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Gita Parihar

Inspirational

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एलिस ख्रिस्तयानी पूर्ति

एलिस ख्रिस्तयानी पूर्ति

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एलिस ख्रिस्तयानी पूर्ति का जन्म रांची (झारखंड) में 8 सितंबर 1917 को हुआ। वह अपनी मां मेरी पूर्ति और पिता नुअस पूर्ति की तीन संताने ग्रेसी पूर्ति और बसंत पूर्ति आदिवासी विद्रोह के इतिहास प्रसिद्ध नायक बिरसा मुंडा के परिवार से संबंध रखती हैं। पूर्ति मुंडा आदिवासियों का गोत्र है। मुंडारी भाषा में गोत्र को मुंडा लोग ‘किली’ कहते हैं। एक किली के लोग एक साथ ही रहते हैं। एक ही गांव-क्षेत्र में जीते हैं और साथ-साथ दफनाये जाते हैं।

एलिस का परिवार 1900 में हुए मुंडा उलगुलान के पहले ही खूंटी टोली, सिमडेगा में बस गया था। एलिस के पिता नुअस पूर्ति पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर थे। एलिस एक्का की प्राईमरी से मैट्रिक तक की पढ़ाई संत मार्ग्रेट स्कूल, बहु बाजार, रांची में हुई। 1938 में ‘एब्रोजिनल फेलोशिप’ पाने और कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन करने वाली ग्रेटर झारखंड की वह पहली आदिवासी महिला हैं। उनके प्रथम ग्रेजुएट होने पर जिला स्कूल, रांची में लगा मेधा स्मारक आज भी मौजूद है। बांकीपुर, पटना के टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल से बाद में उन्होंने बीएड किया और रांची विश्वविद्यालय, रांची से 1963-64 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

एलिस का विवाह 8 जून 1947 को सोलोमोन एक्का से हुआ। सोलोमन मूलतः पिस्का नगड़ी, रांची के रहने वाले थे और वे उरांव आदिवासी समुदाय से आते हैं। सोलोमन डिप्टी डायरेक्टर, कृषि विभाग (सोयल कंजरवेशन) के पद से सेवानिवृत्त हुए और 1996 में उनकी मृत्यु हुई। एलिस और सोलोमन के तीन बच्चे हुए - डॉ॰ रेखा टोप्पो, नीला डे और डॉ॰ सिद्धार्थ एक्का। रेखा मेडिकल प्रोफेशन में गई और सेवानिवृति के बाद बोकारो में रह रही हैं। एकमात्रा बेटा सिद्धार्थ गोस्सनर कॉलेज, रांची के प्राचार्य हैं।

पेशे के रूप में एलिस ने शिक्षकीय जीवन को चुना। गर्वनमेंट गर्ल्स स्कूल पुरुलिया, संत मार्ग्रेट स्कूल, बहु बाजार और चांदमल बाल मंदिर स्कूल, रातू रोड, रांची में उन्होंने समय-समय पर अध्यापन कार्य किया। लेकिन उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें अध्यापन का काम तभी मिल पाया जब नवंबर 1971 में झारखंड आंदोलन के आदिवासी बुद्धिजीवी डॉ. निर्मल मिंज की अगुआई में गोस्सनर कॉलेज की स्थापना हुई। डॉ. मिंज के आमंत्रण पर वह कॉलेज से जुड़ीं और 1972 से उन्होंने वहां अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। जीवन का साथ छोड़ देने से पहले

तक वे वहीं अध्यापिका रहीं।

एलिस की मृत्यु 61 वर्ष की उम्र में 5 जुलाई 1978 को गुंगुटोली (बहु बाजार के पास), रांची में हुई। 

वह मृदुभाषी, बहुत कम पर सटीक बोलने वाली थीं, उनका सहज और सुंदर व्यक्तित्व था।समकालीन अंग्रेजी-हिन्दी व झारखंडी भाषाओं के साहित्य और समसामयिक हलचलों से घिरे रहना, दिन-रात पढ़ना और लिखना उनकी दिनचर्या थी। कहानी लिखना और विश्व साहित्य का अनुवाद करना उनकी प्रकृति थी। खलील जिब्रान की अनेक रचनाओं का उन्होंने अनुवाद किया है।उनके जीवन से संबंधित दस्तावेज, उनकी प्रकाशित रचनाएं और पांडुलिपियां, उनकी समृद्ध लायब्रेरी आदि परिवार द्वारा नहीं सहेजे जाने के कारण समय के थपेड़ों में गुम हो गई। इसलिए यह जान पाना बहुत मुश्किल है कि जो अनमोल सृजन उन्होंने नागपुरी, हिन्दी आदि में किया, वह कितना और कैसा था।

आपकी अनेक कहानियां 1947 में रांची से प्रकाशित ‘आदिवासी’ पत्रिका में छपीं। सुप्रसिद्ध आदिवासी साहित्यकार वंदना टेटे ने आपकी कहानियों को ढूंढ निकाला जिसे 2015 में ‘एलिस एक्का की कहानियां’ शीर्षक से कथा संकलन के रूप में राधाकृष्ण (राजकमल), दिल्ली ने प्रकाशित किया है।

एलिस एक्का हिंदी साहित्य की पहली दलित कथा लेखिका भी हैं। ‘आदिवासी’ पत्रिका के जनवरी 1962 अंक में छपी ‘दुर्गी के बच्चे और एल्मा की कल्पनाएं’ हिंदी की पहली दलित कहानी है। इस कहानी के केन्द्र में दो अवर्ण महिलाएं हैं, एक आदिवासी और दूसरी दलित, और दोनों एकदूसरे के सुख-दुःख के साथ खड़ी हैं। प्रकाशन के लिहाज से प्रेमचंद के बाद दलित विषय पर लिखी गई यह हिंदी की पहली दलित कहानी है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार मराठी दलित लेखक बाबुराव बागुल का पहला कहानी संग्रह 1963 में छपा था ‘जब मैंने जात छुपायी’। कुछ लोग डॉ. अंगनेलाल लिखित ‘आदिवंश कथा’ (1968) को पहली दलित कहानी मानते हैं। इस प्रकार 1963 के पूर्व जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ आदि को छोड़कर उनके पूर्व हिंदी अथवा मराठी में किसी दलित कहानी के प्रकाशन का ब्यौरा नहीं मिलता। कम से कम अवर्ण लेखकों की किसी दलित कथा का तो जिक्र नहीं ही मिलता हे। आठवें दशक के बाद ही हम हिंदी और मराठी दोनों में दलित साहित्य का सुगठित उभार देखते हैं। अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘दुर्गी के बच्चे और एल्मा की कल्पनाएं’ किसी अवर्ण लेखक द्वारा लिखी गई भारत की पहली हिंदी कहानी है। 


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