Shubhra Varshney

Inspirational

4.6  

Shubhra Varshney

Inspirational

स्वयंसिद्धा

स्वयंसिद्धा

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बहुत दिनों बाद उसकी चेतना लौटी थी, वह कब से सोई हुई थी उसे याद नहीं। शरीर में हरकत होते ही उसने आसपास देखने की खोलने की कोशिश की लेकिन भारी दर्द के कारण वह अपनी पलकें भी नहीं खोल पाई। बहुत कोशिश करने पर भयंकर दर्द के साथ एक आँख खुली उसने खुद को एक पिज़रेनुमा कवच के अन्दर कैद पाया। हाथ पैर हिलाने की कोशिश की.... सभी तो ठीक चल रहा था सिवाय चेहरे की.... अब चेहरे पर होते भयंकर दर्द ने उसकी चीख निकाल दी।

उसकी चीख सुनते ही उसके पास बैठी उसकी मां और नर्स तेजी से उसकी ओर ऐसे लपकी मानो उसकी आवाज़ का उन्हें बहुत बेसब्री से इंतजार था।

"कैसी है अवनि?" मम्मी की उत्तेजना और दर्द में डूबी आवाज़ को सुनकर वह समझ गई थी कि मम्मी उसकी एक आवाज़ सुनने के लिए कितनी आतुर थीं।

"मम्मी...मैं ...कहां हूँ?", करहाते हुए बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से अटक अटक कर शब्द निकले थे।

"बेटा अस्पताल में" मम्मी ने बड़ी मुश्किल से अपने आँसू रोकते हुए कहा।

"पानी...पानी पीना है मम्मी" सिर में उठती भयंकर पीड़ा और सूखकर पपड़ा गए होठों के ऊपर बमुश्किल जीभ फिराती अवनि को अनुभव हो रहा था कि वह मानो मरुस्थल में गर्म रेत के भीतर सिर से धसी थी और सूरज अपनी सारी ऊष्मा एकत्रित कर उसे भस्म करने को प्रतिबद्ध था।

"पानी... हां बेटा पानी...मैं अभी देती हूँ" सुनते ही बदहवास मां अस्पताल के उस कक्ष से बाहर नर्स से पूछने भागी कि पानी देना है या नहीं।

मां को तेज आवाज़ में कहते बाहर जाता देख उसने उठने की कोशिश की... शरीर ने कहानियों पर हाथों को टेकते उठने की थोड़ी हरकत की पर शक्तिहीन हुआ उसका शरीर निस्तेज पलंग पर ही पड़ा रहा.... वह यह सोचकर घबरा गई कि शायद अब उसके शरीर पर मस्तिष्क का नियंत्रण नहीं रहा था... उसने याद करने की कोशिश की कि यहां आने से पहले आखिरी बार क्या हुआ था... सिवाय इसके उसे कुछ याद नहीं आया कि वह केमिस्ट्री लैब में बच्चों को प्रैक्टिकल डेमो दे रही थी कि तभी उसके हाथ में लिया फ्लास्क एकदम से धमाके के साथ उसके मुंह पर फट गया था... ऐसा क्या था उस फ्लास्क में... असहनीय चेहरे पर उठे दर्द ने उसकी सोचने की शक्ति को भी बहुत क्षीण कर दिया था।

वह पुनः चेतनाशून्य हुए जा रही थी कि तभी मां की उसे पुकारती आवाज़ उसे बड़ी दूर से आती हुई सी प्रतीत हुई।

"ले बेटी पानी" अपने होठों पर ठंडी चम्मच के स्पर्श ने जैसे उसे तप्त रेत में चेतनाहीन होने से बचा लिया था पानी को चाटती उसकी लपलपाती जीभ मां की आंखों को पानी दे गई थी।

एक आँख अभी भी पलकों के जबरदस्त चिपके होने से नहीं खुल पा रही थी बस दूसरी आँख ही उसे अपनी मां की धुँधले दर्शन करा पा रही थी।

