद्देश्य पथ पर आगे बढ़ना चाहिए वह देव जोशी जी के पास गया और अपनी मंशा जाहिर किया देव जोशी जी हतप्रद रह गए उन्होंने स्वप्न में भी नही सोच रखा था कि बाल गोपाल कभी भी महाकाल को छोड़ेगा इतनी प्रतिष्ठा सम्मान उपलब्धियों को मात्र उन्नीस बीस वर्ष की आयु में हासिल करने के बाद कोई भी व्यक्ति क्यो उस स्थान को छोड़ने की सोचेगा भी जहाँ से उसने ये कीर्तिमान स्थापित किये हो।


 देव जोशी जी को पता था कि बालगोपाल कोई साधारण मानव युवा नही है वह जो भी कदम उठाएगा उसमें निश्चित तौर पर जन कल्याण निहित होगा देव जोशी जी ने कहा जैसी महाकाल की इच्छा लेकिन हम चाहते है कि महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह तुम्हे सम्मान के साथ विश्व कल्यानार्थ महाकाल के प्रतिनिधि प्रतिबिंब के रूप में बिदा करे ।


कल हम महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह का संयुक्त आवाहन करते है तुम अपनी इच्छा वही व्यक्त करना और सर्व सम्मति से अनुमति के साथ प्रशन्नता पूर्वक अपने जीवन की अगली यात्रा का शुभारंभ करना आशीष लौट आया और त्रिलोचन महाराज के नित्य के शिव पुराण की कथा व्यवस्था करने के बाद कथा में सबसे पीछे बैठ गया शिव पुराण का उस दिन की कथा समाप्त हुई तभी श्रोताओं में बैठे योगेश कश्यप उठे और उन्होंने त्रिलोचन महाराज से प्रश्न किया महाराज जब देवाधिदेव महादेव के आदेश कृपा एव आशीर्वाद से ही युग सृष्टि का संचालन होता है तो फिर भय का वातावरण क्यो पैदा होता है ?

"क्या महाकाल अपने भक्तों को भयाक्रांत भी रखते है?"


त्रिलोचन महाराज बोले "नही कश्यप जो वो तो औघड़ दानी भोले भंडारी है वो किसी भी प्राणि का अहित नही करते सिर्फ कल्याण हेतु ही आशीर्वाद देते है आप किस भय की बात कर रहे हो?" योगेश कश्यप ने बताना शुरू किया "महाराज खंडवा जनपद से मैं आया हूँ खंडवा में अहीर वंश के राजा आसा अहीर का बहुत भव्य किला है जो लोग भी द्वादश ज्योतिर्लिंगों की दर्शन कि प्रक्रिया परम्परा में महाकाल आते है वो लोग ओंकारेश्वर भी दर्शन करने जाते है रास्ते मे राजा आसा अहीर के भव्य किले को देखने अवश्य जाते थे लेकिन विगत तीन चार वर्षों से वहां जाने से हर कोई डरता है डरने का कारण किले से दिन में भयंकर आवाजों का आना और जाने वालों का लापता होना है किले की सीढ़ियों पर खून के धार बहना एव नर कंकाल के ढेर का होना क्षेत्र के लोंगो में दहशत का माहौल बना रखा है आस पास के क्षेत्र के कस्बाई एरिया या गांवों से निरंतर लोग गायब होते जा रहे है विशेष बात यह है कि गायब होने वालों में कोई निर्धन नही होता सभी सम्पन्न परिवार के लोग ही होते है दूसरी विशेषता यह है कि गायब होने वाले परिवार का धन दौलत भी लापता हो जाता है किले से चीखने चिल्लाने की भयावह आवाजे आती है जितने भी चरवाहे भेंड़ बकरी या गया भैस लेकर गए कभी वापस नही लौटे क्या यह महाकाल का क्रोध है या ओंकारेश्वर का रौद्र रूप क्योकि आसा अहीर के विरासत का किला महाकाल एव ओंकारेश्वर के ठीक बीचों बीच स्थित है ।"


लेकिन इतने भयानक भयावह वातावरण के वावजूद ना तो महाकाल के प्रति लोंगो का स्नेह कम हुआ है ना ही ओंकारेश्वर के प्रति क्या कारण हो सकता है? आप लोग तो प्रकांड विद्वान एव सर्वश्रेष्ठ शिव भक्त है कृपया बताने की कृपा करे ।


त्रिलोचन महाराज ने बोलना शुरू किया योगेश जी यह सत्य है कि भूत भंवर भोले नाथ के परिवार में भूत बैताल पिचास स्वान सृगाल सिंह आदि आदि सभी प्राणियों का समन्वयक परिवार है मगर भगवान शिव ने किसी को यह आदेश या अनुमति नही दे रखी है कि कोई प्राणि किसी को भी बेवजह मारे या परेशान करे योगेंद्र कश्यप बोला महाराज क्या महाकाल इस समस्या का समाधान देंगे ?

