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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Abstract Classics

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Abstract Classics

सत्य आदि अनंत समाज मे परिवर्तन

सत्य आदि अनंत समाज मे परिवर्तन

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प्रत्येक नौजवान कि इच्छा होती है कि उसकी जीवन संगिनी दुनियां कि सबसे खूबसूरत गुणवान और धनवान हो लेकिन यह तो प्रत्येक नौजवान कि इच्छा होती है प्रारबद्ध नहीं क्योंकि अपने अपने कर्म ही प्रारबद्ध का निर्धारण करते है और तमाम शोध प्रयोग के उपरांत कम से कम भारत मे जिस भी लड़की से विवाह हो जाता प्रत्येक नौजवान को अपने अंतिम सांस तक निर्वहन करना पड़ता था! बिसवीं सदी के अंतिम वर्षो तक कम से कम भरतीय समाज कि वैवाहिक परम्परा एवं सामाजिक सरचना इसी प्रकार कि थी वर्ष 1970 -75 के मध्य तो स्थिति यह थी कि माता पिता द्वारा जो भी अंतिम रूप से निर्णय लेकर अपने पुत्र के विवाह हेतु निर्धारण कर दिया जाता था पुत्र द्वारा अंतकरण से स्वीकार कर लिआ जाता था पुत्र द्वारा अपनी होने वाली जीवन संगिनी के विषय मे कोई जानकारी प्राप्त करने या जानने कि बात तो दूर विवाह से पूर्व अपनी जीवन संगिनी कि छाया भी नहीं देख सकते थे विवाह के बाद जो भी मिलती माँ बाप के निर्णय के अनुसार उसके साथ बिना कुछ सोचे प्रतिरोध के निर्वहन करते जिसके कारण भारतीय समाज एक आदर्श संसाकारिक समाज के रूप मे सम्पूर्ण विश्व मे स्थापित था और परिवार न्यायालय नाम कि कानूनी प्रक्रिया कि आवश्यकता नहीं पड़ती!

बिसवीं सदी के अंत से भारत मे सयुंक्त परिवारों कि मान्य स्थापित परम्परा के समापब कि बुनियाद थी जो धीरे धीरे एकल एवं शुक्ष्म परिवारों मे परिवर्तित होती गई जिसका कारण जो भी हो लोंगो एवं विद्वानों का मानना है कि भारतीय समाज मे शिक्षा का बढ़ना विकास कि गति के साथ साथ भरतीय सामाजिक परम्परा के विखंडन एवं नई परम्पराओ कि स्थापना का कारण बना जिसके परिणाम स्वरूप सयुंक्त परिवारों का विखंडन एवं एकल शुक्ष्म परिवारों कि परम्परा का प्रचलन शुरू हुआ जैसे सयुंक्त परिवार परम्परा मे परिवार कि मान्यताओं एवं मुखिया को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था जिसके कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं इच्छा का महत्व न होकर सामूहिक सामाजिक पारिवारिक परम्परा का महत्व था जिसके करण परिवार के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा लिए गए निर्णय को स्वीकार्य सिरोधर्य करना ही धर्म मर्यादा थी जिसे भारतीय समाज ने रामराज्य तबकी सामाजिक परवरिक परम्परा के अनुरूप आत्म साथ कर रखा था जिसके कारण पारिवारिक न्यायालयो कि परिवार समाज से अलग आवश्यकता ही नहीं थी!

सयुंक्त परिवारों के विखंडन एवं शुक्ष्म एवं एकल परिवार इकाईओ के जन्म के साथ व्यक्तिगत सोच समझ पसंद ना पसंद ने भरतीय समाज के नए स्वरूप को निर्धारित करना शुरू कर दिया जिसके कारण सामाजिक परम्परा प्रक्रियाए परिवर्तित होने लगी जिसका सबसे गहरा प्रभाव पारिवारिक सम्बन्धो पर पड़ा जिसे आप उच्च विकसित शिक्षित समाज कि प्रगति कह सकते है जिसकी मान्यताओं ने व्यक्तिगत पसंद ना पसंद को महत्वपूर्ण हो गई माँ बाप एवं परिवार के वरिष्ठ सदस्यों का प्रभाव समाप्त होकर औपचारिक रह गया और विवाह आदि मे व्यक्तिगत आकांक्षाऑ ने महत्वपूर्ण भूमिका होने लगी और विवाह का निर्णय माँ बाप परिवार की सहमति के स्थान पर होने वाले वर वधू लेने लगे परिणाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता कहें या उन्मुक्त परिवेश या सामूहिक निर्णयों का दौर समाप्त होने लगा व्यक्तिगत चयन पसंद ना पसंद  ने  उच्छीनंखलता ने परिषकृत रूप मे भारतीय समाजिक ताने वाने को खंडित करना सुरु कर दिया जिसमे कुछ अच्छाई थी तो खामिया अधिक जिसका खामियाजा समाज को ही भोगने की नई प्रक्रिया परम्परा के अंतर्गत पारिवारिक न्यायालयो की आवश्यकता बड़ी कारण भावनाओं की पसंद ना पसंद की उम्र अधिक नहीं होती और सयुंक्त परिवारों के विखंडन के बाद जिम्मेदारी भी एकल की ही हो गई जिसके कारण माँ बाप पारिवारिक वरिष्ठ की भूमिकाए सामाजिक परम्परा एवं प्रक्रिया के शुरू से ही समाप्त हो गई और सम्बन्ध बंनने और विगड़ने की होड़ मे पारिवारिक न्यायालयो की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई भारतीय सामाजिक व्यवस्था मे पुरातन सामाजिक व्यवस्था परम्परा के समापन के साथ दहेज जैसी दानवीय परंपरा पर नई व्यवस्थाओ के स्थापित होने से हुआ और सैवेधानिक रूप से भी भारतीय समाज मे बहुत पहले शुरू प्रक्रिया को आत्म साथ किया जैसे बाल विवाह का अंत, सती प्रथा का अंत, आदि भारतीय सनातन समाज सत्य आदि एवं अनंत इसीलिए है क्योंकि समय के अनुसार सामाजिक एवं धार्मिक मूल्यों मे परिवर्तन को आत्म साथ करता है जिसके लिए सनातन समाज दृष्टि दृष्टिकोण दिशा बदलने के साथ साथ नई तार्किक वैज्ञानिक अवधारणाओ को भी आत्म साथ करता है इसका ज्वलंत उदाहरण है लिविंग रिलेशन शिप जिसके लिए न्यायमूर्ति एस पी एस बालासुब्रयम ने भारतीय सामाजिक व्यवस्थाओ से जाती पांति भेद भाव वर्ण व्यवस्था के समापन एवं आर्थिक स्वतंत्रता के दहेज उन्मूलन को ध्यान मे रखते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया था जिसके पीछे भरतीय समाज को सम्पन्न, शक्तिशाली, आत्मसमानी, एवं दृढ़ बनाने की मंशा स्पष्ट थी लेकिन भरतीय युवाओ ने जस्टिस  बाला सुब्रमण्यम के ऐतिहासिक सामाजिक सुधारात्मक निर्णय को  भोग सुविधा एवं विवशता के समझौते का मध्यम बना लिया जिसके परिणाम स्वरुप लिविंग रिलेशनशिप का व्यवसायिकरण हो गया और आपराधिक प्रवृत्तियों ने अपराध को जन्म देना शुरू किया परिणाम स्वरूप लिविंग रिलेशन शिप मे व्यपाक हिंसा ने जन्म लेंकर इसके पवित्र उद्देश्यों को ध्वस्त कर दिया है!!


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!


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