शुरू से ही मेधावी रही अवनि ने जब केमिस्ट्री विषय में यूनिवर्सिटी टॉप करने के बाद कैरियर बनाते हुए सभी विकल्पों को दरकिनार कर अपने स्वर्गवासी पिता को आदर्श मानते हुए उनकी तरह अध्यापन कार्य को अपने जीवन का उद्देश्य बनाना चाहा तो एक हल्के विरोध के बाद उसकी मां ने उसकी इच्छा पर अपनी स्वीकृति की मुहर भी लगा दी थी।

कॉलेज से ही जो प्रेम बीज आकाश के रूप में उसके जीवन की बगिया में प्रवेश कर गया था वह पढ़ाई पूरी करते-करते घने वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका था और उनके प्रेम की स्वीकृति दोनों परिवारों की हां के बाद हुई उनकी सगाई से परिणिति में बदली।

उसके पीएचडी करते-करते ही उसका चयन इंटर कॉलेज में केमिस्ट्री के प्रवक्ता पद पर भी हो गया था।

अब तक कैरियर में उसके साथ चलने वाला आकाश थोड़ा पिछड़ गया था और चयन को हुए इंटरव्यू में सफलता की मुहर लगाने में असफल सिद्ध हुआ था लेकिन उसे अपनी असफलता अवनी की सफलता के समक्ष गौण लगी थी.... वह अपनी की खुशी में ही बहुत खुश था... वह जब भी प्यार से कहते हुए अपनी बाहें फैलाता,"तुम अवनि यानि धरा मैं आकाश तुम्हें अपनी आगोश में भरने को तैयार हूं" खरगोश की मानिंद भागती हुई उसकी बांहों में समा जाती और जब वह प्यार से उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेता तो उसे अपना चेहरा मोम सा पिघलता लगता।

पिघल....हां पिघल ही तो रहा था उसका चेहरा.. आज उसे लग रहा था मानो उसके चेहरे का मांस अपनी जगह छोड़ कर पिघला जा रहा था... और उसकी उंगलियां स्वयं उस तप्त मांसपिण्डों चेहरे से अलग करने को बेकरार थी वह उन्हें नोच कर उस जलन से मुक्ति पाना चाहती थी उसने जैसे ही अपना हाथ खींचना चाहा हाथ में लगा ड्रिप सेट स्टैंड से अटका होने के कारण स्टैंड भरभरा कर गिर गया.... ड्रिप सेट हाथ के कैनुला से अलग हो चुका था।

वह चीख चीख कर रोना चाहती थी पर खींचती हुई उसके चेहरे की मांसपेशियां उससे रोने का अधिकार भी छिन चुकी थी।

जहां ड्रिप सेट के गिरने से नर्स भाग कर आ चुकी थी वही उसकी सुबकती आवाज़ को सुनकर मां उसके पास आकर रोने लगी थी।

मां का रोना सुनकर जैसे वह स्वप्न से जागी और याद करने लगी पापा से किए हुए वायदे को कि वह मम्मी को कभी दुखी नहीं होने देगी..... सोचकर उसने अपनी असहनीय पीड़ा को एक तरफ कर मां से धीरे से चुप हो जाने को कहा और कहा उसे कोई ज्यादा तकलीफ़ नहीं थी..... मां को क्या समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस परिस्थिति से गुजर रही थी अवनि की बात सुनकर मां बिना आवाज़ करें धीरे धीरे सुबकने लगी।

"आकाश कहां है मम्मी" कैसे हो से सबसे महत्वपूर्ण बात याद आई।

"आता होगा... एफ आई आर दर्ज कराई है उसने... पुलिस तेरा स्टेटमेंट लेने आती होगी"

उसने मां से पीने को पानी मांगा... नर्स तेज आवाज़ में चिल्लाते हुए हाथ दोबारा ना हिलाने की कहकर ड्रिप सही करके चली गई।