क्योकि पुलिस प्रशासन तो लगभग हर तौर तरीकों को अपनाने के बाद हार मान लिया है आशीष त्रिलोचन महाराज एव योगेंद्र कश्यप कि वार्ता को बड़े ध्यान से सुन रहा था जब योगेंद्र कश्यप त्रिलोचन महाराज से किले से उतपन्न भयंकर समस्या के हल के लिए महाकाल की दुहाई दे रहे थे उसी समय आशीष को महसूस हुआ उसका अगला पड़ाव है आसा अहीर का किला है।


दूसरे दिन देव जोशी जी ने महादेव परिवार एवं महाकाल युवा समूह की सामूहिक बैठक बुलाई और बाल गोपाल के महाकाल छोड़ने की मनसा से अवगत कराया एक स्वर से सभी ने कहा नही नही यह सम्भव नही बाल गोपाल महाकाल परिवार के आधार स्तम्भ है इन्हें हम लोग नही जाने देंगे आशीष उठा और बोला कि हम कुछ दिनों के लिए खंडवा के जंगलों में जा रहे है जहां आसा अहीर का किला है पिछले कुछ वर्षों से वहाँ डरावना भयाक्रांत दहशत खौफ का वातावरण बन गया है किले से भयंकर आवाजों का आना एव सीढ़ियों पर रक्त प्रवाह कंकाल आदि आस पास के गांवों कस्बो से लोंगो का लापता होना अजीबो गरीब स्थिति है आसा अहीर का किला महाकाल एव ओंकारेश्वर ज्योतिलिंगों के ठीक बीच खंडवा के जंगलों में है लोगो के मन मे भगवान शिव शंकर के प्रति अपार श्रृद्धा आस्था है वह भी डगमगाने लगी हैं ।


अतः मैं खंडवा के जंगल आसा अहीर के किले के आस पास ही जा रहा हूँ मैट्रिक मैंने पास कर लिया है यदि इस पुनीत उद्देश्य में अधिक समय लगा तो मैं लौट कर इंटरमीडिएट एव आगे की शिक्षा महाकाल के ही सानिध्य में पूर्ण करूँगा ।


अभी मेरे जाने का आदेश महाकाल का है जिसे मानना मेरी जिम्म्मेदारी है महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह निःशब्द हो गया देव जोशी जी त्रिलोचन महाराज एव सतानंद महाराज ने बाल गोपाल से कहा यदि तुम्हारे साथ कोई भी जाना चाहे स्वेच्छा से तो वह अपने संरक्षक की अनुमति से जा सकता है और बाल गोपाल से मुखातिब होकर बोले बालगोपाल आप कब जाना चाहेंगे आशीष बोला महाराज कल प्रातः भस्म आरती एव महाकाल के गर्भ गृह के सफाई करने के तत्काल बाद।


ब्रह्म मुहूर्त की बेला में आशीष उठा और नित्य कर्म से निबृत्त होकर त्रिलोचन महाराज के साथ भस्म आरती हेतु निकल पड़ा भस्म आरती के बाद उसने देव जोशी जी के पैर छुए और त्रिलोचन महाराज का आशीर्वाद के साथ निवेदन किया कि उसके जाने की बात किसी को पता न चले उंसे विश्वासः था कि देव जोशी जी के सरंक्षण में महादेव परिवार एवं सतानंद जी के संरक्षण में महाकाल युवा समूह दिन दूना रात चौगुना अपने निर्धारित उद्देश्यों को आगे बढ़ता जाएगा ।


आशीष निकला और सीधे खंडवा की बस बैठ गया खंडवा पहुँचने में उंसे दिन के चार बजे गए वह सीधे जिलाधिकारी खंडवा के कार्यालय गया जिलाधिकारी महोदय शासकीय मीटिंग में थे आशीष इंतजार करने लगा मीटिंग समाप्त होने में रात्रि के आठ बजे चुके थे जिलाधिकारी के पी ए ने बताया कि एक नौजवान चार बजे से इंतज़ार कर रहा है जिलाधिकारी दीपक मित्रा ने कहा की विकर्ण जी हम बहुत थक चुके है कल उंसे बुलाइये बात करेंगे विकर्ण ने निवेदन के लहजे में कहा साहब वह कोई लोकल आदमी नही लगता है हो सकता हो कोई बहुत विशेष बात हो आप सिर्फ एक बार बुला कर मिल लीजिये पी ए विकर्ण के अनुरोध को जिलाधिकारी दीपक मित्रा अस्वीकार नही कर सके आख़िर विभाग में सबसे भरोसे के व्यक्ति दीपक मित्रा के लिए विकर्ण ही थे।


 उन्होंने विकर्ण ने तुरंत कहा महोदय आप अंदर आये बड़ी मुश्किल से साहब ने समय दिया है जल्दी से अपनी समस्या कहियेगा साहब बहुत थक गए है सुबह से बहुत कार्य का दबाव था मैंने बहुत निवेदन करके कुछ समय मांगा है आशीष ने विकर्ण का आभार व्यक्त किया और जिलाधिकारी कक्ष में प्रवेश कर गए जिलाधिकारी से अनुमति लेकर उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गए जिलाधिकारी दीपक मित्रा जी ने पूछा क्या समस्या है? 


