Gita Parihar

Abstract

2.3  

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चांद और चौथी मंजिल

चांद और चौथी मंजिल

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आज नन्हा रवि जब स्कूल से आया तो रोजाना की तरह स्कूल की, दोस्तों की बातें न करके चुपचाप कपड़े बदल कर ,हाथ मुंह धो कर दादी के पास आ बैठा।

दादी देखते ही बोली,' क्या हुआ,बेटा मुंह क्यों सूखा है ? जाओ, पहले खाना खाओ ।' 

रवि ने कहा, 'दादी, आज स्कूल में, सूरत में हुए हादसे के विषय में प्रिंसिपल सर ने बताया, कि कैसे 22 बच्चे और एक उनके कोच  की एक चार मंजिला इमारत में आग लगने से मृत्यु हो गई। हमसे दो मिनट का मौन रखने को कहा गया।

दादी, उन दो मिनट भी कई बच्चों से मौन नहीं रहा जा रहा था, बार - बार खांस रहे थे, खुसुर - पुसुर कर रहे थे।' क्यों, दादी, क्यों किसीका दुख हमारा नहीं होता ?

दादी छोटे बच्चे के इस सवाल पर उसका मुंह ताकने लगी, फिर बोली,' चल, तुझे अपने हाथों से खाना खिलाऊंगी। उसके बाद तुम्हारे सवाल का जवाब भी दूंगी।'

रवि 8 साल का बच्चा है मगर सोच बहुत गंभीर रखता है। खाना खाकर दादी के बगल आ लेटा। दादी प्यार से उसके बालों में उंगलियां घुमाने लगीं।

उन्होंने कहा, हां, तो तुम क्या जानना चाहते थे ?

'दादी,रवि ने पूछा, 'दादी ,हमारे देश से चांद पर कोई गया था ?

न, बेटा चांद पर तो नहीं, हां,स्पेस तक 1984 में जो भारतीय पहुंचे, उनका नाम है, राकेश शर्मा मगर यह तुम क्यों पूछ रहे हो बेटा ?

दादी, मंगल पर भी तो हमारा मंगल यान गया था, खूब चर्चा हुई थी ?

हां, बेटा ऐसे कदम गर्व करने योग्य होते हैं, इसलिए चर्चा तो होनी ही थी।

दादी, में ये पूछना चाहता हूं कि स्पेस कितना दूर है और मंगल कितने फासले पर है ?

बेटा, ये तो तुम्हारे पापा-मम्मी बता सकते हैं। मगर इस जानकारी से आज की घटना का क्या संबंध है ? 

संबंध बहुत ज्यादा है, दादी, क्या इन दोनों जगहों की दूरी ज्यादा है या एक चार मंजिला इमारत की ?

ओह, मेरे बच्चे, मैं समझ गई, हमने वह दो दूरियां तो तय कर लीं, किन्तु 4 मंजिल की दूरी तय कर सके ऐसी सीढ़ी न बना सके।


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