मम्मी धीरे-धीरे उसके पैरों को सहला रही थी और वह एक बार फिर तप्त रेगिस्तान में बहते लावे में डूब उतर रही थी।

"आप बता सकती है कि आप उस समय क्या कर रही थी" एक तेज कड़क आवाज़ के साथ वह लावे से बाहर निकल आई थी।

"बेटा इसपेक्टर साहब तुम्हारा स्टेटमेंट लेने आए हैं" सुनते ही एक बार फिर उसका मन बहुत तेजी से चीखने का हुआ... उसे पता था साथ में आकाश खड़ा होगा वह आकाश से लिपटकर रोना चाहती थी शायद उसके प्यार की बारिश उसके तप्त मांस पिंडों को कुछ देर शीतलता दे जाए।

उसने अपना स्टेटमेंट दे दिया था.... देने को कुछ खास था ही नहीं वह रोज की तरह लैबोरेट्री में प्रैक्टिकल समझा रही थी.... बहुत खुश थी उस रोज थोड़ी देर पहले आकाश उसे अपने हनीमून के लिए फाइनल की हुई लंदन ट्रिप के बारे में बताने जो आया था... फ्लास्क में साधारण सा मिक्स सॉल्यूशन था... वह एकदम से इतना एक्सप्लोसिव कैसे हो गया... यह बात बताने में वह असमर्थ थी।

पुलिस ने अननोन के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करते हुए अपनी औपचारिकता निभाई।

पुलिस चली गई... उसे और आकाश को अकेला छोड़कर मम्मी भी बाहर चली गई.... बस रह गया दोनों के बीच पसरा मौन और उसके दोनों हाथ पकड़े आकाश के हाथों का स्पर्श।

वह बहुत देर तक अपने हाथों पर आकाश के अश्रुओं की उष्मा महसूस करती रही पर यह गर्मी उसके जलते चेहरे पर बर्फ का काम कर रही थी।

दिन गुजरने लगे... आकाश रोज आता... उसका मन बहलाने को उसे कहानियां पढ़कर सुनाता। अवनि का उपचार जारी था... डॉक्टर्स ने एक सर्जरी को बोला था।

इस बीच एक दिन आकाश आया उसकी आवाज़ से साफ लग रहा था कि आज वह परेशान था.... उसका कहना था कहीं नौकरी न मिलने की वजह से घर पर उसे मिलने वाले तानों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

कुछ उसके कहने का ढंग था कि अवनि आज कई दिनों बाद असहनीय दर्द में भी हँस गई थी और हँसने का प्रयास करते ही उसके चेहरे की मांसपेशियां उससे एक बार फिर खुश होने का अधिकार छीन गयीं।

वह करहाते हुए अटक अटक कर बोली," इधर तुम्हें काम न मिलने के ताने मिल रहे हैं उधर मुझे मिली नौकरी अब व्यर्थ है.... मुझे तो अब लगता ही नहीं कि मैं कभी भविष्य में दोबारा पढ़ाने योग्य भी हो पाऊंगी... काश ऐसा होता कि मेरी नौकरी तुम कर लेते"

" हां इसमें हर्ज ही क्या है... मैं करूँ या तुम बात तो एक ही है"

उस समय बाहर से अंदर कक्ष में आते हुए अवनि की मम्मी यह सुनकर ठिठक गयीं लेकिन उन्होंने उस समय कुछ नहीं कहा।

करीब छह महीने के अथक प्रयास के बाद एक बार हुए ऑपरेशन के बाद वह खतरे से तो बाहर आ गई थी लेकिन उसका चेहरा बहुत विकृत हो गया था... जब उसके चेहरे से पट्टी हटाई गई तो वह एक आँख से ही मम्मी के चेहरे के सारे भाव पढ़ गई थी... उसकी एक आँख ने अपनी रोशनी जो खो दी थी। एक आँख के सहारे जब छड़ी की सहायता से धीरे-धीरे उठकर अस्पताल की उस कक्ष के वॉशरूम में अकेली पहली बार गई तो वहां लगे आईने में अपना वीभत्स चेहरा देखकर वहीं बैठ कर ज़ार ज़ार रोने लगी लगी... बड़ी मुश्किल से मम्मी उसको उठा कर संभालती बिस्तर तक ला पाई थीं।