आपकी क्या मदद मैं कर सकता हूँ ?आशीष ने कहा साहब हमारी कोई समस्या नही है मैं तो आपकी समस्या के समाधान के लिए उपस्थित हुआ हूँ दीपक मित्रा ने कहा अच्छा मजाक कर लेते है आप ,नौजवान है और समझदार भी लेकिन पागल नही फिर ऐसी बाते क्यो कर रहे है? मेरी समझ मे नही आ रहा है यहां तो सभी अपनी परेशानी समस्याओं का रोना लेकर आते है आप कौन सी परेशानी है? जिससे मेरा संबंध है? और आप दूर करने मेरे हमदर्द बनकर आये है ?आशीष बोला साहब यदि आप मेरी बातों से आहत हुये हो तो क्षमा चाहता हूँ आप मेरी बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार अवश्य कीजियेगा जिलाधिकारी दीपक मित्रा ने कहा जल्दी बोलिये आशीष ने कहा महाराज मैं खंडवा के जंगलों में आसा अहीर के किले के भयानक भयाक्रांत करने वाली समस्या के लिए आया हूँ जिससे पूरा खंडवा त्रस्त है यदि समस्या सुलझ गयी तो आपके यश में बृद्धि होगी और आप जनप्रिय प्रशासकों में शुमार होंगे आय दिन आप पर भी दबाव होगा कि आसा अहीर के किले के भयानक भयंकर डर खौफ को जनता के मन से समाप्त किया जाय।


जिलाधिकारी दीपक मित्रा ने चश्मा उठाकर ऊपर से नीचे तक आशीष को ध्यान से देखा और बोले बरफुदर अर्ध सैनिक बल पुलिस एव राज्य सरकार के ऑपरेशन अंत से कुछ नही हो सका तो तुम क्या कर सकते हो? आशीष ने कहा सिर्फ एक बार आप विश्वासः करके देखिये मुझे आपकी अनुमति चाहिए क्योंकि आपके क्षेत्र की बात है सहयोग आपके विवेक समझ पर निर्भर करता है कि आप दे या ना दे ?यह मेरा व्यक्तिगत मिशन है ऑपरेशन महाकाल दीपक मित्रा को यह तो समझ मे आ ही गया था कि यह कोई साधारण युवा नही है पागल हैं नही उन्होंने पी ए विकर्ण से कहा कि आज रात को आशीष को सरकारी अतिथि गृह में ठहरने की व्यवस्था करा दे आशीष बोला महाराज मैं इतना योग्य नही हूँ ना तो मैं राजकीय शासकीय अधिकारी हूँ ना ही आई ए एस या मंत्री हूँ कि राजकीय अतिथि गृह में रुंकु आपके विशेष ध्यान के लिए आभार मैं यही पीपल के पेड़ के नीचे सो जांऊँगा आप सिर्फ सुबह मुझे जनपद के कप्तान साहब से अपनी उपस्थिति में मुलाकात करा दे एव जितने भी अभियान पुलिस या अर्ध सैनिक बलो द्वारा चलाये गए है आसा अहीर के भय से जन मानस को मुक्त कराने के लिए उनकी शुरुआत एवं असफलता के कारणों के विषय मे जानकारी हासिल करना है।


जिलाधिकारी दीपक मित्रा को समझ मे आ चुका था कि आशीष पागल है नही तो फिर जान बूझ कर क्यो मौत के मुंह मे स्वंय को झोंकने जा रहा है? खैर उन्होंने आशीष से कहा कल मिलते है रात जब जिलाधिकारी अपने घर पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी को आशीष के विषय मे बताया पत्नी दिशा ने कहा महाकाल का भक्त है निश्चित जो भी कर रहे होंगे अच्छा एव सुखद भविष्य के लिए कर रहे होंगे आप निश्चिन्त रहिये आप जो भी सम्भव सहयोग कर सकते हो अवश्य करने की कोशिश करिएगा ।