वह आज मन में निर्णय ले चुकी थी कि आज जब आकाश आएगा तो वह उसे आइंदा यहां पर आने को मना कर देगी... हृदय की गहराइयों में आकाश को जिस कोमलता से उसने बसा रखा था उसे यूं अपना वीभत्स चेहरा दिखाकर तो मजबूर नहीं करेगी ताउम्र स्वयं को ढोने के लिए।

पापा ने कितने चाव से उसका नाम अवनि रखा था... जन्म से ही उसके चेहरे पर फैली मुस्कान देखकर पापा ने कहा था उसका ओजस्वी चेहरा देख कर उन्हें स्थायित्व का भाव आता है और धरा से ज्यादा स्थाई तो और क्या होगा जो पूरी प्रकृति को अपने ऊपर स्थाई रूप से धारण करे हुए थी... बस उसका नामकरण हो गया अवनि और उसने इस नाम को सार्थक करके भी दिखाया था चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों ना आ जाए वह करीबी विचलित हुए बिना साहस धारण किए रहती... फिर आज उसका साहस कहा जाता रहा था... आकाश की असीमित प्यार ने उसके साहस के कवच में सेंध लगा दी थी... अब तो उसका साहस और धैर्य आकाश की एक प्यार भरी उसे पुकारती आवाज़ का मोहताज था... वह कैसे आकाश के बगैर रह पाएगी... यह सोचते सोचते उसके गर्म अश्रु उसके चेहरे को और पीड़ा पहुंचा रहे थे।

मन से हार चुकी आँसू बहाती वह कब सो गई उसे खुद पता नहीं चला।

थोड़ी देर में मम्मी और आकाश की आती तेज आवाजों के बीच उसकी नींद खुली।

"देखिए आंटी जी इसमें हर्ज ही क्या है... सर्विस मैं करूं या अवनि... ध्यान तो उसका मुझे ही रखना है"

आकाश के स्वर में आज अलग सी तल्खी थी।

"अपनी बेटी का ध्यान रखने को मैं अभी हूं" मम्मी की कंपकंपाती आवाज़ में उसे विचलित कर दिया था पर वह अभी भी सोने का उपक्रम करते हुए ध्यान से दोनों का वार्तालाप सुन रही थी।

"पर सोच लीजिए आंटी जी अभी अवनि की कई बार प्लास्टिक सर्जरी होनी है...अकेले आप कैसे मैनेज करेंगीं" आकाश को लगभग धमकाते हुए बोलते हुए सुनकर तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की है उसका वह आकाश था जिसने कभी एक शब्द भी मां से ऊँचे स्वर में नहीं कहा था।

"अभी तुम फिलहाल जा सकते हैं... जब मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ेगी मैं तुम्हारे ऑफर को मान लूंगी"

"लेकिन मुझे इस बारे में आपसे बात करनी ही नहीं है मैं अवनि से बात करके ही जाऊँगा" मम्मी के कहते ही आकाश एकदम से एग्रेसिव हो गया था।

"मुझे आशा है आकाश तुम मुझे हॉस्पिटल स्टाफ को बुलाने पर मजबूर नहीं करोगे" मम्मी का दृढ़ स्वर सुनकर उसका मन डूबा जा रहा था ऐसा कौन सा ऑफर था आकाश का जो वह नहीं मान रही थी।

"ठीक है मैं इस विषय में अवनि से ही बात करूंगा और घमंड किसका है आपको अब देखा है आपने अपनी लड़की का चेहरा" वह जाते हुए आकाश को आवाज़ देना ही चाहती थी कि उसने देखा आकाश पूरी ताकत से उसकी मम्मी को देखता हुआ एक लात दरवाज़े में भरपूर जोर से मारते हुए निकला था।

वह आकाश का यह रूप देखकर सहम गई.... न जाने कितने घंटे वह सिर में सिर मिलाए पार्क में साथ बैठे रहते ।

वह कितना भी क्यों ना तंग करती आकाश को लेकिन वह बदले में बस मुस्कुराते रहता... जब वह प्यार से उसे बाहों में भर कर उसके गालों को चूमता तो उसके रुई जैसे सफेद गाल जब सुर्ख लाल हो जाते तो फिर एक बार उन्हें दोबारा चूम लेता और वह हथेलियों से अपना चेहरा ढक कर घंटों उसके सीने से लगी रहती... वह कहता ,"इन गालों और चेहरे पर उसका पूरा अधिकार है... वह इन्हें चूमने से उसे नहीं रोक सकती" फिर आज वह कैसे भूल गया था कि यह बिगड़ा हुआ चेहरा अभी भी उसकी धरोहर ही तो था।

मम्मी कुछ भी बताने को तैयार नहीं थी।

उसे बात जानने को परेशान और व्यथित देखकर उनसे रहा नहीं गया उन्होंने बताया कि आकाश चाहता था कि अवनि अपनी जॉब से इस्तीफा दे दे जिस से रिक्त हुआ पद आकाश को आसानी से मिल सकता था।

मां कहकर दवाइयाँ लेने बाहर चली गई थी।

अवनि के मस्तिष्क में कई तरह के विचार आ जा रहे थे... वह तो स्वयं ही आकाश को अपनी जगह नौकरी करने का ऑफर पहले ही रख चुकी थी फिर इतनी आतुरता क्यों?

तभी उसके कक्ष में आई एक नई नर्स ने उससे पूछा कि, "अभी जो महाशय यहां से गए थे वह आपके कौन हैं"

जब अवनि ने आकाश को अपना मंगेतर बताया तो वह दंग रह गई थी उसको सकते में देखकर जब अवनि ने पूछा, "आप उन्हें कैसे जानती हैं?"

"पिछले हफ्ते इनके साथ मेरी चचेरी बहन की सगाई हुई है" कहती हुई नर्स उसे स्तब्ध छोड़कर बाहर चली गई थी।

दवाई काउंटर पर भीड़ होने के कारण मम्मी अभी लौटी नहीं थी।

तभी उसके पास रखा उसका फोन घनघना उठा। आकाश का नाम स्क्रीन पर देख कर वह एक बार फिर शून्य में पहुंच गई थी।

बड़ी मुश्किल से कंपकंपाते हाथों से उसने फोन उठाया।

मम्मी की बताए अनुसार आकाश की इच्छा देखकर उसने कल पेपर्स लेकर आकाश को आने को कह दिया था।

"आई लव यू" कह कर जब आकाश ने फोन रखा तो आज इन शब्दों ने उसके चेहरे पर एक बार फिर लावा सा फैला दिया था।

अगले दिन आकाश आया।

जब उसने नौकरी से इस्तीफे के पेपर्स अवनि के आगे करे और कहा ,"अब वह आसानी से बिना किसी की तानों को सुनें उसका इलाज करवा पाएगा"

आज अवनि पहली बार महसूस रही थी कि आकाश उसके विकृत हुए चेहरे को कभी देखता ही नहीं था वही बावरी हुई बस उसे निहारती रहती थी और वह तो बस इधर-उधर देखकर समय बिताता था आज भी जब वह कुछ इस प्रकार का ही कर रहा था तब अवनि बोल पड़ी," आकाश जब नौकरी ही चाहिए थी... तो पहले ही बता देते... मेरी जिंदगी बिगाड़ने की क्या जरूरत थी"