सुबह हुई दीपक मित्रा कार्यालय पहुंचते ही पी ए विकर्ण को आदेशित किया आज के पूर्व निर्धारित सभी कार्यक्रमो को निरस्त कर दिया जाय एवं पुलिस सुपरिंटेंडेंट को फोन लगाई मैं बात करना चाहता हूँ फोन की घँटी बजी फोन स्वय माधव राव होलकर ने उठाया औचारिक अभिवादन के बाद जिलाधिकारी दीपक मित्रा ने पुलिस कप्तान माधव होलकर से अनुरोध किया कि खंडवा के जंगलों एव आसा अहीर किले से सम्बंधित सारे ऑपरेशन्स एव रिपोर्टो एव विशेषज्ञों की ऑपरेशन असफल होने के पीछे के विचार तथ्य सभी उपलब्ध सच्चाई के साथ आये माधव होलकर ने सारी फाइलों को एकत्र करने एव सरसरी अध्ययन करने का लंच तक का समय मांगा तब तक दीपक मित्रा ने आशीष को बुलाकर बाते करने लगे ।


बातों ही बातों में लंच का समय कब समाप्त हो गया पता नही चल सका और पुलिस कप्तान माधव होलकर आ गए अपने दल बल के साथ असा अहीर किले और खंडवा में व्याप्त खौफ दहसत एव कहर के विरुद्ध चलाए गए सभी अभियानों की फाईल लेकर एवं आशीष के साथ बैठे माधव होलकर ने आशीष को देखा और देखते ही पहचान गए और आशीष भी क्योकि जब त्रिलोचन महाराज जी के पर शिप्रा नदी में स्नान करते समय जान लेवा हमला हुआ था तब वह उज्जैन में ही नियुक्त थे माधव होलकर जी से दीपक मित्रा जिलाधिकारी खंडवा ने पूछा कप्तान साहब इस नौजवान आशीष से आप खासे प्रभावित दिखते है क्या बात है? क्या खास बात इनमें आपको दिखती है माधव होलकर ने बताया कि मित्रा साहब मैं तो इस नौजवान को बाल गोपाल के नाम से जनता हूँ ये महाकाल के बातावरण में क्रांतिकारी परिवर्तन के मूल सूत्रधार है इनके ही प्रायास से महाकाल की गरिमा गौरव दिन रात बढ़ती ही जा रही है इनके अथक प्रयास से महाकाल के पावन परिसर से द्वेष घृणा विद्वेष का वातावरण समाप्त हुआ और सन्मति समन्वय एव नैह स्नेह के महाकाल का महादेव परिवार आज महाकाल की मर्यदा का सूरज है तो महाकाल युवा समूह महाकाल के आस पास के नगरीय एव ग्रामीण अंचलों में सकारात्मक समाज के निर्माण में महती भूमिका का निर्वहन कर रहा है नशा उन्मूलन दहेज उन्मूलन आदि प्रभवी कार्यक्रमों से युवाओं में नए उत्साह विश्वास का सांचार हुआ है।


निश्चित तौर पर बाल गोपाल जो कह रहे हैं उस पर भरोसा किया जा सकता है और आगे बढ़ा जा सकता है बाल गोपाल को माधव होलकर ने खंडवा के जंगलों के आतंक आसा अहीर किले के खौफ पर चलाये गए सभी अभियानों की ब्लूप्रिंट हानि लाभ एव असफलाओ पर खुफिया रिपोर्ट साझा किया आशीष बोला मुझे जिलाधिकारी एव पुलिस कप्तान महोदय से सिर्फ एक ही निवेदन करना है इस पूरे मिशन को आप दोनों के अलावा कोई नही जानेगा मैं कल अपने मिशन पर निकल जांऊँगा माधव होलकर एव दीपक मित्रा ने खुफिया विभागों को बिना आशीष की जानकारी के सूचनाओं को प्रेषित किया जिससे कि किसी गम्भीर स्थिति में बाल गोपाल को सुरक्षित बचाया जा सके आशीष निकला और पैदल ही चल पड़ा भूख लगती तो वह भिक्षा मांगकर पेट भरता कोई कुछ बोलता तो वह ऐसे व्यवहार करता जैसे उंसे कुछ समझ ही नही आ रहा है एक सप्ताह की इधर उधर यात्रा भ्रमण के बाद खंडवा के जंगलों का रस्ता मिला किसी से वह कुछ पूछ नही सकता था क्योंकि उसकी योजना में शामिल नही था दो दिन पैदल चलते चलते वह खंडवा के जंगलों में पहुंच गया उसके सामने समस्या यह थी कि वह क्या खायेगा पियेगा ?क्योकि जंगल निर्जन बिरान थे और जंगली जानवरों के भयंकर आबजे आती आशीष भयंकर जंगलों के बीच पहुंच गया रात बहुत हो चुकी थी वह वही सो गया रात में जंगली जीवो की आवाजों को छोड़ कर कुछ भी अजीब नही था सुबह

ब्रह्म मुहूर्त की बेला में कुछ अपराधी किस्म के लोग उधर से गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि एक कोई इंसान है पास गए और जगाया आशीष कुछ भी पूझने पर कुछ भी नही बोलता उसने नया प्रयोग किया जंगल मे पहुँचने के बाद हर सवाल के जबाब में सिर्फ यही बोलता सालिगराम जाने उंसे उन शातिर अपराधियों ने सर से पांव तक बांध दिया और जानवरों की तरह साथ लेकर चल दिये कुंछ ही देर में आशीष को लेकर आसा अहीर के किले पहुंच गए और आशीष को एक किनारे कोने में बैठा दिया और बाकी सब अपने मुखिया के आने का इंतज़ार करने लगे ।


सुबह सूर्योदय के साथ उन अपराधियों का सरगना आया जिसकी उम्र पचास पचपन वर्ष की थी और देखने मे साक्षात दैत्य लगता था आशीष को स्प्ष्ट हो गया कि किले में आतंक के पीछे आपराधिक षड्यंत्र भय के वातावरण का निर्माण करके किया जा रहा है ना कि कोई भूत प्रेत आदि जैसी बात है वहा का वातावरण इतना भयानक था कि साधारण व्यक्ति को मारने की कोई आवश्यकता ही नही थी वह वहां के भयानक बातावरण को देखकर ही मर जाता ।


दैत्याकार सरगना बोला कि आज माँ को किसकी बलि दी जाएगी उसके साथियों ने किनारे पड़े आशीष की तरफ इशारा कर दिया सरगना बोला नही आज नही कल इसकी बलि दी जाएगी आज जाओ और तहखाने से किसी को उठा लाओ आदेश सुनते ही उसके आदमी किले के तहखाने गए और एक आदमी को उठा लाये जो जानवरों की तरह बाधा हुआ था सरगना ने पहले तो तेज धारदार हथियार से उसके शरीर मे जाने कितने छेद कर डाले फिर सर धड़ से अलग कर दिया रक्त की धार किले की सीढ़ियों से नीचे बह निकली आशीष किनारे बंधा हृदयविदारक दृश्य देखकर सर से पांव तक कांप उठा दिन में तहखानों में रखे गए बंदी मानवो को कुछ रोटी के टुकड़े डाल दिये गए और पीने के लिए ऊपर पानी गिराया जाता जितना भी गले तक पहुंच पाता उससे सिर्फ जीवन तब तक बचा रहता जब तक शैतान की मर्जी होती।


शाम हुई चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा उन अपराधियों ने विचित्र आवाजे निकालनी शुरू की जो थोड़ी थोड़ी देर के अन्तराल में निकलते रहते कुल मिलाकर डेढ़ सौ लोंगो का समूह था जिनमे से दस बारह किले के चारो तरफ रात भर भयानक आवाजे निकलते जो जंगल के बिराने में गूंजती रहती कुछ लोग सरगना के साथ रहते और सौ लोग प्रति रात्रि आस पास जाकर लूट पाट करते यदि कोई विरोध करते मिल जाता उंसे उठा लाते ।


शाम को नित्य की भांति ज़िसे दिन में सूर्योदय के साथ मारा था उसके मुर्दा शरीर को उल्टा लटका दिया और नीचे से पेड़ के पत्तो को रख कर आग लगा दिया शव ऐसे जलने लगा जैसे कोई प्रकाश स्तब्ध सभी ने शराब पिया खाने में जंगल मे मारे गए जानवरो के भुने मांस एव रोटी सरगना बीच बीच मे जलते शव से गिरते टुकड़ो को उठाता और बड़े चाव से खाता और कहता भगवान वान कुछ भी नही जो ताकतवर वही भगवान रात बीती और पुनः भोर हुई रात को गए लुटेरे लौट आये थे अब सरगना के आने का इंतज़ार कर रहे थे आशीष को पता था सरगना आएगा लूट का हिसाब लेने के बाद आज उसी की हत्या करेगा शाम को जलाएगा और बची हड्डियो को हड्डी के पहाड़ में फेंक देगा लेकिन उसे विश्वास था कि कुछ चमत्कार होगा।


सरगना आया लूट के माल को देखा फिर किनारे बंधे आशीष को जानवरों की तरह घसीटते हुए अपने पास बुलवाया ज्यो ही आशीष को घसीटा जाने लगा आशीष बोला सालिग राम जाने सालिग राम जाने सरगना को लगा यह आदमी उसके अतीत से वाकिब है उसने कहा तुम सलिक से कभी मीले हो ?कौन है सालिग? आशीष ने कहा कि सालिग मेरे सामने जल्लाद राक्षसों कि शक्ल में तुम ही हो वास्तविकता यह थी कि आशीष ने अंधेरे मे तीर चलाया था और सही निशाने पर लग गया

आशीष बोला कि तुमने चतुरान मास्टर के लड़के सानिध्य का अपहरण धामपुर रेलवे स्टेशन से किया था और उससे भीख मंगवाया और जब मैहर माता के दरबार मे सानिध्य को धर्मदास की सहायत से घर मिल गया तो तुम वहां से भाग खड़े हुए अब दुर्दांत से दिखने वाले आदमी को लगा कि यह आदमी उसके अतीत के विषय मे बहुत कुछ जानता है।