सुनते ही आकाश सकते में आ गया था," यह तुम किस तरह की बातें कर रही हो... मैंने कब तुम्हारी जिंदगी बिगाड़ी... मैं तो तुम्हारे एक्सीडेंट होने के बाद से लगातार यहां आ रहा हूं"

" एक्सीडेंट नहीं आकाश.... प्लांड क्राइम... उस दिन तुम मुझे लंदन हनीमून की ही खबर देने नहीं आए थे बल्कि मेरे फ्लास्क में एसिड में एक्सप्लोसिव मिक्स करने भी आए थे... मैंने तुम्हें लैब में फ्लास्क के पास कुछ मिलाते हुए भी देखा था लेकिन तुम्हारे प्यार में अंधी मैं जो उस समय ना देख पाई थी वह मुझे मेरी एक आँख ने आज दिखा दिया था"

"क्या... क्या बकवास कर रही हो" हकलाते हुए आकाश बोलने लगा।

"मैं बकवास नहीं कर रही है आकाश... आओ मेरे चेहरे को चूमो... तुम्हारा ही तो अधिकार है इस पर... खूब फायदा उठाया अपने अधिकार का"

बिस्तर से धीरे उठकर जब अवनि ने उसके हाथ को पकड़ कर अपने चेहरे को उसके चेहरे के पास लाकर चूमने की कोशिश की तो आकाश ने उसे धक्का दे दिया"

वह लड़खड़ा कर संभल गई," अब नहीं आओगे पास मेरे... तो मेरा जीवन भर ध्यान कैसे रह पाओगे"

आकाश की आंखों में घृणा साफ दिखाई दे रही थी वह चीख उठा," दूर रहो मुझसे... जलते माँस की बदबू आती है तुमसे... महीनों से बर्दाश्त कर रहा हूं तुम्हें.... हां मैंने ही एसिड मिलाया था तुम्हारे फ्लास्क में... स्त्री होकर तुम नौकरी करो और मैं नौकरी की तलाश में दर-दर भटकूं शादी के बाद क्या मुझे अपनी खिल्ली उड़वानी थी... कितना चाहा मैंने कि तुम इंटरव्यू ना दो लेकिन तुम थी... मेरे राह में रोड़ा बने हमेशा तैयार रही... मानता हूं मुझसे ज्यादा योग्य थी और चुनी भी गई बस तभी से मैंने सोच लिया था यह नौकरी भी तुम्हारे पास रहने नहीं दूँगा"

"और इसलिए जला दिया मुझे बस... बिना यह सोचे कि मेरा क्या होगा" अपना चेहरा हथेलियों में लिए अवनि फूट-फूट कर रो रही थी।

"कुछ नहीं होगा तेरे साथ मेरी बच्ची... तू सर्जरी के बाद फिर से अपना जीवन जिएगी... होगा तो अब इसके साथ जो भी होना है" अवनि ने नजर उठाकर देखा कक्षा के दरवाजे पर मम्मी स्कूल की प्रिंसिपल और पुलिस को साथ लिए खड़ी थीं।

आकाश ने भागने की कोशिश की... पर सिपाही ने उसे तुरंत दबोच लिया।

हथकड़ियों में जकड़ा सिर झुकाए आकाश एक नजर अवनि पर डाल कर पुलिस के साथ चला गया।

धरा सा धैर्य सहेज कर अवनि अपनी तीन सर्जरी के बाद आज पुनः स्कूल जा रही थी।

एक आँख की रोशनी खो चुकी अवनि जब स्कार्फ से अपना चेहरा ढक कर स्कूल पहुंची तो पूरे स्टाफ और विद्यार्थियों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उसका स्वागत किया और जब प्रिंसिपल मैडम ने उससे बिना डरे स्कार्फ उतार कर काम करने को कहा तो उसके उत्साहित कदम स्कार्फ को डस्टबिन में डाल कर केमिस्ट्री का लेक्चर देने लैब की तरफ बढ़ रहे थे।

अवनि ने अपने नाम को स्वयं सिद्ध कर दिया था।



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