एका एक उसके हथियार से वह हथियार गिर गया जिससे वह नित्य प्रति एक व्यक्ति की बलि देता और वह कांपने लगा उसकी आंखें अंगार उगल रही थी सरगना सालिग राम ने अपने आदमियो को आदेश दिया कि तहखाने से दूसरे व्यक्ति को लाया जाय इसकी बलि नही होगी फौरन दूसरे व्यक्ति को हाजिर किया गया और सालिग राम ने एक ही वार में सर धड़ से अलग कर दिया जिसके कारण खून के छींटे आशीष के शरीर पर पड़े लगभग वह खून से नहा गया लेकिन ना तो वह डरा ना ही कोई प्रतिरोध किया सालिग राम ने दिनभर आशीष से तरह तरह की बाते करता रहा आशीष को विश्वासः नही हो रहा था कि सालिगराम पर उसे लगता पता नही कब उसके मन का शैतान जाग जाए और वह बलि के नाम पर जघन्य हत्या कर दे फिर भी भय को आशीष चेहरे पर व्यक्त नही होने देता दिन में सालिग राम के आदमी किले के दूसरे हिस्सो में उठाई गई औरतों लड़कियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते जब थक जाते तब उन्हें किले से नीचे फेंक देते जिससे उनकी मौत हो जाती औरतों लड़कियों की बलि नही होती सिर्फ उनके साथ जानवरों जैसे आचरण के साथ बलात्कार होता और उन्हें नीचे फेंक दिया जाता आशीष को लगा कि रामायण में कुंभकर्ण ,महाभारत में कीचक एव बहुत से दुर्दान्त दानवों के वर्णन है जो आशीष को प्रत्यक्ष दिखने वाले दानवता से बहुत कम थे आशीष बार बार अपराधीक मानसिकता पर आपराधिक भांवो के अंतर्मन को टटोलने की कोशिश करता मगर उसका सारा प्रयास पत्थर पर सर पीटने जैसा ही था।


धीरे धीरे आशीष उत्तम कायस्त कुल की वंश बेल एव धार्मिक आचरण संस्कृति सांस्कार दानवता की तरह ही प्रतीत होने लगे थे एक वर्ष बीत गए कुछ भरोसा सालिग राम आशीष पर करने लगा था आशीष से सालिगराम कभी कभार अपने अतीत की बातों को बताता लेकिन उसकी दरिंदगी और आतंक में कोई कमी नही थी खंडवा प्रशासन ने उस रास्ते को ही बंद करवा दिया था जो खंडवा के जंगलों से होता हुआ आसा अहीर के किले तक जाता

सरगना सालिग राम ने आशीष को बताया कि कोई इंसान जान बुझ कर इंसान से हैवान नही बनता इसके पीछे कुछ ना कुछ कारण होते है मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है मेरे दो बेटे एव एक बेटी थी मेरे पास परिवार के भरण पोषण का एक ही रास्ता था गांव के जमींदार की चाकरी करु एवं उसके पांव की जूती बन कर रहूं यह भी मंजूर था मुझे जीवन से कोई शिकायत नही थी एक दिन तमंग सिंह ने मेरी बेटी को देख लिया और उसने एक बाप से ही बेटी को भूखे भेड़िया के पास नोचने के लिए भेजने को कहा और धमकी दी कि यदि उसने ऐसा नही किया तो वह उसे अपनी चाकरी से बाहर कर देगा मैने यह भी मंजूर कर लिया और तमंग कि चाकरी छोड़ दिया मैं मजदूरी दूसरे गांवो में करता और परिवार का पेट पलता एका एक एक दिन कुछ बदमासो द्वारा मेरे दोनों बेटों एवं पत्नी को उठा लिया गया और संदेश भेजवाया गया कि वह अपनी लड़की मैना को लेकर आ जाये उसके पास कोई रास्ता नही था वह अपनी बेटी मैना को लेकर गया वहां तमंग पहले से मौजूद था मुझे देखते ही बोला ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया और झट उसने मेरे ही सामने मेरी फूल जैसी नाजुक बेटी को रौंद डाला और मेरी पत्नी पुत्रो को छोड़ने के बजाय अपने आदमियों से बोला देख लो भाई अगर आपके किसी मतलब के हो तो इन्हें अपने पास रखो वरना मार डालो मैंने तुरंत एक झटके से मतंग की तलवार झपट लिया सर उसके धड़ से अलग कर दिया और उसके आदमियो की बलि देने के बाद अपने दोनों बेटों बेटी को मार दिया अब मेरे लिए कोई रास्ता बचा नही।


मैं भली भाँति जानता हूँ कि भारतीय समाज मे साधु संत पर कोई शक नही करता मैं भी साधु बन गया और बच्चों का अपहरण करके भीख मगवता जीवन धंधा मजे से चल रहा था कि सानिध्य को बरामदगी मेरे लिए इस धंधे के रास्ते बंद कर दिए मैं और मेरे साथी मैहर से भागते भागते यहां पहुंचे और कायम किया खौफ दहसत का साम्राज्य सरकार ने सारे प्रायास कर लिए किंतु पास तक फटक नही पाई ।


तुम्हारे आने के बाद तुम्हारे द्वारा मेरी पिछली जिंदगी के विषय मे बताये जाने के बाद मेरे स्वंय में पता नही क्यो क्ररता की भाव कुछ मद्धिम पड़ गए है वरना मेरे साथी मुझसे बात करना तो बहुत बड़ी बात है मेरे सामने आने की हिम्मत नही जुटा पाते आशीष बोला सालिकराम कि मर्जी

आशीष को आये डेढ़ वर्ष हो चुके थे लेकिन इस दौरान ना तो उसने कोई संपर्क महाकाल देव जोशी सतानंद या त्रिलोचन महाराज से किया ना ही खंडवा के जिलाधिकारी दीपक मित्रा से या माधव होल्कर से खंडवा की खुफिया एजेंसिय सिर्फ यही रिपोर्ट दे पा रही थी कि आशीष जीवित है कहते है ना कि ईश्वर नाम की शक्ति है जो अन्याय के अति पर अपना न्याय करता है और रास्ता बताता जाता है सलिक के साथ भी ऐसा ही ईश्वरीय न्याय का काल चक्र घूम रहा था ।


एका एक दिन सलिक राम के शातिर अपराधी जंगल के दूसरे रास्ते गए जिधर से वाहनों की आवाजाही थी मध्य प्रदेश परिवहन की एक बस को रोका लूट पात किया सभी को मौत के घाट उतारा सिर्फ एक बूढ़ी औरत एवं उसके साथ बेहद खूबसूरत षोडशी को बंधक बना कर लाये उस बाला के साथ पहले बलात्कार करने के लिये आपस मे लड़ते भिड़ते आये अंत मे फैसला हुआ कि इस बाला पहले किसके पास रहेगी इसका निर्णय सरगना करेंगे ज्यो ही बुढ़िया को लेकर वहां पहुंचे बुढ़िया ने तुरंत भरोसे को पहचान लिया और बोली भरोसे तू तो सुना मरी विला गया रहा तू तो जमराज का बाप बना बैठा है ई तुम्हरे आदमी जमराज के सिपाही बसा में रास्ते भर तोरी ख़ौफ़ दहसत की बाते सुनती आ रही रहे कि मुये तुम्हरे हराम के ढक्कन आदमियो ने बस घेर कर लूट पाट मचाया और सबहि का काट डारेन हम त ई बुजरी की ख़बसूरती से बच गयी जो तुम्हरी रिश्ते में नतिनी लगती है।


तुम्हरे चचरे भाई लगनु की बेटी प्यारि जेखा तू हर राखी पर आशीर्वाद लेत देत अघायत नही रहे जोकि बिटिया हैं तुम्हरे आदमी ऐसे ले आई रहे जइसे वह लड़की ना होइके कोनो आम इमली हैवे जेखा घरे पहुंचते या त काटी के खाई जईहे या त चटनी बनाए चाट जईहे अब फैसला कर भरोसे फिर तू चसलिस बारिश पीछे चली गईल यहाँ मतंग नही बा इंहा तोहार खून हम और ई परुलवा है अब हाकिम तू ही और फैसला तोहार ई तोहार दैत्य जैसे साथी परुलवा के हमे जबरन लाई के ऑइल बा तब तक सलिक का साथी गुर्राते हुये अंदाज़ में बोला सरगना आज इस लड़की पर हमारा हक है ।


सरगना सालिग बोला नही महंगू इस लड़की को कोई आदमी हाथ नही लगावेगा महंगू बोला सरगना क्यो आज तक तो यहां इस तरह की बात नही होती थी हम लोग शेर चीते की तरह आने वाली हर लड़की की बोटी एवं हड्डी जबा जाते मतलब खत्म होने पर हजारों फुट खाई में फेंक देते और गिद्ध सियार आदि नोच नोच कर खाते सरगना आज तक कभी आपने ना तो इस प्रकार की कोई बात किया ना ही आपके मन मे किसी के लिए के कभी कोई भाव देखा आपही कहते है कि अपराध की दुनिया का कोई धर्म ईमान नही होता सिर्फ होता तो स्वार्थ और सुरक्षा की पूर्ति।


इस छोकरियां में कौन सी खास बात है जामे सरगना दैत्य राक्षस शैतान का पुजारी इंसानियत पर इनायत वर्षाई रहा है ई बुढ़िया कौन है सरगना का ई तोहार बचपन की प्रेमिका है जो उपराय गयी आज सरगना को पहली बार अपने ही आदमी लज्जित कर रहे थे जो बगावत का संकेत दे रहे थे सरगना ने ज्यो ही अपनी तलवार फेंक कर महंगू को मारना चाहा महंगू ने बुढ़िया का गला काट दिया बोला आज ई बुढ़िया के उजाले में रात भोज होई ।


सरगना सालिग राम अपनी भौजाई को तड़फ कर मरते देख बर्दाश नही कर पाया और बहुत तेजी से उठा और महंगू का सर धड़ से अलग करते हुये पारुल जो उसकी रिश्ते में पौत्री लगती थी को अलग किया इस दृश्य को देखकर सरगना के आदमी दो गुटों में बंट गए एक गुट सरगना को सही ठहरा रहा था तो दूसरा महंगू को ।


आशीष इन दृश्यों को देखकर सर से पांव तक कांप उठा उंसे पिछले दो वर्षों से प्रति दिन नृसंसता क्रुरत को देखते देखते भी क्रूरता नृसंसता के परिवेश की आदत नही थी सरगना से बोला सरगना आज तुम्हारी दैत्य सेना के कुछ लोग तुम्हारे विरुद्ध खड़े है कल पूरी सेना खड़ी होगी और तुम्हारा अंत भी ठीक वैसा ही होगा जैसा प्रति दिन तुम करते आ रहे हो पारुल ने कहा सरगना बाबा ये सज्जन सही कह रहे है अतः तुम्हारे पास सिवा इसके की तुम अपने साथियों द्वारा दिये जाने वाले घृणित मौत का इंतजार करो तुम्हे महात्मा

वाल्मीकि ,अंगुलिमाल के विषय मे विचार करना चाहिए ।


सरगना ने आशीष से कहा यदि संम्भवः हो तो अवश्य जब तक सरगना के साथी कुछ सोचते तब तक पारुल को आशीष ने भाग जाने को कहा और सरगना से अपने दैत्य सेना को पारुल का पीछा ना करने एव उंसे ना मारने को मना किया बगावत आम हो गयी लेकिंन शेर तो शेर ही होता है बूढ़ा होने पर भी सरगना तो मात्र चौवन पचपन वर्ष का ही था उसने बगावत कर रहे सभी साथियों को बेरहमी से मार दिया इधर पारुल आशीष के निर्देशानुसार जिलाधिकारी कार्याल पहुंची जिलाधिकारी दीपक मित्र की जगह बाबू राव आ चूके थे लेकिन पी ए विकर्ण ही था पारुल ने विकर्ण को एक कोने में ले जाकर सच्चाई बताई विकर्ण ने जिलाधिकारी बाबू राव को बाबू राव ने पुलिस कप्तान गार्गी माहेश्वरी को तत्काल बुलवाया और ओंकारेश्वर के लिये तिथि निर्धारित की गई नौ दिसम्बर की गई नौ दिसंबर को जिलाधिकारी बाबू राव एव कप्तान गार्गी माहेश्वरी एव दीपक मित्रा जो अन्यत्र पदस्थापित थे एव माधव होल्कर भी अन्यत्र पोस्टेड थे को भी बुलाया गया ओंकारेश्वर पर एकत्र हुए पूरी योजना को बहुत गुप्त रखा गया था किसी को प्रसाशनिक अमले की ओंकारेश्वर सक्रियता का मतलब समझ नही आ रहा था इधर बड़े गोपनीय तरीके से आशीष सालिग राम के बचे हुए पचास साठ साथियों को जनता की निगाहों से बचते बचाते ओंकारेश्वर पहुंचा क्योकि भय था कि जनता को यदि खबर लग गई तो बगावत हो जाएगा और मार मार के जनता ही अपना हिसाब बराबर कर देगी आशीष गार्गी महेश्वरी बाबू राव एव दीपक मित्रा माधव होल्कर एव सनातन दीक्षित मुख्य पुजारी ओंकारेश्वर के समक्ष सालिगराम एवं साथियों के साथ आत्म समर्पण करवा दिया माधव होल्कर दीपक मित्रा की तरफ मुखतिब होकर बोले देखा मित्रा जी बाल गोपाल को महाकाल की महिमा से ओत प्रोत ओंकारेश्वर में आत्म चेतना की जागृति का ओंकार बन गया खंडवा के जंगलों एव आसा किले का जीर्णोद्धार कर पुनः जनता के लिये खोल दिया गया डरावना वातावरण खौफ दहशत समाप्त हुआ पारुल ने सलिक के पैर छूते हुए कहा आज हमे अभिमान है कि मेरा बाबा मुझे मिल गया वायुमंडल हर हर महादेव के जयघोष से गूंज उठा। 



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